Today's Murli Hindi 20-2-2020 | om shanti aaj ki BK today's Murli | BK brahma Kumaris today Murli,daily Gyan Murli hindi
today's Murli Hindi 20-2-2020 BK Murli today's Hindi | Aaj ki shiv baba murli hindi | om Shanti aaj ki bk murli hindi today's Murli | Feb 2020 shiv baba ki aaj ki Murli Hindi me.bk murli daily Gyan Murli in hindi today. Mere baba ki aaj ki bk murli todays murli Hindi.brahma kumaris murli for today of madhuban also watch a live murli on peace of mind channel. Read yesterday BK Murli today Hindi and BK Murli in English
20-02-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन
“मीठे बच्चे - तुम खुदाई खिदमतगार सच्चे सैलवेशन आर्मी हो, तुम्हें सबको शान्ति की सैलवेशन देनी है”
प्रश्न:तुम बच्चों से जब कोई शान्ति की सैलवेशन मांगते हैं तो उन्हें क्या समझाना चाहिए?
उत्तर:उन्हें बोलो - बाप कहते हैं क्या अभी यहाँ ही तुमको शान्ति चाहिए। यह कोई शान्तिधाम नहीं है। शान्ति तो शान्तिधाम में ही हो सकती है, जिसको मूलवतन कहा जाता है। आत्मा को जब शरीर नहीं है तब शान्ति है। सतयुग में पवित्रता-सुख-शान्ति सब है। बाप ही आकर यह वर्सा देते हैं। तुम बाप को याद करो।
ओम् शान्ति।
Today's Murli Hindi 20-2-2020 | om shanti aaj ki BK today's Murli |
रूहानी बाप बैठ रूहानी बच्चों को समझाते हैं। सब मनुष्य मात्र यह जानते हैं कि मेरे अन्दर आत्मा है। जीव आत्मा कहते हैं ना। पहले हम आत्मा हैं, पीछे शरीर मिलता है। कोई ने भी अपनी आत्मा को देखा नहीं है। सिर्फ इतना समझते हैं कि आत्मा है। जैसे आत्मा को जानते हैं, देखा नहीं है, वैसे परमपिता परमात्मा के लिए भी कहते हैं परम आत्मा माना परमात्मा, परन्तु उनको देखा नहीं है। न अपने को, न बाप को देखा है। कहते हैं कि आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है। परन्तु यथार्थ रीति नहीं जानते। 84 लाख योनियां भी कह देते हैं, वास्तव में 84 जन्म हैं। परन्तु यह भी नहीं जानते कि कौन-सी आत्मायें कितने जन्म लेती हैं? आत्मा बाप को पुकारती है परन्तु न देखा है, न यथार्थ रीति जानती है। पहले तो आत्मा को यथार्थ रीति जानते तब बाप को जानते।
अपने को ही नहीं जानते तो समझाये कौन? इसको कहा जाता है-सेल्फ रियलाइज करना। सो बाप बिगर तो कोई करा न सके। आत्मा क्या है, कैसी है, कहाँ से आत्मा आती है, कैसे जन्म लेती है, कैसे इतनी छोटी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है, यह कोई भी नहीं जानते। अपने को नहीं जानते तो बाप को भी नहीं जानते। यह लक्ष्मी-नारायण भी मनुष्य का मर्तबा है ना। इन्होंने यह मर्तबा कैसे पाया? यह कोई भी नहीं जानते। जानना तो मनुष्य को ही चाहिए ना। कहते हैं यह वैकुण्ठ के मालिक थे परन्तु उन्होंने यह मालिकपना लिया कैसे, फिर कहाँ गये? कुछ भी नहीं जानते। अब तुम तो सब कुछ जानते हो। आगे कुछ भी नहीं जानते थे। जैसे बच्चा पहले जानता है क्या कि बैरिस्टर क्या होता? पढ़ते-पढ़ते बैरिस्टर बन जाता है। तो यह लक्ष्मी-नारायण भी पढ़ाई से बने हैं। बैरिस्टरी, डॉक्टरी आदि सबके किताब होते हैं ना। इनका किताब फिर है गीता।
