Aaj Ki Murli 15 January 2022 [Madhubanmurli] - Today BK Murli Hindi+ English

Aaj Ki Murli 15 January 2022 [Madhubanmurli] - Today BK Murli Hindi+ English +Marathi

Aaj Ki Murli 15 January 2022 [Madhubanmurli] - Today BK Murli Hindi+ English +Marathi आज की मुरली हिन्दी में PDF | Aaj Ki Murli | आज की मुरली | आज की मुरली पढ़ने वाली | Om Shanti Aaj Ki Murli - 15-01-2022 Brahma kumaris Murli hindi


14-01-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन 

 

 “मीठे बच्चे - यह दादा है वन्डरफुल पोस्ट ऑफिस, इनके द्वारा ही तुम्हें शिवबाबा के डायरेक्शन मिलते हैं'' 

 

प्रश्नः-बाबा बच्चों को किस बात में खबरदार करते हैं और क्यों? 

उत्तर:-बाबा कहते बच्चे खबरदार रहो - माया की जास्ती चोट नहीं खाओ, अगर माया की चोट खाते रहेंगे तो प्राण निकल जायेंगे और पद मिल नहीं सकेगा। ईश्वर के पास जन्म लेकर फिर कोई माया की चोट से अगर मर जाए तो यह मौत सबसे खराब है। जब माया बच्चों से उल्टे काम कराती है तो बाबा को बहुत तरस पड़ता है इसलिए खबरदार करते रहते हैं। 

 

गीत:-तुम्हारे बुलाने को...   

 

ओम् शान्ति। बाप को बुलाने का समय होता ही तब है जबकि मनुष्यमात्र दु:खी होते हैं क्योंकि विकारी बन जाते हैं। दु:खी किससे होते हैं? यह भी तमोप्रधान मनुष्य नहीं जानते हैं। दु:खी करता है 5 विकारों रूपी रावण। अच्छा उसका राज्य कब तक चलता है? जरूर दुनिया के अन्त तक राज्य चलेगा। अब कहेंगे रावण राज्य है। राम राज्य, रावण राज्य नाम तो मशहूर है। रावण राज्य को भारत में ही जानते हैं। देखने में आता ह़ै दुश्मन भी भारत का ही है। भारत को रावण ने ही गिराया है, जब से देवता वाम मार्ग में गये अर्थात् विकारी बने हैं। दुनिया यह नहीं जानती - भारत जो निर्विकारी था, वह विकारी कैसे बना? भारत की ही महिमा है। भारत श्रेष्ठाचारी था, अब पतित है। जबसे पतित बनना शुरू किया, तब से भगत पुजारी बने हैं। तब से ही भगवान को याद करते आये हैं। यह तो समझाया गया है कि कल्प के संगम युगे-युगे बाप आते हैं। 

 

कल्प के 4 युग तो हैं, बाकी पांचवे संगमयुग का किसको भी पता नहीं है। वह तो संगमयुग बहुत कह देते हैं। कहते हैं युगे-युगे तो कितने संगम हो गये। सतयुग से त्रेता, त्रेता से द्वापर, द्वापर से कलियुग। परन्तु बाप कहते हैं कल्प के संगमयुगे बाप को आना ही है। इनको कल्याणकारी पुरुषोत्तम युग कहते हैं जबकि मनुष्य पतित से पावन होते हैं। कलियुग के बाद फिर सतयुग आता है। सतयुग के बाद फिर क्या होता है? त्रेता आता है। सूर्यवंशी लक्ष्मी-नारायण का जो राज्य था वह फिर चन्द्रवंशी बनते हैं। त्रेता में है रामराज्य, सतयुग में है लक्ष्मी-नारायण का राज्य। लक्ष्मी-नारायण के बाद राम-सीता का राज्य आता है। सतयुग-त्रेता जरूर बीच में संगम होगा। फिर उनके बाद इब्राहिम आता है, वह है उस तरफ, उनका यहाँ तैलुक नहीं। द्वापर में फिर बहुत ही होते हैं। इस्लामी, बौद्धी फिर क्रिश्चियन आदि। क्रिश्चियन धर्म स्थापन हुए दो हजार वर्ष हुआ। कोई-कोई थोड़ा बहुत हिसाब निकालते हैं। अब संगम के बाद सतयुग में जाना होता है। यह हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में होनी चाहिए। गाया भी जाता है ऊंचे ते ऊंचा भगवान। 

