Read aaj ki Shiv Baba murli In Hindi me or Daily Gyan murli in Hindi and English 27 Nov 2019
Aaj ki Gyan murli in Hindi English or shiv baba murli in Hindi |
27-11-2019 प्रात:मुरलीओम् शान्ति"बापदादा"' मधुबन
“मीठे बच्चे - बाबा की दृष्टि हद और बेहद से भी पार जाती है, तुम्हें भी हद (सतयुग), बेहद (कलियुग) से पार जाना है''
प्रश्नः-ऊंच ते ऊंच ज्ञान रत्नों की धारणा किन बच्चों को अच्छी होती है?
उत्तर:- जिनका बुद्धियोग एक बाप के साथ है, पवित्र बने हैं, उन्हें इन रत्नों की धारणा अच्छी होगी। इस ज्ञान के लिए शुद्ध बर्तन चाहिए। उल्टे-सुल्टे संकल्प भी बन्द हो जाने चाहिए। बाप के साथ योग लगाते-लगाते बर्तन सोना बने तब रत्न ठहर सकें।
ओम शान्ति।
मीठे-मीठे रूहानी बच्चों को रूहानी बाप बैठ रोज़-रोज़ समझाते हैं। यह तो समझाया है बच्चों को-ज्ञान, भक्ति और वैराग्य का यह सृष्टि चक्र बना हुआ है। बुद्धि में यह ज्ञान रहना चाहिए। तुम बच्चों को हद और बेहद से पार जाना है। बाप तो हद और बेहद से पार है। उनका भी अर्थ समझना चाहिए ना। रूहानी बाप बैठ समझाते हैं। वह भी टॉपिक समझानी है कि ज्ञान, भक्ति, पीछे है वैराग्य। ज्ञान को कहा जाता है दिन, जबकि नई दुनिया है। उसमें यह भक्ति अज्ञान है नहीं। वह है हद की दुनिया क्योंकि वहाँ बहुत थोड़े होते हैं। फिर आहिस्ते-आहिस्ते वृद्धि होती है। आधा समय बाद भक्ति शुरू होती है। वहाँ सन्यास धर्म होता ही नहीं। सन्यास वा त्याग होता नहीं। फिर बाद में सृष्टि की वृद्धि होती है।
ऊपर से आत्मायें आती जाती हैं। यहाँ वृद्धि होती रहती। हद से शुरू होती है, बेहद में जाती है। बाप की तो हद और बेहद से पार दृष्टि जाती है। जानते हैं हद में कितने थोड़े बच्चे होते हैं फिर रावण राज्य में कितनी वृद्धि हो जाती है। अब तुमको हद और बेहद से भी पार जाना है। सतयुग में कितनी छोटी दुनिया है। वहाँ सन्यास वा वैराग्य आदि होता नहीं। बाद में द्वापर से लेकर फिर और धर्म शुरू होते हैं। सन्यास धर्म भी होता है जो घरबार का सन्यास करते हैं। सबको जानना तो चाहिए ना। उनको कहा जाता हठयोग और हद का सन्यास। सिर्फ घरबार छोड़ जंगल में जाते हैं। द्वापर से भक्ति शुरू होती है। ज्ञान तो होता ही नहीं। ज्ञान माना सतयुग-त्रेता सुख। भक्ति माना अज्ञान और दु:ख। यह अच्छी रीति समझाना होता है फिर दु:ख और सुख से पार जाना है। हद बेहद से पार। मनुष्य जांच करते हैं ना। कहाँ तक समुद्र है, आसमान है। बहुत कोशिश करते हैं परन्तु अन्त पा नहीं सकते हैं। एरोप्लेन में जाते हैं।
उसमें भी इतना तेल चाहिए ना जो फिर वापिस भी लौट सकें। बहुत दूर तक जाते हैं परन्तु बेहद में जा नहीं सकते। हद तक ही जायेंगे। तुम तो हद, बेहद से पार जाते हो। अभी तुम समझ सकते हो पहले नई दुनिया में हद है। बहुत थोड़े मनुष्य होते हैं। उसको सतयुग कहा जाता है। तुम बच्चों को रचना के आदि, मध्य, अन्त की नॉलेज होनी चाहिए ना। यह नॉलेज और कोई में है नहीं। तुमको समझाने वाला बाप है जो बाप हद और बेहद से पार है और कोई समझा न सके। रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं फिर कहते इससे पार जाओ। वहाँ तो कुछ भी रहता नहीं। कितना भी दूर जाते हैं, आसमान ही आसमान है।