वह भी किसने सुनाई? राजयोग किसने सिखाया? यह कोई नहीं जानते। उसमें नाम बदल लिया है। शिव जयन्ती भी मनाते हैं, वही आकर तुमको कृष्णपुरी का मालिक बनाते हैं। कृष्ण स्वर्ग का मालिक था ना परन्तु स्वर्ग को भी जानते नहीं। नहीं तो क्यों कहते कि कृष्ण ने द्वापर में गीता सुनाई। कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं, लक्ष्मी-नारायण को सतयुग में, राम को त्रेता में। उपद्रव लक्ष्मी-नारायण के राज्य में नहीं दिखाते। कृष्ण के राज्य में कंस, राम के राज्य में रावण आदि दिखाये हैं। यह किसको पता नहीं कि राधे-कृष्ण ही लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। बिल्कुल ही अज्ञान अन्धियारा है। अज्ञान को अन्धियारा कहा जाता है। ज्ञान को रोशनी कहा जाता है। अब सोझरा करने वाला कौन? वह है बाप। ज्ञान को दिन, भक्ति को रात कहा जाता है। अभी तुम समझते हो यह भक्ति मार्ग भी जन्म-जन्मान्तर चलता आया है। सीढ़ी उतरते आये हैं। कला कम होती जाती है।
मकान नया बनता है फिर दिन-प्रतिदिन आयु कम होती जायेगी। 3/4 पुराना हुआ तो उनको पुराना ही कहेंगे। बच्चों को पहले तो यह निश्चय चाहिए कि यह सर्व का बाप है, जो ही सर्व की सद्गति करते हैं, सर्व के लिए पढ़ाई भी पढ़ाते हैं। सर्व को मुक्तिधाम ले जाते हैं। तुम्हारे पास एम ऑब्जेक्ट है। तुम यह पढ़ाई पढ़कर जाए अपनी गद्दी पर बैठेंगे। बाकी सबको मुक्तिधाम में ले जायेंगे। चक्र पर जब समझाते हो तो उसमें दिखाते हो कि सतयुग में यह अनेक धर्म हैं नहीं। उस समय वह आत्मायें निराकारी दुनिया में रहती हैं। यह तो तुम जानते हो कि यह आकाश पोलार है। वायु को वायु कहेंगे, आकाश को आकाश। ऐसे नहीं कि सब परमात्मा हैं। मनुष्य समझते हैं कि वायु में भी भगवान है, आकाश में भी भगवान है। अब बाप बैठ सब बातें समझाते हैं। बाप के पास जन्म तो लिया फिर पढ़ाते कौन हैं? बाप ही रूहानी टीचर बन पढ़ाते हैं। अच्छा पढ़कर पूरा करेंगे तो फिर साथ ले जायेंगे फिर तुम आयेंगे पार्ट बजाने।
सतयुग में पहले-पहले तुम ही आये थे। अब फिर सब जन्मों के अन्त में आकर पहुँचे हो, फिर पहले आयेंगे। अब बाप कहते हैं दौड़ी लगाओ। अच्छी रीति बाप को याद करो, औरों को भी पढ़ाना है। नहीं तो इतने सबको पढ़ाये कौन? बाप का जरूर मददगार बनेंगे ना। खुदाई खिदमतगार भी नाम है ना। अंग्रेजी में कहते हैं सैलवेशन आर्मी। कौन-सी सैलवेशन चाहिए? सब कहते हैं शान्ति की सैलवेशन चाहिए। बाकी वह कोई शान्ति की सैलवेशन थोड़ेही देते हैं। जो शान्ति की सैलवेशन मांगते हैं उन्हें बोलो-बाप कहते हैं क्या अभी यहाँ ही तुमको शान्ति चाहिए? यह कोई शान्तिधाम थोड़ेही है। शान्ति तो शान्तिधाम में ही हो सकती है, जिसको मूलवतन कहा जाता है। आत्मा को शरीर नहीं है तो शान्ति में है। बाप ही आकर यह वर्सा देते हैं।
तुम्हारे में भी समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। प्रदर्शनी में अगर हम खड़े होकर सबका सुनें तो बहुतों की भूलें निकालें क्योंकि समझाने वाले नम्बरवार तो हैं ना। सब एकरस होते तो ब्राह्मणी ऐसे क्यों लिखती कि फलाने आकर भाषण करें। अरे, तुम भी ब्राह्मण हो ना। बाबा फलाने हमारे से होशियार हैं। होशियारी से ही मनुष्य दर्जा पाते हैं ना। नम्बरवार तो हैं ना। जब इम्तहान की रिजल्ट निकलेगी तो फिर तुमको आपेही साक्षात्कार होगा फिर समझेंगे हम तो श्रीमत पर नहीं चलते। बाप कहते हैं कोई भी विकर्म मत करो। देहधारी से लागत नहीं रखो। यह तो 5 तत्वों का बना हुआ शरीर है ना। 5 तत्वों की थोड़ेही पूजा करनी है वा याद करना है। भल इन आंखों से देखो परन्तु याद बाप को करना है। आत्मा को अब नॉलेज मिली है। अब हमको घर जाना है फिर वैकुण्ठ में आयेंगे। आत्मा को समझ सकते हैं, देख नहीं सकते, वैसे यह भी समझ सकते हैं। हाँ दिव्य दृष्टि से अपना घर वा स्वर्ग देख सकते हैं। बाप कहते हैं-बच्चे, मनमनाभव, मध्याजी भव माना बाप को और विष्णुपुरी को याद करो।
तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट ही यह है। बच्चे जानते हैं हमको अभी स्वर्ग में जाना है, बाकी सबको मुक्ति में जाना है। सब तो सतयुग में आ नहीं सकते। तुम्हारा है डिटीज्म। यह हो गया मनुष्य का धर्म। मूलवतन में तो मनुष्य नहीं हैं ना। यहाँ है मनुष्य सृष्टि। मनुष्य ही तमोप्रधान और फिर सतोप्रधान बनते हैं। तुम पहले शूद्र वर्ण में थे, अभी ब्राह्मण वर्ण में हो। यह वर्ण सिर्फ भारतवासियों के हैं। और कोई भी धर्म को ऐसे नहीं कहेंगे-ब्राह्मण वंशी, सूर्यवंशी। इस समय सब शूद्र वर्ण के हैं। जड़जड़ीभूत अवस्था को पाये हुए हैं। तुम पुराने बने तो सारा झाड़ जड़जड़ीभूत तमोप्रधान बना है फिर सारा झाड़ थोड़ेही सतोप्रधान बन जायेगा। सतोप्रधान नये झाड़ में तो सिर्फ देवी-देवता धर्म वाले ही हैं फिर तुम सूर्यवंशी से चन्द्रवंशी बन जाते हो। पुनर्जन्म तो लेते हो ना। फिर वैश्य, शूद्र वंशी...... यह सब बातें हैं नई।
हमको पढ़ाने वाला ज्ञान का सागर है। वही पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता है। बाप कहते हैं तुमको ज्ञान मैं देता हूँ। तुम देवी-देवता बन जाते हो फिर यह ज्ञान रहता नहीं। ज्ञान दिया जाता है अज्ञानियों को। सभी मनुष्य अज्ञान अन्धियारे में है, तुम हो सोझरे में। इनके 84 जन्मों की कहानी तुम जानते हो। तुम बच्चों को सारा ज्ञान है। मनुष्य तो कहते भगवान ने यह सृष्टि रची ही क्यों। क्या मोक्ष नहीं मिल सकता! अरे, यह तो बना-बनाया खेल है। अनादि ड्रामा है ना। तुम जानते हो आत्मा एक शरीर छोड़ जाकर दूसरा लेती है, इसमें चिंता करने की दरकार ही क्या? आत्मा ने जाकर अपना दूसरा पार्ट बजाया। रोयें तब जब वापिस चीज़ मिलनी हो। वापिस तो आती नहीं फिर रोने से क्या फायदा।
अभी तुम सबको मोहजीत बनना है। कब्रिस्तान से मोह क्या रखना है! इसमें तो दु:ख ही दु:ख है। आज बच्चा है, कल बच्चा भी ऐसा बन जाता जो बाप की पाग उतारने में भी देरी न करे। बाप से भी लड़ पड़ते हैं। इसको कहा ही जाता है निधन की दुनिया। कोई धनी-धोणी है नहीं जो शिक्षा दे। बाप जब ऐसी हालत देखते हैं तो धणका बनाने आते हैं। बाप ही आकर सबको धणका बनाते हैं। धणी आकर सब झगड़े मिटा देते हैं। सतयुग में कोई झगड़ा होता नहीं। सारी दुनिया के झगड़े मिटा देते, फिर जयजयकार हो जाती है। यहाँ मैजारिटी माताओं की है। दासी भी इनको समझते हैं। हथियाला बांधते समय कहते हैं, तुम्हारा पति ही ईश्वर गुरू आदि सब कुछ है। पहले मिस्टर फिर मिसेज। अब बाप आकर माताओं को आगे रखते हैं। तुम्हारे ऊपर कोई जीत पा न सके। तुमको बाप सब कायदे सिखला रहे हैं। मोहजीत राजा की एक कथा है। वह सब बनाई हुई कहानियाँ हैं।
सतयुग में तो अकाले मृत्यु होती ही नहीं। समय पर एक शरीर छोड़ दूसरा ले लेते हैं। साक्षात्कार होता है-अब यह शरीर बूढ़ा हुआ है फिर नया लेना है, छोटा बच्चा जाकर बनना है। खुशी से शरीर छोड़ देते हैं। यहाँ तो भल कितने भी बूढ़े होंगे, रोगी होंगे और समझेंगे भी कि कहाँ यह शरीर छूट जाए तो अच्छा है फिर भी मरने के समय रोयेंगे जरूर। बाप कहते हैं अभी तुम ऐसी जगह चलते हो जहाँ रोने का नाम नहीं। वहाँ तो खुशी ही खुशी रहती है। तुमको कितनी अपार बेहद की खुशी रहनी चाहिए। अरे, हम विश्व के मालिक बनते हैं! भारत सारे विश्व का मालिक था। अभी टुकड़ा-टुकड़ा हो गया है। तुम ही पूज्य देवता थे फिर पुजारी बनते हो। भगवान थोड़ेही आपेही पूज्य, आपेही पुजारी बनेंगे। अगर वह भी पुजारी बनें तो फिर पूज्य कौन बनाये? ड्रामा में बाप का पार्ट ही अलग है। ज्ञान का सागर एक है, उस एक की ही महिमा है जबकि ज्ञान का सागर है तो कब आकर ज्ञान देवे, जो सद्गति हो। जरूर यहाँ आना पड़े। पहले तो बुद्धि में यह बिठाओ कि हमको पढ़ाने वाला कौन है?
