Aaj ki murli | 9 January 2022 ki Murali + pdf | bk today Murli in hindi | brahmakumaris
Aaj ki murli | 9 January 2022 ki Murali + pdf | bk today Murli in hindi | brahmakumaris Aaj ki murli hindi me | आज की मुरली हिंदी इंग्रजी मे jarur padhe
09-01-22 प्रात:मुरली ओम् शान्ति ''अव्यक्त-बापदादा'' रिवाइज: 21/12/89 मधुबन
त्रिदेव रचयिता द्वारा वरदानों की प्राप्ति
आज त्रिदेव रचयिता अपनी साकारी और आकारी रचना को देख रहे हैं। दोनों रचना अति प्रिय हैं इसलिए रचता, रचना को देख हर्षित होते हैं। रचना सदा यह खुशी के गीत गाती कि “वाह रचता'' और रचता सदा यह गीत गाते - “वाह मेरी रचना''। रचना प्रिय है। जो प्रिय होता है उसको सदा सब-कुछ देकर सम्पन्न बनाते हैं। तो बाप ने हर एक श्रेष्ठ रचना को विशेष तीनों सम्बन्ध से कितना सम्पन्न बनाया है! बाप के सम्बन्ध से दाता बन ज्ञान खजाने से सम्पन्न बनाया, शिक्षक रूप से भाग्यविधाता बन अनेक जन्मों के लिए भाग्यवान बनाया, सतगुरू के रूप में वरदाता बन वरदानों से झोली भर देते। यह है अविनाशी स्नेह वा प्यार।
प्यार की विशेषता यही है - जिससे प्यार होता है उसकी कमी अच्छी नहीं लगेगी, कमी को कमाल के रूप में परिवर्तन करेंगे। बाप को बच्चों की कमी सदा कमाल के रूप में परिवर्तन करने का सदा शुभ संकल्प रहता है। प्यार में बाप को बच्चों की मेहनत देखी नहीं जाती। कोई मेहनत आवश्यक हो तो करो लेकिन ब्राह्मण-जीवन में मेहनत करने की आवश्यकता ही नहीं है क्योंकि दाता, विधाता और वरदाता - तीनों सम्बन्ध से इतने सम्पन्न बन जाते हो जो बिना मेहनत रूहानी मौज में रह सकते हो। वर्सा भी है, पढ़ाई भी है और वरदान भी हैं। जिसको तीनों रूपों से प्राप्ति हो, ऐसे सर्व प्राप्ति वाली आत्मा को मेहनत करने की क्या आवश्यकता है! कभी वर्से के रूप में वा बाप को दाता के रूप में याद करो तो रूहानी अधिकारीपन का नशा रहेगा। शिक्षक के रूप में याद करो तो गॉडली स्टूडेन्ट अर्थात् भगवान के स्टूडेन्ट हैं - इस भाग्य का नशा रहेगा। सतगुरू हर कदम में वरदानों से चला रहा है। हर कर्म में श्रेष्ठ मत - वरदाता का वरदान है। जो हर कदम श्रेष्ठ मत से चलते हैं उसको हर कदम में कर्म की सफलता का वरदान सहज, स्वत: और अवश्य प्राप्त होता है। सतगुरू की मत श्रेष्ठ गति को प्राप्त कराती है। गति-सद्गति को प्राप्त कराती है। श्रेष्ठ मत और श्रेष्ठ गति। अपने स्वीट होम अर्थात् गति और स्वीट राज्य अर्थात् सद्गति इसको तो प्राप्त करते ही हो लेकिन ब्राह्मण आत्माओं को और विशेष गति प्राप्त होती है। वह है इस समय भी श्रेष्ठ मत के श्रेष्ठ कर्म का प्रत्यक्षफल अर्थात् सफलता। यह श्रेष्ठ गति सिर्फ संगमयुग पर ही आप ब्राह्मणों को प्राप्त है इसलिए कहते हैं - जैसी मत वैसी गत। वो लोग तो समझते हैं मरने के बाद गति मिलेगी, इसलिए अन्त मति सो गति कहते हैं। लेकिन आप ब्राह्मण आत्माओं के लिए इस अन्तिम मरजीवा