इनको कहा जाता है हद बेहद से पार। कोई अन्त नहीं पा सकते। कहेंगे बेअन्त। बेअन्त कहना तो सहज है परन्तु अन्त का अर्थ समझना चाहिए। अभी तुमको बाप समझ देते हैं। बाप कहते हैं मैं हद को भी जानता हूँ, बेहद को भी जानता हूँ। फलाने-फलाने धर्म फलाने-फलाने समय स्थापन हुए हैं! दृष्टि जाती है सतयुग की हद तरफ। फिर कलियुग के बेहद तरफ। फिर हम पार चले जायेंगे। जहाँ कुछ नहीं। सूर्य चांद के भी ऊपर हम जाते हैं, जहाँ हमारा शान्तिधाम, स्वीटहोम है। यूँ सतयुग भी स्वीट होम है। वहाँ शान्ति भी है तो राज्य-भाग्य सुख भी है-दोनों ही हैं। घर जायेंगे तो वहाँ सिर्फ शान्ति होगी। सुख का नाम नहीं लेंगे। अभी तुम शान्ति भी स्थापन कर रहे हो और सुख-शान्ति भी स्थापन कर रहे हो। वहाँ तो शान्ति भी है, सुख का राज्य भी है। मूलवतन में तो सुख की बात नहीं।
आधाकल्प तुम्हारा राज्य चलता है फिर आधाकल्प के बाद रावण का राज्य आता है। अशान्ति है ही 5 विकारों से। 2500 वर्ष तुम राज्य करते हो फिर 2500 वर्ष बाद रावण राज्य होता है। उन्हों ने तो लाखों वर्ष लिख दिया है। एकदम जैसे बुद्धू बना दिया है। पांच हज़ार वर्ष के कल्प को लाखों वर्ष कह देना बुद्धू-पना कहेंगे ना। ज़रा भी सभ्यता नहीं है। देवताओं में कितनी दैवी सभ्यता थी। वह अब असभ्यता हो पड़ी है। कुछ नहीं जानते। आसुरी गुण आ गये हैं। आगे तुम भी कुछ नहीं जानते थे। काम कटारी चलाए आदि-मध्य-अन्त दु:खी बना देते हैं इसलिए उनको कहा ही जाता है रावण सम्प्रदाय। दिखाया है राम ने बन्दर सेना ली। अब रामचन्द्र त्रेता का, वहाँ फिर बन्दर कहाँ से आये और फिर कहते राम की सीता चुराई गई। ऐसी बातें तो वहाँ होती ही नहीं।
जीव जानवर आदि 84 लाख योनियां जितनी यहाँ हैं उतनी सतयुग-त्रेता में थोड़ेही होंगी। यह सारा बेहद का ड्रामा बाप बैठ समझाते हैं। बच्चों को बहुत दूरांदेशी बनना है। आगे तुमको कुछ भी पता नहीं था। मनुष्य होकर और नाटक को नहीं जानते हैं। अभी तुम समझते हो सबसे बड़ा कौन है? ऊंच ते ऊंच भगवान्।
श्लोक भी गाते हैं ऊंचा तेरा नाम...... अब तुम्हारे सिवाए और कोई की बुद्धि में नहीं है। तुम्हारे में भी नम्बरवार हैं। बाप हद और बेहद का दोनों राज़ समझाते हैं। उनसे पार कुछ भी है नहीं। वह है तुम्हारे रहने का स्थान, जिसको ब्रह्माण्ड भी कहते हैं। जैसे यहाँ तुम आकाश तत्व में बैठे हो, इनमें कुछ देखने में आता है क्या? रेडियो में कहते हैं आकाशवाणी। अब यह आकाश तो बेअन्त है। अन्त पा नहीं सकते। तो आकाशवाणी कहने से मनुष्य क्या समझेंगे। यह जो मुख है यह है पोलार। मुख से वाणी (आवाज़) निकलती है। यह तो कॉमन बात है। मुख से आवाज़ निकलना जिसको आकाशवाणी कहा जाता है।