Madhuban Murli Hindi 15-01-2022 | brahma kumaris murli madhuban live | Om Shanti Aaj Ki Murli


Aaj ki murli hindi 15 जानेवारी 2022 | om shanti ki Murali hindi
Aaj ki murli hindi 15 जानेवारी 2022 | om shanti ki Murali hindi

 

उनको ही त्वमेव माताश्च पिता कहा जाता है। यह है ऊंचे ते ऊंचे भगवान की महिमा। तुम मात पिता किसको कहते? यह कोई नहीं जानते। आजकल तो कोई भी मूर्ति के आगे जाकर कहते हैं - तुम मात-पिता.... अब मात-पिता किसको कहें? क्या लक्ष्मी-नारायण को? ब्रह्मा सरस्वती को? शंकर पार्वती को? यह भी जोड़ा दिखाते हैं। तो मात-पिता किसको कहना चाहिए? यदि परमात्मा फादर है तो जरूर मदर भी चाहिए। यह जानते नहीं कि माता किसको कहा जाये? इसको गुह्य बातें कहा जाता है। क्रियेटर है तो फिर फीमेल भी चाहिए। महिमा तो एक की करेंगे ना। ऐसे नहीं कभी ब्रह्मा की करेंगे, कभी विष्णु की करेंगे, कभी शंकर की। नहीं, महिमा एक की ही करते हैं। गाते भी हैं कि पतित-पावन आओ जो जरूर अन्त में आयेंगे। युगे-युगे क्यों आयेंगे? पतित होते ही हैं अन्त में। पतितों को पावन बनाने वाला बाप, उनको जरूर पतित दुनिया में आना पड़े तब तो आकर पावन बनायेंगे। वहाँ बैठ थोड़ेही बनायेंगे। सतयुग है पावन दुनिया, कलियुग है पतित दुनिया। पुरानी दुनिया को नया बनाना, बाप का ही काम है। नई दुनिया की स्थापना और पुरानी दुनिया का विनाश। ब्रह्मा द्वारा स्थापना किसकी कराते हैं? विष्णुपुरी की। ब्रह्मा और ब्राह्मणों द्वारा स्थापना होती है। ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ रचा जाता है तो ब्राह्मणों को ही जरूर पढ़ाते होंगे। तुम लिखते हो बाबा ब्रह्मा और ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों को राजयोग की पढ़ाई पढ़ाते हैं। उसमें सरस्वती भी आ गई। 

 