जन्म में हर कर्म की सफलता का फल अर्थात् गति प्राप्त होने का वरदान मिला हुआ है। वर्तमान और भविष्य - सदा गति-सद्गति है ही है। भविष्य की इंतजार में नहीं रहते हो। संगमयुग की प्राप्ति का यही महत्व है। अभी-अभी कर्म करो और अभी-अभी प्राप्ति का अधिकार लो। इसको कहते हैं एक हाथ से दो, दूसरे हाथ से लो। कभी मिल जायेगा वा भविष्य में मिल जायेगा। यह दिलासे का सौदा नहीं है। तुरंत दान महापुण्य, ऐसी प्राप्ति है। इसको कहते हैं झटपट का सौदा। भक्ति में इंतजार करते रहो - मिल जायेगा, मिल जायेगा ....। भक्ति में है कभी और बाप कहते हैं - अभी लो। आदि स्थापना में भी आपकी प्रसिद्धता थी कि यहाँ साक्षात्कार झटपट होता है। और होता भी था। तो आदि से झटपट का सौदा हुआ। इसको कहते हैं रचता का रचना से सच्चा प्यार। सारे कल्प में ऐसा प्यारा कोई हो ही नहीं सकता। कितने भी नामीग्रामी प्यारे हों लेकिन यह है अविनाशी प्यार और अविनाशी प्राप्ति। तो ऐसा प्यारा कोई हो ही नहीं सकता। इसलिए बाप को बच्चों की मेहनत पर रहम आता है।
आज की मुरली हिंदी 09-01-2022 | ओम शांती की मुरली हिंदी | madhuban murli live
Aaj ki murli 9 January 2022 bk murli Hindi |
वरदानी सदा वर्से के अधिकारी कभी मेहनत नहीं कर सकते। भाग्यविधाता शिक्षक के भाग्यवान बच्चे सदा पास विद ऑनर होते हैं। न फेल होते हैं, न कोई व्यर्थ बात फील करते हैं। मेहनत करने के कारण दो ही हैं - या तो माया के विघ्नों से फेल हो जाते वा सम्बन्ध-सम्पर्क में, चाहे ब्राह्मणों के, चाहे अज्ञानियों के - दोनों सम्बन्ध में कर्म में आते छोटी-सी बात में व्यर्थ फील कर देते हैं जिसको आप लोग फ्लू की बीमारी कहते हो। फ्लू क्या करता है? एक तो शेकिंग (हलचल) होती है। उसमें शरीर हिलता है और यह आत्मा की स्थिति हिलती है, मन हिलता है और मुख कडुवा हो जाता है। यहाँ भी मुख से कडुवे बोल बोलने लग पड़ते हैं। और क्या होता है? कभी सर्दी, कभी गर्मी चढ़ जाती है। यहाँ भी जब फीलिंग आती है तो अन्दर जोश आता है, गर्मी चढ़ती है - इसने यह क्यों कहा, यह क्यों किया? यह जोश है। अनुभवी तो हो ना। और क्या होता है? खाना-पीना कुछ अच्छा नहीं लगता है। यहाँ भी कोई अच्छी ज्ञान की बात भी सुनायेंगे, तो भी उनको अच्छी नहीं लगेगी। आखिर रिजल्ट क्या होती? कमजोरी आ जाती है। यहाँ भी कुछ समय तक कमजोरी चलती है। इसलिए न फेल हों, न फील करो। बापदादा श्रेष्ठ मत देते हैं। शुद्ध फीलिंग रहे - मैं सर्वश्रेष्ठ अर्थात् कोटों में कोई आत्मा हूँ, मैं देव आत्मा, महान् आत्मा, ब्राह्मण आत्मा, विशेष पार्टधारी आत्मा हूँ। इस फीलिंग में रहने वाले को व्यर्थ फीलिंग का फ्लू नहीं होगा। इस शुद्ध फीलिंग में रहो। जहाँ शुद्ध फीलिंग होगी वहाँ अशुद्ध फीलिंग नहीं हो सकती। तो फ्लू की बीमारी से अर्थात् मेहनत से बच जायेंगे और सदा स्वयं को ऐसा अनुभव करेंगे कि हम वरदानों से पल रहे हैं, वरदानों से आगे उड़ रहे हैं, वरदानों से सेवा में सफलता पा रहे हैं। मेहनत अच्छी लगती है वा मेहनत की आदत पक्की हो गई है? मेहनत अच्छी लगती वा मौज में रहना अच्छा लगता है? कोई-कोई को मेहनत के काम बगैर और कोई काम अच्छा नहीं लगता है। उनको कुर्सी पर आराम से बिठायेंगे तो भी कहेंगे हमको मेहनत का काम दो। यह तो आत्मा की मेहनत है और आत्मा 63 जन्म मेहनत कर थक गई है। 