AAJ ki murli Hindi 21-2-2020 | om shanti Aaj ki BK today's murali Hindi

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21-02-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति “बापदादा” मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम्हें बाप द्वारा जो अद्वैत मत मिल रही है, उस मत पर चलकर कलियुगी मनुष्यों को सतयुगी देवता बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करना है”

प्रश्न:सभी मनुष्य-मात्र दु:खी क्यों बने हैं, उसका मूल कारण क्या है?
उत्तर:रावण ने सभी को श्रापित कर दिया है, इसलिए सभी दु:खी बने हैं। बाप वर्सा देता, रावण श्राप देता-यह भी दुनिया नहीं जानती। बाप ने वर्सा दिया तब तो भारतवासी इतने सुखी स्वर्ग के मालिक बनें, पूज्य बनें। श्रापित होने से पुजारी बन जाते हैं।

ओम् शान्ति।
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बच्चे यहाँ मधुबन में आते हैं बापदादा के पास। हाल में जब आते हो, देखते हो पहले बहन-भाई बैठते हैं फिर पीछे देखते हो बापदादा आया हुआ है तो बाप की याद आती है। तुम हो प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे, ब्राह्मण और ब्राह्मणियाँ। वह ब्राह्मण तो ब्रह्मा बाप को जानते ही नहीं हैं। तुम बच्चे जानते हो - बाप जब आते हैं तो ब्रह्मा-विष्णु-शंकर भी जरूर चाहिए। कहते ही हैं त्रिमूर्ति शिव भगवानुवाच। अब तीनों द्वारा तो नहीं बोलेंगे ना। यह बातें अच्छी रीति बुद्धि में धारण करनी है। बेहद के बाप से जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलता है, इसलिए सभी भक्त भगवान से क्या चाहते हैं? जीवनमुक्ति। अभी है जीवनबन्ध। सभी बाप को याद करते हैं कि आकर इस बंधन से मुक्त करो। 

अभी तुम बच्चे ही जानते हो कि बाबा आया हुआ है। कल्प-कल्प बाप आते हैं। पुकारते भी हैं-तुम मात पिता...... परन्तु इसका अर्थ तो कोई भी नहीं समझते। निराकार बाप के लिए समझ लेते हैं। गाते हैं परन्तु मिलता कुछ भी नहीं है। अभी तुम बच्चों को उनसे वर्सा मिलता है फिर कल्प बाद मिलेगा। बच्चे जानते हैं बाप आधाकल्प के लिए आकर वर्सा देते हैं और रावण फिर श्राप देते हैं। यह भी दुनिया नहीं जानती कि हम सभी श्रापित हैं। रावण का श्राप लगा हुआ है इसलिए सभी दु:खी हैं। भारतवासी सुखी थे। कल इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य भारत में था। देवताओं के आगे माथा टेकते हैं, पूजा करते हैं परन्तु सतयुग कब था, यह किसको पता नहीं।

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अब देखो लाखों वर्ष की आयु सिर्फ सतयुग की दिखा दी है, फिर त्रेता की, द्वापर-कलियुग की, उस हिसाब से मनुष्य कितने ढेर हो जाएं। सिर्फ सतयुग में ही ढेर मनुष्य हो जाएं। कोई भी मनुष्य की बुद्धि में नहीं बैठता है। बाप बैठ समझाते हैं कि देखो गाया भी जाता है 33 करोड़ देवतायें होते हैं। ऐसे थोड़ेही वह कोई लाखों वर्ष में हो सकते हैं। तो यह भी मनुष्यों को समझाना पड़े।

अभी तुम समझते हो कि बाबा हमको स्वच्छ बुद्धि बनाते हैं। रावण मलेच्छ बुद्धि बनाते हैं। मुख्य बात तो यह है। सतयुग में हैं पवित्र, यहाँ हैं अपवित्र। यह भी किसको पता नहीं है कि रामराज्य कब से कब तक? रावण राज्य कब से कब तक होता है? समझते हैं यहाँ ही राम राज्य भी है, रावण राज्य भी है। अनेक मत-मतान्तर हैं ना। जितने हैं मनुष्य, उतनी हैं मतें। अभी यहाँ तुम बच्चों को एक अद्वेत मत मिलती है जो बाप ही देते हैं। तुम अभी ब्रह्मा द्वारा देवता बन रहे हो। देवताओं की महिमा गाई जाती है - सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण...... हैं तो वह भी मनुष्य, मनुष्य की महिमा गाते हैं क्यों? जरूर फर्क होगा ना। अभी तुम बच्चे भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार मनुष्य को देवता बनाने का कर्तव्य सीखते हो। कलियुगी मनुष्य को तुम सतयुगी देवता बनाते हो अर्थात् शान्तिधाम, ब्रह्माण्ड का और विश्व का मालिक बनाते हो, यह तो शान्तिधाम नहीं है ना। 