 यह ब्राह्मणों का कुल वन्डरफुल है। भाई-बहिन कभी शादी कर न सकें। जब कोई आते हैं तो हम उनको परिचय देते हैं कि परमपिता परमात्मा से तुम्हारा क्या सम्बन्ध है? पिता तो कहते ही हैं तो वह हुआ बाप, वह दादा, वर्सा मिलता है उनसे, जो ज्ञान का सागर बेहद का बाप है। देते हैं ब्रह्मा द्वारा। यह ईश्वरीय गोद है। फिर मिलती है दैवी गोद। यह भी समझाना सहज है। चार युगों का हिसाब भी बरोबर है। पावन से पतित भी बनना है। 16 कला से 14 कला फिर 12 कला में आना है।  तुम्हें पहले-पहले सबको बाप का परिचय देना है। बाबा से नया कोई मिले तो कुछ समझ न सके क्योंकि यह वन्डर है, बापदादा कम्बाइन्ड है। बच्चों को भी घड़ी-घड़ी भूल जाता है - हम किससे बात करते हैं! बुद्धि में शिवबाबा ही याद आना चाहिए। हम शिवबाबा के पास जाते हैं। तुम इस बाबा को क्यों याद करते हो? शिवबाबा को याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे। समझो फोटो निकालते हैं तो भी बुद्धि शिवबाबा की तरफ रहे कि यह बापदादा दोनों हैं। शिवबाबा है तब तो यह दादा भी है। बापदादा के साथ फोटो निकालते हैं। शिवबाबा के पास इस दादा द्वारा मिलने आये हैं। यह हो गई पोस्ट ऑफिस। इन द्वारा शिवबाबा के डायरेक्शन लेने हैं। यह बड़ी बन्डरफुल बात है। भगवान को आना है तब जब दुनिया पुरानी होती है। द्वापर से लेकर दुनिया पतित होना शुरू होती है। अन्त में सारी दुनिया पतित हो जाती है। चित्रों पर समझाना है। सतयुग त्रेता को स्वर्ग, पैराडाइज कहा जाता है। नई दुनिया सदैव तो नहीं होगी। दुनिया जब आधी पूरी होती है तो उनको पुरानी कहा जाता है। 

 

हर एक चीज़ की लाइफ आधी पुरानी, आधी नई होती है। परन्तु इस समय तो शरीर पर भरोसा नहीं है। यह तो आधाकल्प का पूरा हिसाब है, इसमें बदली हो न सके। समय के पहले कुछ भी बदल नहीं सकता और वस्तुएं तो बीच में टूट फूट सकती हैं। परन्तु यह पुरानी दुनिया का विनाश और नई दुनिया की स्थापना आगे पीछे हो नहीं सकती। मकान तो कोई समय टूट सकता है, ठिकाना नहीं है। यह चक्र तो अनादि अविनाशी है। अपने टाइम पर चलता है। पुरानी दुनिया की पूरी एक्यूरेट लाइफ है। आधाकल्प रामराज्य, आधाकल्प रावण राज्य, जास्ती हो नहीं सकता। तुम बच्चों की बुद्धि में अब सारी त्रिलोकी आ गई है। तुम त्रिलोकी के मालिक द्वारा नॉलेज ले रहे हो। तुम्हारा मर्तबा इस समय बहुत ऊंचा है। इस समय तुम त्रिलोकी के नाथ हो क्योंकि तुम तीनों लोकों के ज्ञान को जानते हो। साक्षात्कार करते हो मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन, बच्चों की बुद्धि में पूरी पहचान है। बाबा त्रिलोकी का नाथ, तीनों लोकों को जानने वाला है। तुमको नॉलेज देते हैं तो हम भी मास्टर त्रिलोकीनाथ ठहरे। जो ज्ञान बाबा में है वह अब तुम्हारे में भी है, नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार। फिर सतयुग में तुम विश्व के मालिक बनेंगे। वहाँ तुमको त्रिलोकी के नाथ नहीं कहेंगे। लक्ष्मी-नारायण को त्रिलोकी का ज्ञान नहीं रहता है। सृष्टि चक्र का ज्ञान नहीं रहता है। तुम नॉलेजफुल गॉड के बच्चे हो। उसने पढ़ाकर तुमको आप समान बनाया है। तुम जानते हो हम फिर विष्णुपुरी के मालिक बनेंगे। इस समय जो कुछ पास्ट हो गया है वह नॉलेज भी तुम्हारे पास है। मनुष्यों को हद की हिस्ट्री-जॉग्राफी का मालूम है, तुमको बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी बुद्धि में है। उन्हों को बाहुबल की लड़ाई का मालूम है। योग बल की लड़ाई का किसको पता भी नहीं है। तुम जानते हो योग बल से हम विश्व के मालिक बनते हैं। सिखलाने वाला है बाप, जो त्रिलोकी का नाथ है। इस समय तुम्हारा मर्तबा बहुत ऊंच है। तुम नॉलेजफुल बाप के बच्चे मास्टर नॉलेजफुल हो। यह भी तुम जानते हो कि वह ज्ञान का सागर, आनंद का सागर किस प्रकार है। उसको कहते हैं सत-चित-आनंद स्वरूप। 