63 जन्म ढूंढ़ते रहे ना। किसको ढूंढ़ने में मेहनत लगती है ना। तो थके हुए पहले ही हो। 63 जन्म मेहनत कर चुके हो। अब एक जन्म तो मौज में रहो। 21 जन्म तो भविष्य की बात है। लेकिन यह एक जन्म विशेष है। मेहनत और मौज - दोनों का अनुभव कर सकते हो। भविष्य में तो वहाँ यह सब बातें भूल जायेंगी। मजा तो अभी है। दूसरे मेहनत कर रहे हैं, आप मौज में हो। अच्छा! टीचर्स ने भक्ति की है? कितने जन्म भक्ति की है? इस जन्म में तो नहीं की है ना! आपकी भक्ति पहले जन्म में पूरी हो गई।
कब से फिर भक्ति शुरू की? किसके साथ शुरू की? ब्रह्मा बाप के साथ-साथ आपने भी भक्ति की है। कौनसे मंदिर में की? तो भक्ति की भी आदि आत्मायें हो और ज्ञान-मार्ग की भी आदि आत्मायें हो। आदि की भक्ति में अव्यभिचारी भक्ति होने कारण भक्ति का आनंद, सुख उस समय के प्रमाण कम नहीं हुआ। वह सुख और आनंद भी अपने स्थान पर श्रेष्ठ रहा। भक्त-माला में आप हो? जब भक्ति आपने शुरू की तो भक्त-माला में नहीं हो? डबल फॉरेनर्स भक्त-माला में थे? भक्त बने या भक्त-माला में थे? अभी सब सोच रहे हैं कि हम थे वा नहीं थे! विजय माला में भी थे, भक्त-माला में भी थे? पुजारी तो बने लेकिन भक्त-माला में थे? भक्त-माला अलग है। आप तो ज्ञानी सो भक्त बने। वह हैं ही भक्त। तो भक्त-माला और ज्ञानियों की माला में अंतर है। ज्ञानियों की माला है विजय माला। और जो सिर्फ भक्त हैं, ऐसे नौधा भक्त जो भक्ति के बिना और बात सुनना ही नहीं चाहते, भक्ति को ही श्रेष्ठ समझते हैं। तो भक्त-माला अलग है, ज्ञान माला अलग है। भक्ति जरूर की लेकिन भक्त-माला में नहीं कहेंगे क्योंकि भक्ति का पार्ट बजाने के बाद आप सबको ज्ञान में आना है। वह नौधा भक्त हैं और आप नौधा ज्ञानी हो। आत्मा में संस्कारों का अन्तर है। भक्त माना सदा मंगता के संस्कार होंगे। मैं नीच हूँ, बाप ऊंचा है - यह संस्कार होंगे। वह रॉयल भिखारी हैं और आप आत्माओं में अधिकारीपन के संस्कार हैं। इसलिए परिचय मिलते ही अधिकारी बन गये। समझा? भक्तों को भी कोई जगह दो ना। दोनों में आप आयेंगे क्या? उन्हों का भी आधाकल्प है, आपका भी आधाकल्प है। उन्हों को भी गायन-माला में आना ही है। फिर भी दुनिया वालों से तो अच्छे हैं। और तरफ तो बुद्धि नहीं है, बाप की तरफ ही है। शुद्ध तो रहते हैं। पवित्रता का फल मिलता है - “गायन योग्य होने का''। आपकी पूजा होगी। उन्हों की पूजा नहीं होती, सिर्फ स्टेच्यु बनाके रखते हैं गायन के लिए। मीरा का कभी मंदिर नहीं होगा। देवताओं मिसल मीरा की पूजा नहीं होती, सिर्फ गायन है। अभी लास्ट जन्म में चाहे किसी को भी पूज लेवें। धरनी को भी पूजें तो वृक्ष को भी पूजें। लेकिन नियम प्रमाण उन्हों का सिर्फ गायन होता है, पूजन नहीं। आप पूज्य बनते हो। तो आप पूज्यनीय आत्मायें हो- यह नशा सदा स्मृति में रखो।