यहाँ तो कर्म जरूर करना पड़े। वह है स्वीट साइलेन्स होम। अभी तुम समझते हो हम आत्मायें स्वीट होम, ब्रह्माण्ड के मालिक हैं। वहाँ दु:ख-सुख से न्यारे रहते हैं। फिर सतयुग में विश्व के मालिक बनते हैं। अभी तुम बच्चे लायक बन रहे हो। एम ऑब्जेक्ट एक्यूरेट सामने खड़ी है। तुम बच्चे हो योगबल वाले। वह हैं बाहुबल वाले। तुम भी हो युद्ध के मैदान पर, परन्तु तुम हो डबल अहिंसक। वह है हिंसक। हिंसा काम कटारी को कहा जाता है। सन्यासी भी समझते हैं यह हिंसा है इसलिए पवित्र बनते हैं। परन्तु तुम्हारे सिवाए बाप के साथ प्रीत कोई की है नहीं। आशिक माशूक की प्रीत होती है ना। वह आशिक माशूक तो एक जन्म के गाये जाते हैं। तुम सभी हो मुझ माशूक के आशिक। भक्तिमार्ग में मुझ एक माशूक को याद करते आये हो। अब मैं कहता हूँ यह अन्तिम जन्म सिर्फ पवित्र बनो और यथार्थ रीति याद करो तो फिर याद करने से ही तुम छूट जायेंगे। सतयुग में याद करने की दरकार ही नहीं रहेगी। दु:ख में सिमरण सब करते हैं। 

यह है नर्क। इनको स्वर्ग तो नहीं कहेंगे ना। बड़े आदमी जो धनवान हैं वह समझते हैं हमारे लिए तो यहाँ ही स्वर्ग है। विमान आदि सब कुछ वैभव हैं, कितना अन्धश्रद्धा में रहते हैं। गाते भी हैं तुम मात पिता..... परन्तु समझते कुछ नहीं। कौन से सुख घनेरे मिले-यह कोई भी नहीं जानते हैं। बोलती तो आत्मा है ना। तुम आत्मायें समझती हो हमको सुख घनेरे मिलने हैं। उसका नाम ही है-स्वर्ग, सुखधाम। स्वर्ग सभी को बहुत मीठा भी लगता है। तुम अभी जानते हो स्वर्ग में हीरे जवाहरों के कितने महल थे। भक्ति मार्ग में भी कितना अनगिनत धन था, जो सोमनाथ का मन्दिर बनाया है। एक-एक चित्र लाखों की कीमत वाले थे। वह सब कहाँ चले गये? कितना लूटकर ले गये! मुसलमानों ने जाए मस्जिद आदि में लगाया, इतना अथाह धन था। अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है हम बाप द्वारा फिर से स्वर्ग के मालिक बनते हैं। 

हमारे महल सोने के होंगे। दरवाजों पर भी जड़ित लगी हुई होगी। जैनियों के मन्दिर भी ऐसे बने हुए होते हैं। अब हीरे आदि तो नहीं हैं ना, जो पहले थे। अभी तुम जानते हो हम बाप से स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं। शिवबाबा आते भी भारत में ही हैं। भारत को ही शिव भगवान से स्वर्ग का वर्सा मिलता है। क्रिश्चियन भी कहते हैं क्राइस्ट से 3 हज़ार वर्ष पहले भारत हेवन था। राज्य कौन करते थे? यह किसको पता नहीं है। बाकी यह समझते हैं भारत बहुत पुराना है। तो यही स्वर्ग था ना। बाप को कहते भी हैं हेविनली गॉड फादर अर्थात् हेवन स्थापन करने वाला फादर। जरूर फादर आये होंगे, तब तुम स्वर्ग के मालिक बने होंगे। हर 5 हज़ार वर्ष बाद स्वर्ग के मालिक बनते हो फिर आधाकल्प बाद रावण राज्य शुरू होता है। चित्रों में ऐसा क्लीयर कर दिखाओ जो लाखों वर्ष की बात बुद्धि से ही निकल जाए। लक्ष्मी-नारायण कोई एक नहीं, इन्हों की डिनायस्टी होगी ना फिर उन्हों के बच्चे राजा बनते होंगे। राजायें तो बहुत बनते हैं ना। 