 

इस समय आनंद को तुम फील करते हो क्योंकि तुम बहुत दु:खी थे। तुम भेंट कर सकते हो सुख और दु:ख की। वह लक्ष्मी-नारायण तो इन बातों को नहीं जानते। वह तो सिर्फ बादशाही करते हैं। वह है उनकी प्रालब्ध। तुम भी जाकर स्वर्ग में राज्य करेंगे। वहाँ बहुत अच्छे महल बनायेंगे। वहाँ चिंता की कोई बात नहीं रहती। यह भी बुद्धि में स्थाई रहना चाहिए तो खुशी का पारा भी चढ़े। तूफान तो अनेक प्रकार के आयेंगे, सम्पूर्ण तो कोई बना नहीं है। बाप समझाते हैं तुमको बहुत स्थेरियम बनना होगा। वो लोग अमरनाथ पर जाते हैं फिर भी उनको उतरना तो जरूर है। तुम जायेंगे बाप के पास फिर नई दुनिया सतयुग में आयेंगे तब फिर उतरना शुरू होगा। हमारी यह बेहद की यात्रा है। पहले बाबा के पास आराम से रहेंगे फिर राजधानी में राज्य करेंगे फिर जन्म बाई जन्म उतरते ही आते हैं। इसको चक्र कहो या उतराई चढ़ाई कहो, बात एक ही है। नीचे से ऊपर चले जायेंगे फिर उतरना शुरू होगा। यह सब बातें जो शुरूड बुद्धि वाले हैं, वह अच्छी तरह से समझते हैं और समझा भी सकते हैं। यह बाबा भी नहीं जानता था। 

 

अगर इनका कोई गुरू होता तो उस गुरू के और भी फालोअर्स होते। ऐसे थोड़ेही सिर्फ एक ही फालोअर होगा। शास्त्रों में तो है भगवानुवाच हे अर्जुन, एक का ही नाम लिख दिया है। अर्जुन के रथ में बैठे हैं तो जैसे वही सुनता है, और भी तो होंगे ना, संजय भी होगा। यह बेहद का स्कूल एक ही बार खुलता है। वह स्कूल तो चलते ही आते हैं, जैसा राजा वैसी लैंगवेज। वहाँ सतयुग में भी तो स्कूल में जाते हैं ना। भाषा, धंधा-धोरी आदि सब सीखेंगे। वहाँ भी सब कुछ बनता होगा। सबसे अच्छे ते अच्छी चीज़ जो होनी चाहिए वह स्वर्ग में होती है। फिर वह सब कुछ पुराना हो जाता है। अच्छे ते अच्छी वस्तु मिलती है देवताओं को। यहाँ क्या मिलेगा? महसूस करते हो कि नई दुनिया में सब कुछ नया मिलेगा। यह सब बातें समझकर फिर मनुष्यों को समझानी हैं। अभी हम संगम पर हैं, हमारे लिए अब दुनिया बदल रही है। ड्रामा-अनुसार मैं फिर आया हूँ - तुमको पतित से पावन देवी-देवता बनाने। यह चक्र फिरता है। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा जरूर ब्राह्मण ही रचे होंगे। ब्राह्मणों द्वारा यज्ञ रचा है। ब्राह्मण सो देवता बनेंगे इसलिए विराट रूप का चित्र भी जरूरी है, जिससे सिद्ध होता है ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण ही सो देवता बनेंगे। 

 