पूज्य आत्मा कभी कोई अपवित्र संकल्प को टच भी नहीं कर सकती। ऐसे पूज्य बने हो! अच्छा! चारों ओर के वर्से के अधिकारी आत्माओं को, सदा पढ़ाई में पास विद् ऑनर्स होने वाले, सदा वरदानों द्वारा वरदानी बन औरों को भी वरदानी बनाने वाले - ऐसे बाप, शिक्षक और सतगुरू के प्यारे, सदा रूहानी मौज में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते। पंजाब - राजस्थान ग्रुप सदा अपने को होलीहँस अनुभव करते हो? होलीहँस अर्थात् समर्थ और व्यर्थ को परखने वाले। वह जो हंस होते हैं वो कंकड़ और रत्न को अलग करते हैं, मोती और पत्थर को अलग करते हैं। लेकिन आप होलीहँस किसको परखने वाले हो? समर्थ क्या है और व्यर्थ क्या है, शुद्ध क्या है और अशुद्ध क्या है। जैसे हँस कभी कंकड़ को चुग नहीं सकता - अलग करके रख देगा, छोड़ देगा, ग्रहण नहीं करेगा। ऐसे आप होलीहँस व्यर्थ को छोड़ देते हो और समर्थ संकल्प को धारण करते हो। अगर व्यर्थ आ भी जाए तो धारण नहीं करेंगे। व्यर्थ को अगर धारण किया तो होलीहँस नहीं कहेंगे। वह तो बगुला धारण करता है। व्यर्थ तो बहुत सुना, बोला, किया लेकिन उसका परिणाम क्या हुआ? गँवाया, सब-कुछ गँवा दिया ना। तन भी गँवा दिया। देवताओं के तन देखो, और अभी के तन देखो क्या हैं? कितना अन्तर है!
जवान से भी बे अच्छे हैं। तो तन भी गँवाया, मन का सुख-शान्ति भी गँवाया, धन भी गँवाया। आपके पास कितना धन था? अथाह धन कहाँ गया? व्यर्थ में गँवा दिया। अभी जमा कर रहे हो या गँवा रहे हो? होलीहँस गँवाने वाला नहीं, जमा करने वाला। अभी 21 जन्म तन भी अच्छा मिलेगा और मन भी सदा खुश रहने वाला होगा। धन तो ऐसे होगा जैसे अभी मिट्टी है। अभी मिट्टी का भी मूल्य हो गया है लेकिन वहाँ रत्नों से तो खेलेंगे, रत्नों से मकान की सजावट होगी। तो कितना जमा कर रहे हो! जिसके पास जमा होता है उसको खुशी होती है। अगर जमा नहीं होता तो दिल छोटी होती है, जमा होता है तो दिल बड़ी होती है। अभी कितनी बड़ी दिल हो गई है! तो हर कदम में जमा का खाता बढ़ता जाता है या कभी-कभी जमा करते हो? अपना चार्ट अच्छी तरह से देखा है? ऐसे समय पर भी कभी-कभी व्यर्थ तो नहीं चला जाता? अभी तो समय की वैल्यू का पता पड़ गया है ना। संगम का एक सेकण्ड कितना बड़ा है! कहने में तो आयेगा एक-दो सेकण्ड ही तो गया लेकिन एक सेकण्ड कितना बड़ा है! यह याद रहे तो एक सेकण्ड भी नहीं गँवायेंगे। सेकण्ड गँवाना माना वर्ष गँवाना-संगम के एक सेकण्ड का इतना महत्व है! तो जमा करने वाले हैं, गँवाने वाले नहीं क्योंकि या तो होगा गँवाना, या होगा कमाना। सारे कल्प में कमाई करने का समय अभी है। तो होलीहँस