सारी माला बनी हुई है। माला को ही सिमरण करते हैं ना। जो बाप के मददगार बन बाप की सर्विस करते हैं उन्हों की ही माला बनती है। जो पूरा चक्र में आते, पूज्य पुजारी बनते हैं उन्हों का यह यादगार है। तुम पूज्य से पुजारी बनते हो तो फिर अपनी माला को बैठ पूजते हो। पहले माला पर हाथ लगाकर फिर माथा टेकेंगे। पीछे माला को फेरना शुरू करते हैं। तुम भी सारा चक्र लगाते हो फिर शिवबाबा से वर्सा पाते हो। यह राज़ तुम ही जानते हो। मनुष्य तो कोई किसके नाम पर, कोई किसके नाम पर माला फेरते हैं। जानते कुछ भी नहीं। अभी तुमको माला का सारा ज्ञान है, और कोई को यह ज्ञान नहीं। क्रिश्चियन थोड़ेही समझते हैं कि यह किसकी माला फेरते हैं। यह माला है ही उन्हों की जो बाप के मददगार बन सर्विस करते हैं। इस समय सब पतित हैं, जो पावन थे वह सब यहाँ आते-आते अब पतित बने हैं, फिर नम्बरवार सब जायेंगे। नम्बरवार आते हैं, नम्बरवार जाते हैं। कितनी समझने की बातें हैं। यह झाड़ है। कितने टाल-टालियां मठ पंथ हैं। अभी यह सारा झाड़ खलास होना है, फिर तुम्हारा फाउन्डेशन लगेगा। 

तुम हो इस झाड़ के फाउन्डेशन। उसमें सूर्यवंशी चन्द्रवंशी दोनों हैं। सतयुग-त्रेता में जो राज्य करने वाले थे, उन्हों का अभी धर्म ही नहीं हैं, सिर्फ चित्र हैं। जिनके चित्र हैं उन्हों की बायोग्राफी को तो जानना चाहिए ना। कह देते फलानी चीज़ लाखों वर्ष पुरानी है। अब वास्तव में पुराने ते पुराना है आदि सनातन देवी-देवता धर्म। उनके आगे तो कोई चीज़ हो नहीं सकती। बाकी सब 2500 वर्ष की पुरानी चीजें होंगी, नीचे से खोदकर निकालते हैं ना। भक्ति मार्ग में जो पूजा करते हैं वह पुराने चित्र निकालते हैं क्योंकि अर्थक्वेक में सब मन्दिर आदि गिर पड़ते हैं फिर नये बनते हैं। हीरे सोने आदि की खानियां जो अभी खाली हो गई हैं वह फिर वहाँ भरतू हो जायेंगी। 

यह सब बातें अभी तुम्हारी बुद्धि में हैं ना। बाप ने वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी समझाई है। सतयुग में कितने थोड़े मनुष्य होते हैं फिर वृद्धि को पाते हैं। आत्मायें सब परमधाम से आती रहती हैं। आते-आते झाड़ बढ़ता है। फिर जब झाड़ जड़जड़ीभूत अवस्था को पाता है तो कहा जाता है राम गयो रावण गयो, जिनका बहु परिवार है। अनेक धर्म हैं ना। हमारा परिवार कितना छोटा है। यह सिर्फ ब्राह्मणों का ही परिवार है। वह कितने अनेक धर्म हैं, जनसंख्या बतलाते हैं ना। वह सब हैं रावण सम्प्रदाय। यह सब जायेंगे। बाकी थोड़े ही रहेंगे। रावण सम्प्रदाय फिर स्वर्ग में नहीं आयेंगे, सब मुक्तिधाम में ही रहेंगे। बाकी तुम जो पढ़ते हो वह नम्बरवार आयेंगे स्वर्ग में।