बाप को भी आकाश द्वारा वाणी चलानी पड़े। तुम बच्चों को अपना भी राज़ सारा बताया है। तुमको निश्चय होता है। है बहुत सहज। जैसे हम आत्मा हैं वैसे बाप भी परम आत्मा है। ऊंच ते ऊंच आत्मा है ना। सबको अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है। सबसे ऊंच ते ऊंच भगवान फिर प्रवृत्ति मार्ग का युगल मेरू। फिर नम्बरवार माला देखो कितनी थोड़ी है फिर सृष्टि बढ़ते-बढ़ते कितनी बड़ी हो जाती है। कितने करोड़ दानों अर्थात् आत्माओं की माला है। यह सब है पढ़ाई। बाप जो समझाते हैं उनको अच्छी रीति बुद्धि में धारण करो। झाड़ की डिटेल तो तुम सुनते रहते हो। बीज ऊपर में है। यह वैराइटी झाड़ है। इनकी आयु कितनी है। झाड़ वृद्धि को पाता रहता है तो सारा दिन बुद्धि में यही रहे। इस सृष्टि रूपी कल्प वृक्ष की आयु बिल्कुल एक्यूरेट है।
5 हज़ार वर्ष से एक सेकण्ड का भी फर्क नहीं हो सकता। तुम बच्चों की बुद्धि में अब कितनी नॉलेज है, जो अच्छे मजबूत हैं। मजबूत तब होंगे जब पवित्र हों। इस नॉलेज की धारणा करने के लिए सोने का बर्तन चाहिए। फिर ऐसा सहज हो जायेगा जैसे बाबा के लिए सहज है। फिर तुमको भी कहेंगे मास्टर नॉलेजफुल। फिर नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार माला का दाना बन जायेंगे। ऐसी-ऐसी बातें बाबा बिगर कोई समझा न सकें। यह आत्मा भी समझा रही है। बाप भी इस तन द्वारा ही समझाते हैं, न कि देवताओं के शरीर से। बाप एक ही बार आकर गुरू बनते हैं फिर भी बाप को ही पार्ट बजाना है। 5 हजार वर्ष बाद आकर पार्ट बजायेंगे।
बाप समझाते हैं ऊंच ते ऊंच मैं हूँ। फिर है मेरू। जो आदि में महाराजा-महारानी हैं, वह फिर जाकर अन्त में आदि देव, आदि देवी बनेंगे। यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है। तुम कहाँ भी समझाओ तो वन्डर खायेंगे। यह तो ठीक बताते हैं। मनुष्य सृष्टि का बीजरूप ही नॉलेजफुल है। उनके बिगर और कोई नॉलेज दे नहीं सकते। यह सब बातें धारण करनी हैं परन्तु बच्चों को धारणा होती नहीं है। है बहुत सिम्पुल। कोई मुश्किलात नहीं है। एक तो याद की यात्रा चाहिए इसमें, जो फिर पवित्र बर्तन में रत्न ठहरें।
यह ऊंच ते ऊंच रत्न हैं। बाबा तो जवाहरी था। बहुत अच्छा हीरा माणिक आदि आता था तो चांदी की डिब्बी में कपूस आदि में अच्छी रीति रखते थे। जो कोई भी देखे तो कहेंगे यह तो बड़ी फर्स्टक्लास चीज है। यह भी ऐसे है। अच्छी चीज़ अच्छे बर्तन में शोभती है। तुम्हारे कान सुनते हैं। उनमें धारणा होती है। पवित्र होगा, बुद्धियोग बाप से होगा तो धारणा अच्छी होगी। नहीं तो सब निकल जायेगा। आत्मा भी है कितनी छोटी। उनमें कितना ज्ञान भरा हुआ है। कितना अच्छा शुद्ध बर्तन चाहिए। कोई संकल्प भी न उठे। उल्टे-सुल्टे संकल्प सब बन्द हो जाने चाहिए। सब तरफ से बुद्धियोग हटाना है।
मेरे साथ योग लगाते-लगाते बर्तन सोना बना दो जो रत्न ठहर सकें। फिर दूसरों को दान करते रहेंगे। भारत को महादानी माना जाता है, वह धन दान तो बहुत करते हैं। परन्तु यह है अविनाशी ज्ञान रत्नों का दान। देह सहित जो कुछ है वह सब छोड़-कर एक के साथ बुद्धि का योग रहे। हम तो बाप के हैं, इसमें ही मेहनत लगती है। एम ऑब्जेक्ट तो बाप बता देते हैं। पुरुषार्थ करना बच्चों का काम है। अब ही इतना ऊंच पद पा सकेंगे। कोई भी उल्टा-सुल्टा संकल्प वा विकल्प न आये। बाप ही नॉलेज का सागर, हद बेहद से पार है।
