Aaj ki murli hindi 1 October 2021 | om shanti ki murli hindi English 1/10/2021| Shiv Baba ki Murli
01-10-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"' मधुबन “
मीठे बच्चे - तुम बहुत ऊंच जाति के हो , तुम्हें ब्राह्मण से देवता बनना है इसलिए गन्दी विकारी आदतों को मिटा देना है ''
प्रश्नः- किस बात का कनेक्शन इस पढ़ाई से नहीं है? उत्तर:- ड्रेस आदि का कनेक्शन इस पढ़ाई से नहीं है, इसमें कोई ड्रेस बदलने की बात ही नहीं। बाप तो आत्माओं को पढ़ाते हैं। आत्मा जानती है यह पुराना पतित शरीर है, इसको कैसा भी हल्का सल्का कपड़ा पहनाओ, हर्जा नहीं। शरीर और आत्मा दोनों ही काले हैं। बाप काले (सांवरे) को ही गोरा बनाते हैं।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप के सामने रूहानी बच्चे बैठे हैं, रूहानी पाठशाला में। यह जिस्मानी पाठशाला नहीं है। रूहानी पाठशाला में रूहानी बाप बैठ राजयोग सिखला रहे हैं, रूहानी बच्चों को। तुम बच्चे जानते हो हम फिर से नर से नारायण अथवा देवी-देवता पद प्राप्त करने के लिए रूहानी बाप के पास बैठे हैं। यह है नई बात। यह भी तुम जानते हो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, वे डबल सिरताज थे। लाइट का ताज और रतन जड़ित ताज दोनों थे। पहले-पहले होता है लाइट का ताज, जो होकर गये उनको सफेद लाइट दिखाते हैं। यह है पवित्रता की निशानी। अपवित्र को कभी लाइट नहीं दिखायेंगे। तुम्हारा फोटो निकालें तो लाइट नहीं दे सकते। यह पवित्रता की निशानी देते हैं। लाइट और डार्क। ब्रह्मा का दिन लाइट, ब्रह्मा की रात डार्क। डार्क अर्थात् उन पर लाइट नहीं है। तुम बच्चे जानते हो - बाप ही आकर, इतने जो पतित अर्थात् डार्क ही डार्क हैं, उनको पावन बनाते हैं। अब तो पवित्र राजधानी है नहीं। सतयुग में थे यथा राजा रानी तथा प्रजा, सब पवित्र थे। इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था। इस चित्र पर तुम बच्चों को बहुत अच्छी रीति समझाना है। यह है तुम्हारी एम आब्जेक्ट। समझाने के लिए और भी अच्छे चित्र हैं इसलिए इतने चित्र रखे जाते हैं।
मनुष्य कोई फट से समझते नहीं हैं कि हम इस याद की यात्रा से तमोप्रधान से सतोप्रधान बनेंगे, फिर मुक्ति वा जीवनमुक्ति में चले जायेंगे। दुनिया में किसको पता नहीं कि जीवन-मुक्ति किसको कहा जाता है। लक्ष्मी-नारायण का राज्य कब था - यह भी किसको पता नहीं है। अब तुम जानते हो हम बाप से पवित्रता का दैवी स्वराज्य ले रहे हैं। चित्रों पर तुम अच्छी रीति समझा सकते हो। भारत में ही डबल सिरताज वालों की पूजा करते हैं। ऐसा चित्र भी सीढ़ी में है। वह ताज है परन्तु लाइट का ताज नहीं है। पवित्र की ही पूजा होती है। लाइट है पवित्रता की निशानी। बाकी ऐसे नहीं कि कोई तख्त पर बैठने से ही लाइट निकलती है। नहीं, यह पवित्रता की निशानी है। तुम अब पुरूषार्थी हो इसलिए तुम पर लाइट नहीं दे सकते हैं। देवी-देवताओं की आत्मा और शरीर दोनों पवित्र हैं। यहाँ तो कोई का पवित्र शरीर है नहीं इसलिए लाइट दे नहीं सकते। तुम्हारे में कोई तो पूरा पवित्र रहते हैं। कोई फिर सेमी पवित्र रहते हैं।