अर्थात् स्वप्न में, संकल्प में भी कभी व्यर्थ गँवायेंगे नहीं। होली अर्थात् सदा पवित्रता की शक्ति से अपवित्रता को सेकण्ड में भगाने वाले। न केवल अपने लिए बल्कि औरों के लिए भी क्योंकि सारे विश्व को परिवर्तन करना है ना। पवित्रता की शक्ति कितनी महान् है, यह तो जानते हो ना! पवित्रता ऐसी अग्नि है जो सेकण्ड में विश्व के किचड़े को भस्म कर सकती है। सम्पूर्ण पवित्रता ऐसी श्रेष्ठ शक्ति है! अन्त में जब सब सम्पूर्ण हो जायेंगे तो आपके श्रेष्ठ संकल्प में लगन की अग्नि से यह सब किचड़ा भस्म हो जायेगा। योग ज्वाला हो। अंत में ऐसे धीरे-धीरे सेवा नहीं होगी। सोचा और हुआ-इसको कहते हैं विहंग मार्ग की सेवा। अभी अपने में भर रहे हो, फिर कार्य में लगायेंगे। जैसे देवियों के यादगार में दिखाते हैं कि ज्वाला से असुरों को भस्म कर दिया। असुर नहीं लेकिन आसुरी शक्तियों को खत्म कर दिया। यह किस समय का यादगार है? अभी का है ना। तो ऐसे ज्वालामुखी बनो। आप नहीं बनेंगे तो कौन बनेगा! तो अभी ज्वालामुखी बन आसुरी संस्कार, आसुरी स्वभाव-सब-कुछ भस्म करो। अपने तो कर लिये हैं ना या अपने भी कर रहे हो? अच्छा! पंजाब वाले निर्भय तो बन गये। डरने वाले तो नहीं हो न? ज्वालामुखी हो, डरना क्यों? मरे तो पड़े ही हो, फिर डरना किससे? और राजस्थान को तो “राज्य-अधिकार'' कभी भूलना नहीं चाहिए। राज्य भूल करके राजस्थान की रेती तो याद नहीं आ जाती ? वहाँ रेत बहुत होती है ना! तो सदा नये राज्य की स्मृति रहे। सभी निर्भय ज्वालामुखी बन प्रकृति और आत्माओं के अंदर जो तमोगुण है उसे भस्म करने वाले बनो। यह बहुत बड़ा काम है, स्पीड से करेंगे तब पूरा होगा।
अभी तो व्यक्तियों को ही सन्देश नहीं पहुँचा है, प्रकृति की तो बात पीछे है। तो स्पीड तेज करो। गली-गली में सेन्टर हों क्योंकि सरकमस्टांस प्रमाण एक गली से दूसरी गली में जा नहीं सकेंगे, एक-दो को देख भी नहीं सकेंगे। तो घर-घर में, गली-गली में हो जायेगा ना। अच्छा!
वरदान:-चलन और चेहरे द्वारा पुरूषोत्तम स्थिति का साक्षात्कार कराने वाले ब्रह्मा बाप समान भव
जैसे ब्रह्मा बाप साधारण तन में होते भी सदा पुरूषोत्तम अनुभव होते थे। साधारण में पुरूषोत्तम की झलक देखी, ऐसे फालो फादर करो। कर्म भल साधारण हो लेकिन स्थिति महान हो। चेहरे पर श्रेष्ठ जीवन का प्रभाव हो। जैसे लौकिक रीति में कई बच्चों की चलन और चेहरा बाप समान होता है, यहाँ चेहरे की बात नहीं लेकिन चलन ही चित्र है। हर चलन से बाप का अनुभव हो, ब्रह्मा बाप समान पुरूषोत्तम स्थिति हो - तब कहेंगे बाप समान।
स्लोगन:-जो एकरस स्थिति के श्रेष्ठ आसन पर स्थित रहता है - वही सच्चा तपस्वी है।
लवलीन स्थिति का अनुभव करो यह परमात्म प्यार आनंदमय झूला है, इस सुखदाई झूले में सदा झूलते रहो, परमात्म प्यार में लवलीन रहो तो कभी कोई परिस्थिति वा माया की हलचल आ नहीं सकती।
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