वृद्धि होती जायेगी। देवता सो क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनेंगे। यह संगमयुग नामीग्रामी है। आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल... चढ़ती कला फिर उतरती कला... यह भी समझाना है। पहले ईश्वरीय औलाद फिर देवताई औलाद फिर थोड़ा-थोड़ा कम होता जाता है। तुम पूछ सकते हो कि दु:ख हर्ता सुख कर्ता किसको कहते हो? जरूर कहेंगे परमपिता परमात्मा को। जब दुनिया का दु:ख मिट जायेगा तो विष्णुपुरी बन जायेगी। ब्राह्मणों के दु:ख मिट जाते हैं, सुख मिल जाते हैं। यह है सेकण्ड की बात। लौकिक बाप की गोद से निकल पारलौकिक बाप की गोद में आ गये, यह है खुशी की बात।  यह सबसे बड़ा इम्तहान है। राजाओं का राजा बनते हैं। राजयोग परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई सिखला न सके। यह चित्र बहुत अच्छे हैं। ऐसे कौन कहेंगे कि मेरा परमपिता परमात्मा से कोई नाता नहीं है। ऐसे नास्तिक से बात नहीं करनी चाहिए। माया चलते-चलते बच्चों से भी कभी-कभी उल्टा काम करा देती है। बाबा को तो तरस पड़ता है। फिर समझाते हैं - खबरदार रहो। जास्ती चोट नहीं खाओ, नहीं तो पद नहीं पायेंगे। माया तो बहुत जोर से थप्पड़ लगाती है, जो प्राण ही निकल जाते हैं। मर गया फिर जन्म दिन मना नहीं सकेंगे। कहेंगे बच्चा मर गया। ईश्वर के पास जन्म ले फिर मर जाए - यह मौत सबसे खराब है। कोई बात राइट नहीं लगती तो छोड़ दो। संशय पड़ता है तो नहीं देखो। बाबा कहते हैं मनमनाभव, मुझे याद करो और स्वदर्शन चक्र फिराओ। अच्छा!  

 मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।  

 

धारणा के लिए मुख्य सार:-  

1) बाप समान मास्टर नॉलेजफुल बनना है। ज्ञान का सिमरण कर अपार खुशी में रहना है। आनंद का अनुभव करना है।  

2) अनेक प्रकार के तूफानों में रहते स्वयं को स्थेरियम बनाना है। माया की चोट से बचने के लिए बहुत-बहुत खबरदार रहना है।  

 

वरदान:-दिव्य गुणों रूपी प्रभू प्रसाद खाने और खिलाने वाले संगमयुगी फरिश्ता सो देवता भव 

दिव्य गुण सबसे श्रेष्ठ प्रभू प्रसाद है। इस प्रसाद को खूब बांटों, जैसे एक दो में स्नेह की निशानी स्थूल टोली खिलाते हो, ऐसे ये गुणों की टोली खिलाओ। जिस आत्मा को जिस शक्ति की आवश्यकता है उसे अपनी मन्सा अर्थात् शुद्ध वृत्ति, वायब्रेशन द्वारा शक्तियों का दान दो और कर्म द्वारा गुण मूर्त बन, गुण धारण करने में सहयोग दो। तो इसी विधि से संगमयुग का जो लक्ष्य है “फरिश्ता सो देवता'' यह सहज सर्व में प्रत्यक्ष दिखाई देगा। 

 

स्लोगन:-सदा उमंग-उत्साह में रहना - यही ब्राह्मण जीवन का सांस है। 

 

लवलीन स्थिति का अनुभव करो  परमात्म-प्यार के अनुभव में सहजयोगी बन उड़ते रहो। परमात्म-प्यार उड़ाने का साधन है। उड़ने वाले कभी धरनी की आकर्षण में आ नहीं सकते। माया का कितना भी आकर्षित रूप हो लेकिन वह आकर्षण उड़ती कला वालों के पास पहुँच नहीं सकती।

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