माया के तूफान बहुत आते हैं तो उनको सेमी पवित्र कहेंगे। कोई तो एकदम पतित बन पड़ते हैं। खुद भी समझते हैं हम पतित बन गये हैं। आत्मा ही पतित बनती है, उनको लाइट दे नहीं सकते। तुम बच्चों को यह भूलना नहीं चाहिए कि हम ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे हैं, तो कितनी रॉयल्टी होनी चाहिए। समझो कोई मेहतर है, वह एम.एल.ए. वा एम.पी. बन जाते हैं अथवा पढ़ाई करके कोई पोजीशन पा लेते हैं तो टिपटॉप हो जाते हैं। ऐसे बहुत हो गये हैं। जाति भल वही है - परन्तु पोजीशन मिलने से नशा चढ़ जाता है। फिर ड्रेस आदि भी ऐसी ही पहनेंगे। वैसे अब तुम भी पढ़ रहे हो, पतित से पावन बनने के लिए। वह भी पढ़ाई से डॉक्टर, बैरिस्टर आदि बनते हैं। परन्तु पतित तो हैं ना क्योंकि उन्हों की पढ़ाई कोई पावन बनने के लिए नहीं है। तुम तो जानते हो हम भविष्य में पवित्र देवी-देवता बनते हैं, तो शूद्रपने की आदतें मिटती जायेंगी। अन्दर में यह नशा रहना चाहिए कि हमको परमपिता परमात्मा डबल सिरताज बनाते हैं। हम शूद्र से ब्राह्मण बनते हैं फिर देवता बनेंगे तो फिर वह गन्दी विकारी आदतें मिट जाती हैं। आसुरी चीज़ें सब छोड़नी पड़ें। मेहतर से एम.पी. बन जाते हैं तो रहन-सहन मकान आदि सब फर्स्टक्लास बन जाते हैं। उन्हों का तो है इस समय के लिए। तुम तो जानते हो कि हम भविष्य में क्या बनने वाले हैं।
Aaj ki murli hindi 1 October 2021 | om shanti ki murli 1 October 2021 Today's Murli English 1/10/2021 | bk murli | daily murli english | today's Murli English 1/10/2021
अपने साथ ऐसी-ऐसी बातें करनी चाहिए। हम क्या थे, हम अभी क्या बने हैं। तुम भी शूद्र जाति के थे, अब विश्व के मालिक बनते हो। जब कोई ऊंच पद पाता है तो फिर वह फ़खुर रहता है। तो तुम भी थे कौन? (पतित) छी-छी थे। अब तुमको भगवान पढ़ाकर बेहद का मालिक बनाते हैं। यह भी तुम समझते हो परमपिता परमात्मा जरूर यहाँ ही आकर राजयोग सिखलायेंगे। मूलवतन वा सूक्ष्मवतन में तो नहीं सिखलायेंगे। दूरदेश के रहने वाली आत्मायें तुम सब हो, यहाँ आकर पार्ट बजाती हो। 84 जन्मों का पार्ट बजाना ही है। वह तो कह देते हैं 84 लाख योनियाँ। कितना घोर अन्धियारे में हैं। अभी तुम समझते हो - 5 हजार वर्ष पहले हम देवी-देवता थे। अब तो पतित बन गये हैं। गाते भी हैं हे पतित-पावन आओ, हमको पावन बनाओ।
परन्तु समझते नहीं हैं। अभी बाप स्वयं पावन बनाने आये हैं। राजयोग सिखा रहे हैं। पढ़ाई बिगर कोई ऊंच पद पा नहीं सकते। तुम जानते हो बाबा हमको पढ़ाकर नर से नारायण बनाते हैं। एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है। प्रजा पद कोई एम आब्जेक्ट नहीं है। चित्र भी लक्ष्मी-नारायण का है। ऐसे चित्र कहाँ रख पढ़ाते होंगे? तुम्हारी बुद्धि में सारी नॉलेज है। हम 84 जन्म ले पतित बने हैं। सीढ़ी का चित्र बड़ा अच्छा है। यह पतित दुनिया है ना, इसमें साधू सन्त सब आ जाते हैं। वह खुद भी गाते रहते हैं पतित-पावन आओ। पतित दुनिया को पावन दुनिया नहीं कहेंगे। नई दुनिया है पावन दुनिया। पुरानी पतित दुनिया में कोई पावन रह न सके। तो तुम बच्चों को कितना नशा रहना चाहिए। हम गॉड फादरली स्टूडेन्ट हैं, ईश्वर हमको पढ़ाते हैं। गरीबों को ही बाप आकर पढ़ाते हैं। गरीबों के कपड़े आदि मैले होते हैं ना। तुम्हारी आत्मा तो पढ़ती है ना।