अभी तुम बच्चों ने समझा है कैसे वह निराकारी झाड़ है, यह मनुष्य सृष्टि का झाड़ है। यह तुम्हारी बुद्धि में है। पढ़ाई पर ध्यान नहीं देंगे तो इम्तहान में नापास हो जायेंगे। पढ़ते और पढ़ाते रहेंगे तो खुशी भी रहेगी। अगर विकार में गिरा तो बाकी यह सब भूल जायेगा। आत्मा जब पवित्र सोना हो तब उसमें धारणा अच्छी हो। सोने का बर्तन होता है पवित्र गोल्डन। अगर कोई पतित बना तो ज्ञान सुना नहीं सकता। अभी तुम सामने बैठे हो, जानते हो गॉड फादर शिवबाबा हम आत्माओं को पढ़ा रहे हैं। हम आत्मायें इन आरगन्स द्वारा सुन रही हैं। पढ़ाने वाला बाप है, ऐसी पाठशाला सारी दुनिया में कहाँ होगी। वह गॉड फादर है, टीचर भी है, सतगुरू भी है, सबको वापिस ले जायेंगे। अभी तुम बाप के सम्मुख बैठे हो। सम्मुख मुरली सुनने में कितना फ़र्क है। 

जैसे यह टेप मशीन निकली है, सबके पास एक दिन आ जायेगी। बच्चों के सुख के लिए बाप ऐसी चीज़ें बनवाते हैं। कोई बड़ी बात नहीं है ना। यह सांवल शाह है ना। पहले गोरा था, अभी सांवरा बना है तब तो श्याम सुन्दर कहते हैं। तुम जानते हो हम सुन्दर थे, अब श्याम बने हैं फिर सुन्दर बनेंगे। सिर्फ एक क्यों बनेगा? एक को सर्प ने डसा क्या? सर्प तो माया को कहा जाता है ना। विकार में जाने से सांवरा बन जाते हैं। कितनी समझने की बातें हैं। बेहद का बाप कहते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते यह अन्तिम जन्म फार माई सेक (मेरे सदके) पवित्र बनो। बच्चों से यह भीख मांगते हैं। कमल फूल समान पवित्र बनो और मुझे याद करो तो यह जन्म भी पवित्र बनेंगे और याद में रहने से पास्ट के विकर्म भी विनाश होंगे। यह है योग अग्नि, जिससे जन्म-जन्मान्तर के पाप दग्ध होते हैं। सतोप्रधान से सतो, रजो, तमो में आते हैं तो कला कम हो जाती है। खाद पड़ती जाती है। अब बाप कहते हैं सिर्फ मामेकम् याद करो। बाकी पानी की नदियों में स्नान करने से थोड़ेही पावन बनेंगे। पानी भी तत्व है ना। 5 तत्व कहे जाते हैं। यह नदियाँ कैसे पतित-पावनी हो सकती हैं। नदियाँ तो सागर से निकलती हैं। पहले तो सागर पतित-पावन होना चाहिए ना। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:

1) विजय माला में आने के लिए बाप का मददगार बन सर्विस करनी है। एक माशूक के साथ सच्ची प्रीत रखनी है। एक को ही याद करना है।
2) अपनी एक्यूरेट एम ऑबजेक्ट को सामने रख पूरा पुरूषार्थ करना है। डबल अहिंसक बन मनुष्य को देवता बनाने का श्रेष्ठ कर्तव्य करते रहना है।

वरदान:मैं पन के भान को मिटाने वाले ब्रह्मा बाप समान श्रेष्ठ त्यागी भव

सम्बन्ध का त्याग, वैभवों का त्याग कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन हर कार्य में, संकल्प में भी औरों को आगे रखने की भावना रखना अर्थात् अपने पन को मिटा देना, पहले आप करना...यह है श्रेष्ठ त्याग। इसे ही कहा जाता स्वयं के भान को मिटा देना। जैसे ब्रह्मा बाप ने सदा बच्चों को आगे रखा। “मैं आगे रहूं” इसमें भी सदा त्यागी रहे, इसी त्याग के कारण सबसे आगे अर्थात् नम्बरवन में जाने का फल मिला। तो फालो फादर।

स्लोगन:
फट से किसी का नुक्स निकाल देना-यह भी दु:ख देना है।

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