सब बैठ समझाते हैं। तुम समझते हो बाबा हमको देखते हैं परन्तु हम तो हद-बेहद से पार ऊपर चला जाता हूँ। मैं रहने वाला भी वहाँ का हूँ। तुम भी हद बेहद से पार चले जाओ। संकल्प विकल्प कुछ भी न आये। इसमें मेहनत चाहिए। गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। हथ कार डे दिल यार डे। गृहस्थी तो बहुत हैं। गृहस्थी जितना उठाते हैं उतना घर में रहने वाले बच्चे नहीं। सेन्टर चलाने वाले, मुरली चलाने वाले भी ना पास हो जाते हैं और पढ़ने वाले ऊंच चले जाते हैं। आगे तुमको सब मालूम पड़ता जायेगा।
बाबा बिल्कुल ठीक बताते हैं। हमको जो पढ़ाते थे उनको माया खा गई। महारथी को माया एकदम हप कर गई। हैं नहीं। मायावी ट्रेटर बन जाते हैं। विलायत में भी ट्रेटर बन पड़ते हैं ना। कहाँ-कहाँ जाकर शरण लेते हैं। जो पॉवरफुल होते हैं उस तरफ चले जाते हैं। इस समय तो मौत सामने है ना तो बहुत ताकत वाले पास जायेंगे। अभी तुम समझते हो बाप ही पॉवरफुल है। बाप है सर्वशक्तिमान। हमको सिखलाते-सिखलाते सारे विश्व का मालिक बना देते हैं। वहाँ सब कुछ मिल जाता है।
कोई अप्राप्त वस्तु नहीं होती, जिसकी प्राप्ति के लिए हम पुरूषार्थ करें। वहाँ कोई ऐसी चीज़ होती नहीं जो तुम्हारे पास न हो। सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार पद पाते हैं। बाप बिगर ऐसी बातें कोई नहीं जानते। सब हैं पुजारी। भल बड़े-बड़े शंकराचार्य आदि हैं, बाबा उन्हों की महिमा भी सुनाते हैं। पहले पवित्रता की ताकत से भारत को बहुत अच्छा थमाने निमित्त बनते हैं। सो भी जब सतोप्रधान होते हैं। अभी तो तमोप्रधान हैं। उनमें क्या ताकत रखी है। अभी तुम जो पुजारी थे सो फिर पूज्य बनने का पुरुषार्थ कर रहे हो। अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा ज्ञान है। बुद्धि में धारणा रहे और तुम समझाते रहो। बाप को भी याद करो। बाप ही सारे झाड़ का राज़ समझाते हैं।
बच्चों को मीठा भी ऐसा बनने का है। युद्ध है ना। माया के तूफान भी बहुत आते हैं। सब सहन करना पड़ता है। बाप की याद में रहने से तूफान सब चले जायेंगे। हातमताई का खेल बताते हैं ना। मुहलरा डालते थे, माया चली जाती थी। मुहलरा निकालने से ही माया आ जाती थी। छुईमुई होती है ना। हाथ लगाओ तो मुरझा जाते हैं। माया बड़ी तीखी है, इतना ऊंच पढ़ाई पढ़ते-पढ़ते बैठे-बैठे गिरा देती है इसलिए बाप समझाते रहते हैं अपने को भाई-भाई समझो तो फिर हद बेहद से पार चले जायेंगे। शरीर ही नहीं तो फिर दृष्टि कहाँ जायेगी। इतनी मेहनत करनी है, सुनकर फाँ नहीं हो जाना है।
कल्प-कल्प तुम्हारा पुरुषार्थ चलता है और तुम अपना भाग्य पाते हो। बाप कहते हैं पढ़ा हुआ सब भूलो। बाकी जो कभी नहीं पढ़े हो वह सुनो और याद करो। उनको कहा जाता है भक्ति मार्ग। तुम राजऋषि हो ना। जटायें खुली हो और मुरली चलाओ। साधु-सन्त आदि जो सुनाते हैं वह सब है मनुष्यों की मुरली। यह है बेहद के बाप की मुरली। सतयुग-त्रेता में तो ज्ञान के मुरली की दरकार ही नहीं। वहाँ न ज्ञान की, न भक्ति की दरकार है। यह ज्ञान तुमको मिलता है इस संगमयुग पर और बाप ही देने वाला है। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1)बुद्धि में ज्ञान रत्नों को धारण कर दान करना है। हद बेहद से पार ऐसी स्थिति में रहना है जो कभी भी उल्टा-सुल्टा संकल्प वा विकल्प न आये। हम आत्मा भाई-भाई हैं, यही स्मृति रहे।