आत्मा जानती है यह पुराना शरीर है। इनको तो हल्का सल्का कोई भी कपड़ा पहनाया तो हर्जा नहीं है। इसमें कोई ड्रेस आदि बदलने की वा भभका करने की बात नहीं है। ड्रेस के साथ कोई कनेक्शन ही नहीं। बाप तो आत्माओं को पढ़ाते हैं। शरीर तो पतित है, इन पर कितना भी अच्छा कपड़ा पहनो। परन्तु आत्मा और शरीर पतित है ना। कृष्ण को सांवरा दिखाते हैं ना। उनकी आत्मा और शरीर दोनों काले थे। गांवड़े का छोरा था, तुम सब गांवड़े के छोरे थे। दुनिया में मनुष्य मात्र निधनके हैं। बाप को जानते ही नहीं। हद का बाप तो सबको है। बेहद का बाप तुम ब्राह्मणों को ही मिला है। अब बेहद का बाप तुमको राजयोग सिखला रहे हैं। भक्ति और ज्ञान। भक्ति का जब अन्त हो तब फिर बाप आकर ज्ञान दे। अभी है अन्त। सतयुग में यह कुछ भी होता नहीं। अभी पुरानी दुनिया का विनाश आकर पहुँचा है। पावन दुनिया को स्वर्ग कहा जाता है। चित्रों में कितना क्लीयर समझाया जाता है। राधे कृष्ण ही फिर लक्ष्मी-नारायण बनते हैं। यह भी किसको पता नहीं है। तुम जानते हो दोनों ही अलग-अलग राजधानी के थे। तुमने स्वर्ग का स्वयंवर भी देखा है। पाकिस्तान में तुम बच्चों को बहलाने के लिए सब साज़ थे, सब साक्षात्कार तुमको होते थे।
अभी तुम जानते हो - हम राजयोग सीख रहे हैं, यह भूलना नहीं चाहिए। भल रसोई का काम करते हैं अथवा बर्तन मांजते हैं परन्तु पढ़ती तो सबकी आत्मा है ना। यहाँ सब आकर बैठते हैं इसलिए बड़े-बड़े आदमी आते नहीं हैं - समझते हैं यहाँ तो सब गरीब ही हैं, इसलिए लज्जा आती है। बाप तो है ही गरीब निवाज़। कोई-कोई सेन्टर्स पर मेहतर भी आते हैं। कोई मुसलमान भी आते हैं। बाप कहते हैं - देह के सब धर्म छोड़ो। हम गुजराती हैं, हम फलाना हैं - यह सब देह-अभिमान है। यहाँ तो आत्माओं को परमात्मा पढ़ाते हैं। बाप कहते हैं - मैं आया भी हूँ साधारण तन में। तो साधारण के पास साधारण ही आयेंगे। यह तो समझते हैं यह तो जौहरी था। बाप खुद रिमाइन्ड कराते हैं कि कल्प पहले भी हमने कहा था कि हम साधारण बूढ़े तन में आता हूँ। बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्तिम जन्म में मैं प्रवेश करता हूँ। इनको कहते हैं कि तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