त्रिमूर्ति, गोला और झाड़ - यह हैं मुख्य चित्र। झाड़ को देखने से झट समझ जायेंगे हम तो फलाने धर्म के हैं। हम सतयुग में आ नहीं सकते। यह चक्र तो बहुत बड़ा होना चाहिए। लिखत भी पूरी हो। शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा देवता धर्म यानी नई दुनिया की स्थापना कर रहे हैं, शंकर द्वारा पुरानी दुनिया का विनाश फिर विष्णु द्वारा नई दुनिया की पालना कराते हैं, यह सिद्ध हो जाए। ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा, दोनों का कनेक्शन है ना। ब्रह्मा-सरस्वती सो फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। चढ़ती कला एक जन्म में होती है फिर उतरती कला में 84 जन्म लगते हैं। अब बाप कहते हैं वह शास्त्र आदि राइट हैं वा मैं राइट हूँ? सच्ची सत्य नारायण की कथा तो मैं सुनाता हूँ। अभी तुमको निश्चय है कि सत्य बाप द्वारा हम नर से नारायण बन रहे हैं।
पहली मुख्य यह भी एक बात है कि मनुष्य को कभी बाप, टीचर, गुरू नहीं कहा जाता। गुरू को कभी बाबा वा टीचर कहेंगे क्या? यहाँ तो शिवबाबा के पास जन्म लेते हो फिर शिवबाबा तुमको पढ़ाते हैं फिर साथ भी ले जायेंगे। मनुष्य तो ऐसा कोई होता नहीं, जिसको बाप, टीचर, गुरू कहा जाए। यह तो एक ही बाप है, उनको कहा जाता है सुप्रीम फादर। लौकिक बाप को कभी सुप्रीम फादर नहीं कहेंगे। सब याद फिर भी उनको करते हैं। वह बाप तो है ही। दु:ख में सब उनको याद करते हैं, सुख में कोई नहीं करते। तो वह बाप ही आकर स्वर्ग का मालिक बनाते हैं। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1. 5 तत्वों के बने हुए इन शरीरों को देखते हुए याद बाप को करना है। कोई भी देहधारी से लागत (लगाव) नहीं रखना है। कोई विकर्म नहीं करना है।
2. इस बने-बनाये ड्रामा में हर आत्मा का अनादि पार्ट है, आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है, इसलिए शरीर छोड़ने पर चिंता नहीं करनी है, मोहजीत बनना है।
वरदान:
बाह्यमुखी चतुराई से मुक्त रहने वाले बाप पसन्द सच्चे सौदागर भव
बापदादा को दुनिया की बाह्यमुखी चतुराई पसन्द नहीं। कहा जाता है भोलों का भगवान। चतुर सुजान को भोले बच्चे ही पसन्द हैं। परमात्म डायरेक्टरी में भोले बच्चे ही विशेष वी.आई.पी.हैं। जिनमें दुनिया वालों की आंख नहीं जाती-वही बाप से सौदा करके परमात्म नयनों के सितारे बन गये। भोले बच्चे ही दिल से कहते “मेरा बाबा”, इसी एक सेकण्ड के एक बोल से अनगिनत खजाने का सौदा करने वाले सच्चे सौदागर बन गये।
स्लोगन:
सर्व का स्नेह प्राप्त करना है तो मुख से सदा मीठे बोल बोलो।
Read also yesterday Om shanti Aaj ki Murli Hindi 18-2-2020 BK brahma kumaris toady murli hindi
Post a Comment