2)माया के तूफानों से बचने के लिए मुख में बाप की याद का मुहलरा डाल लेना है। सब कुछ सहन करना है। छुईमुई नहीं बनना है। माया से हार नहीं खानी है।
वरदान:-
सर्व सत्ताओं को सहयोगी बनाए प्रत्यक्षता का पर्दा खोलने वाले सच्चे सेवाधारी भव
प्रत्यक्षता का पर्दा तब खुलेगा जब सब सत्ता वाले मिलकर कहेंगे कि श्रेष्ठ सत्ता, ईश्वरीय सत्ता, आध्यात्मिक सत्ता है तो यही एक परमात्म सत्ता है। सभी एक स्टेज पर इकट्ठे हो ऐसा स्नेह मिलन करें। इसके लिए सबको स्नेह के सूत्र में बांध समीप लाओ, सहयोगी बनाओ। यह स्नेह ही चुम्बक बनेगा जो सब एक साथ संगठन रूप में बाप की स्टेज पर पहुंचेंगे। तो अब अन्तिम प्रत्यक्षता के हीरो पार्ट में निमित्त बनने की सेवा करो तब कहेंगे सच्चे सेवाधारी।
स्लोगन:-
सेवा द्वारा सर्व की दुआयें प्राप्त करना - यह आगे बढ़ने की लिफ्ट है।
Aaj ki murli in English or Daily Gyan murli in English Read today's murli in English 27 Nov 2019
27/11/19 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Sweet children, Baba's vision goes beyond the limited and the unlimited. You too have to go beyond the limited (golden age) and the unlimited (iron age).
Question:
Which children are able to imbibe the highest-on-high jewels of knowledge very well?
Answer:
Those whose intellects are connected in yoga to the one Father and who have become pure will be able to imbibe these jewels very well. A pure vessel is needed for this knowledge. All types of wrong thoughts have to end. By having yoga with the Father, your vessel becomes golden and the jewels are then able to stay in there.
Om Shanti
The spiritual Father sits here and explains every day to you sweetest spiritual children. It has been explained to you children that this world cycle of knowledge, devotion and disinterest has been created. This knowledge should remain in your intellects. You children have to go beyond the limited and the unlimited. The Father is beyond the limited and the unlimited. You should understand the meaning of that too. The spiritual Father sits here and explains to you. This topic - knowledge, devotion and disinterest - also has to be explained. Knowledge is called the day when it is the new world. Devotion and ignorance do not exist there. That is a limited world because there are very few people there, and then growth gradually takes place. After half the cycle, devotion begins. The sannyas religion doesn't exist there.
There is no renunciation there. Then, later, the world population grows. Souls continue to come from up above and growth continues to take place here. It begins by being limited and goes on to become unlimited. The Father's vision goes beyond the limited and the unlimited. He knows that there are very few children in the limited and that so much growth then takes place in the kingdom of Ravan. You now have to go beyond the limited and the unlimited. The world is so small in the golden age. There is no renunciation or disinterest there. Later, in the copper age, the other religions begin. There is the sannyas religion where they renounce their homes and families.
Everyone has to know about these things. That is called hatha yoga and limited renunciation. They simply renounce their homes and families and go to the forests. Devotion begins in the copper age; there is no knowledge. Knowledge means the golden and silver ages and happiness, whereas devotion means ignorance and sorrow. This has to be explained very well. Then you have to go beyond happiness and sorrow, beyond the limited and the unlimited. People try to discover how high the sky is and how deep the ocean is. They try so hard, but are unable to reach the end. They fly an aeroplane, but it has to have enough fuel so that it can also return.
They go very far, but they cannot go into the unlimited. They only go as far as the limited. You are going beyond the limited and the unlimited. You can now understand that, in the beginning, in the new world, there is the limited. There are very few people and that is called the golden age. You children should have the knowledge of the beginning, middle and end of creation. No one else has this knowledge. The Father, who is beyond the limited and unlimited, is the One who explains to you. No one else can explain this to you. He explains to you the secrets of the beginning, middle and end of creation. He then says: You have to go beyond this. There is nothing there. No matter how far people go, there is just the sky everywhere. That is called going beyond the limited and the unlimited. No one can reach the end. They would say that it is infinite.
To say that it is infinite is easy, but they should understand the meaning of infinite. The Father is now giving you understanding. The Father says: I know the limited and also the unlimited. Such-and-such a religion was established at such-and-such a time. Your vision goes towards the limit of the golden age and then to the unlimited iron age. Then, we will go beyond to where there is nothing. We are going even above the sun and moon to where our sweet home, the land of peace, is. In fact, the golden age too is our sweet home, where there is peace and also the fortune of the kingdom and happiness; they are both there. When we go home, there will just be peace there.
You wouldn't mention happiness there. You are now establishing peace and also peace and happiness. There is peace and also the kingdom of happiness there. There is no question of happiness in the incorporeal world. Your kingdom continues for half the cycle and then, after half the cycle, there is the kingdom of Ravan. There is peacelessness through the five vices. You rule for 2500 years. After 2500 years, there is the kingdom of Ravan. Those people have written about hundreds of thousands of years. They have made everyone into complete buddhus. To say that the cycle of 5000 years is hundreds of thousands of years is real foolishness. They do not have any manners at all.
The deities had such divine manners. That has now become a lack of manners; they don't know anything. They have developed devilish traits. Previously, you too didn't know anything. By using the sword of lust and causing one another sorrow from the beginning, through the middle to the end they made each other unhappy and that is why they are called Ravan's community. They have portrayed Rama taking an army of monkeys. Ramachandra belonged to the silver age, so how could there have been monkeys there? Then, they also say that the Sita of Rama was abducted. Such things do not happen there. There won’t be as many of the 8.4 million species of living things and animals etc. that exist here, in the golden and silver ages.
The Father sits here and explains the whole unlimited drama. You children have to become very far-sighted. Previously, you didn't know anything at all. Although you are human beings, you didn't know the play; you now understand who the greatest of all is. The Highest on High is God. They also sing the verses: Your name is the highest…. This is not in the intellect of anyone except you. You are also numberwise. The Father tells you the secrets of both the limited and the unlimited. There is nothing beyond that place. That is your place of residence which is also called Brahmand. Similarly, you are sitting in the element of sky here, but can you see anything of it? They refer to the radio as the sound from the ether. This sky is infinite: you cannot reach its end. So, what would people understand by calling it the sound from the ether?
The mouth is also hollow. Sound emerges from the mouth. It is common for sound to emerge from your mouth and that is called "akaashvani" (sound from ether). The Father also has to speak through the ether. He has told you children the whole significance of yourselves. You now have faith. It is very easy. Just as we are souls, so the Father is the Supreme Soul. He is the highest soul of all. Everyone has received his own part. The highest of all is God, and then there is the dual-bead of the family path. Then, look how small the numberwise rosary is! Then, as the world grows, it becomes so large. There is the rosary of so many millions of beads, that is, of souls. All of this is the study. Imbibe very well in your intellects whatever the Father explains. You continue to hear the details of the tree. The Seed is up above. This is a variety tree.
Its duration is so long. The tree continues to grow and so let just this remain in your intellects the whole day. The duration of the kalpa tree of this world is absolutely accurate. In 5000 years there cannot be the difference of even a second. You children who are very strong have so much knowledge in your intellects. Only when you are pure can you be strong. In order to imbibe this knowledge, a golden vessel is required. It will then become so easy - as easy as it is for Baba. Then, you will also be called master knowledge-full. The beads of the rosary will be created, numberwise, according to the efforts you make. No one, except Baba, can explain these things to you. This soul is also explaining to you. The Father only explains through this body, not through the body of the deities. The Father only comes once and becomes your Guru but, even then, it is the Father who has to play that part. He will come and play His part in 5000 years’ time.
The Father explains: I am the Highest on High. Then, there is the dual-bead. Those who are the emperor and empress at the beginning then become Adi Dev and Adi Devi at the end. You have all of this knowledge in your intellects. If you explain this anywhere, they will be amazed: What you are saying is right. Only the Seed of the human world tree is knowledge-full. No one, apart from Him, can give knowledge. All of these things have to be imbibed, but children are unable to imbibe them. It is very simple; there is no difficulty. First, the pilgrimage of remembrance is needed so that the jewels can stay in a pure vessel.
The Father explains: I am the Highest on High. Then, there is the dual-bead. Those who are the emperor and empress at the beginning then become Adi Dev and Adi Devi at the end. You have all of this knowledge in your intellects. If you explain this anywhere, they will be amazed: What you are saying is right. Only the Seed of the human world tree is knowledge-full. No one, apart from Him, can give knowledge. All of these things have to be imbibed, but children are unable to imbibe them. It is very simple; there is no difficulty. First, the pilgrimage of remembrance is needed so that the jewels can stay in a pure vessel.
These are the highest-on-high jewels. Baba was a jeweller. He used to receive very good diamonds and emeralds etc. and he would keep them in silver boxes, beautifully laid on cotton wool. Anyone who saw them would say: This is something first class. It is the same here. Good things look nice in good containers. Your ears hear this and you imbibe it. If there is purity and your intellects are connected in yoga to the Father, you will imbibe it well. Otherwise, everything will flow away. A soul is so tiny and is filled with so much knowledge. Such good and pure vessels are required. No thoughts should arise. All wrong and bad thoughts should end. Remove your intellects’ yoga from everything else. By having yoga with Me, your vessels will be made golden so that the jewels can stay in it. You can then continue to donate to others.
Bharat is considered to be a great donor. People donate a lot of physical wealth. However, this is the donation of the imperishable jewels of knowledge. Renounce everything including your bodies and let your intellects remain connected in yoga to the One. We belong to the Father and it is in this that effort is needed. The Father gives you your aim and objective. It is the children's duty to make effort. It is only now that you can claim such a high status. Let there be no wrong or impure thoughts. The Father alone is the Ocean of Knowledge. He is beyond the limited and the unlimited. He sits here and explains everything. You think that Baba is seeing you, but in fact, I go up above, beyond the limited and the unlimited.
Bharat is considered to be a great donor. People donate a lot of physical wealth. However, this is the donation of the imperishable jewels of knowledge. Renounce everything including your bodies and let your intellects remain connected in yoga to the One. We belong to the Father and it is in this that effort is needed. The Father gives you your aim and objective. It is the children's duty to make effort. It is only now that you can claim such a high status. Let there be no wrong or impure thoughts. The Father alone is the Ocean of Knowledge. He is beyond the limited and the unlimited. He sits here and explains everything. You think that Baba is seeing you, but in fact, I go up above, beyond the limited and the unlimited.
I am the Resident of that place. You too have to go beyond the limited and the unlimited. Let there be no ordinary or impure thoughts. This requires effort. Whilst living at home with your families, you have to live like a lotus. Let your hands do the work whilst your hearts remember Baba. There are many householders. The children who live here do not take as much knowledge as householders do. Even those who run centres and read the murli fail, whereas those who are just studying go higher. As you progress further, you will continue to know everything. Everything Baba tells you is absolutely right. Some of those who used to teach have been eaten by Maya.
Maya completed swallowed some maharathis; they are no longer here. They become influenced by Maya and become traitors. Abroad too, some become traitors. They go to other places and seek refuge there. They go to the side that is powerful. At this time, death is just ahead, and so they go to the one who has a lot of power. You now understand that only the Father is powerful. The Father is the Almighty Authority. By teaching us, He makes us into the masters of the whole world. There, we receive everything. There is nothing lacking there for which we would have to make effort to attain. There, there is nothing that you don’t have; and, in that too, you attain a status, numberwise according to the efforts you made. No one, except the Father, knows these things. All are worshippers. There are the great Shankaracharyas etc. and Baba tells you their praise too.
They are the ones who become the instruments to support Bharat well at first with the power of purity, that is, when they too are satopradhan. They are now tamopradhan. What power do they have now? You, who were worshippers, are now making effort to become worthy of worship. You now have all the knowledge in your intellects. Let your intellects imbibe these things and continue to explain them to others. Also remember the Father. The Father alone explains the secrets of the whole tree. You children have to become just as sweet. This is a battle, is it not? Many storms of Maya come. Everything has to be tolerated. When you stay in remembrance of the Father, all storms will go away. They show the play of Hatamtai - putting a bead in your mouth. When the bead is put in your mouth, Maya goes away. When the bead is removed, Maya comes.
There is also the “touch-me-not” plant; as soon as you touch it, it wilts. Maya is very clever. Whilst you are studying such an elevated study and just sitting here, she makes you fall and this is why the Father continues to explain: Consider yourselves to be brothers and you will be able to go beyond the limited and unlimited. If bodies do not remain, where would your vision go? You have to make so much effort. You mustn't become unconscious on just hearing about it. Your efforts continue every cycle and you claim your fortune of the kingdom. The Father says: Forget everything you have studied, but listen to the things that you have never heard before and have remembrance.
That is called the path of devotion. You are Raj Rishis. Open your locks of hair and conduct the murli! Everything that the sages and holy men etc. relate is a murli of human beings. This is the murli of the unlimited Father. In the golden and silver ages, there is no need for the murli of knowledge. There, there is no need for knowledge or devotion. You receive this knowledge at the confluence age and it is only the Father who gives it to you. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for Dharna:
1. Let your intellect imbibe the jewels of knowledge and donate them. Remain in such a stage of being beyond the limited and the unlimited that you never have any wrong or impure thoughts. Have the awareness that you souls are brothers.
2. In order to be saved from storms of Maya, put the bead of remembrance of the Father in your mouth. Everything has to be tolerated. Do not become a “touch-me-not” plant. Do not be defeated by Maya.
Blessing:
May you be a true server and open the curtains of revelation by making all the authorities of all fields co-operative.
The curtains of revelation will open when those of all authorities come together and say that here, there is the authority of God; it is the most elevated authority, the Godly authority, the authority of spirituality. Let everyone come together on one stage and have a sneh-milan (a gathering of love). For this, tie everyone with a thread of love to bring them closer and make them co-operative. This love will become a magnet that draws all of them together to the one place, on the Father’s stage. So now, become instruments and do the service of the hero parts of the final revelation and you will then be said to be true servers.
Slogan:
To receive everyone’s blessings from your service is a lift to move higher.