सिर्फ एक अर्जुन को तो घोड़े गाड़ी के रथ में बैठ ज्ञान नहीं दिया ना, उसे पाठशाला नहीं कहा जायेगा। न युद्ध का मैदान है, यह पढ़ाई है। बच्चों को पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहिए। हमको पूरा पढ़कर डबल सिरताज बनना है। अभी तो कोई ताज नहीं है। भविष्य में डबल ताजधारी बनना है। द्वापर से लाइट चली जाती है तो फिर सिंगल ताज रहता है। सिंगल ताज वाले डबल ताज वालों को पूजते हैं। यह भी निशानी जरूर होनी चाहिए। बाबा चित्रों के लिए डायरेक्शन देते रहते हैं तो चित्र बनाने वालों को तो मुरली पर बहुत अटेन्शन देना पड़े। चित्रों पर किसी को भी समझाना बड़ा सहज होता है। जैसे कॉलेज में नक्शे पर दिखायेंगे तो बुद्धि में आ जायेगा। यूरोप उस तरफ है, आइलैण्ड है, लण्डन उस तरफ है। नक्शा ही नहीं देखा होगा तो उनको क्या पता यूरोप कहाँ है। नक्शा देखने से झट बुद्धि में आ जायेगा। अब तुम जानते हो ऊपर में हैं पूज्य डबल सिरताज देवी-देवतायें। फिर नीचे आते हैं तो पुजारी बनते हैं। सीढ़ी उतरते हैं ना। यह सीढ़ी तो बड़ी सहज है। जो कोई भी समझ सकते। परन्तु कोई-कोई की बुद्धि में कुछ बैठता ही नहीं है। तकदीर ही ऐसी है। स्कूल में पास, नापास तो होते ही हैं। तकदीर में नहीं है तो पुरूषार्थ भी नहीं होता, बीमार पड़ जाते हैं।
पढ़ न सके। कोई तो पूरा पढ़ते हैं। परन्तु फिर भी वह है जिस्मानी पढ़ाई, यह है रूहानी पढ़ाई। इसके लिए सोने की बुद्धि चाहिए। बाप सोना जो एवर प्योर है, उसको याद करने से तुम्हारी आत्मा सोनी बनती जायेगी। कहा जाता है कि यह तो जैसे एकदम ठिक्कर बुद्धि हैं। वहाँ ऐसे नहीं कहेंगे। वह तो स्वर्ग था। यह भूल गये हैं कि भारत स्वर्ग था। यह भी कहाँ प्रदशनी में समझा सकते हो, फिर रिपीट भी करा सकते हो। प्रोजेक्टर में यह नहीं हो सकता है। पहले-पहले तो यह त्रिमूर्ति, लक्ष्मी-नारायण और सीढ़ी का चित्र बहुत जरूरी है। यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र में सारा 84 जन्मों का नॉलेज आ जाता है। बच्चों का सारा दिन यही चिंतन चलना चाहिए। हर एक सेन्टर में मुख्य चित्र तो जरूर रखने हैं। चित्रों पर अच्छा समझ सकेंगे। ब्रह्मा द्वारा यह राजधानी स्थापन हो रही है। हम हैं प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ। आगे हम शूद्र वर्ण के थे, अभी हम ब्राह्मण वर्ण के बने हैं फिर देवता बनना है। शिवबाबा हमको शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं।
हमारी एम आब्जेक्ट सामने खड़ी है। यह लक्ष्मी-नारायण स्वर्ग के मालिक थे फिर यह सीढ़ी कैसे उतरे। क्या से क्या बन जाते हैं। एकदम जैसे बुद्धू बन जाते हैं। यह लक्ष्मी-नारायण भारत में राज्य करते थे। भारतवासियों को पता होना चाहिए ना। फिर क्या हुआ, कहाँ चले गये। क्या इन्हों पर कोई ने जीत पाई? उन्होंने लड़ाई में कोई को हराया? न कोई से जीता, न हारा। यह तो सारी माया की बात है। रावण राज्य शुरू हुआ और 5 विकारों में गिर राजाई गॅवाई, फिर 5 विकारों पर जीत पाने से वह बनते हैं। अभी है रावण राज्य का भभका। हम गुप्त रीति अपनी राजधानी स्थापन कर रहे हैं। तुम कितने साधारण हो। पढ़ाने वाला कितना ऊंच ते ऊंच है और निराकार बाप पतित शरीर में आकर बच्चों को ऐसा (लक्ष्मी-नारायण) बनाते हैं। दूरदेश से पतित दुनिया पतित शरीर में आते हैं। सो भी अपने को लक्ष्मी-नारायण नहीं बनाते, तुम बच्चों को बनाते हैं। परन्तु पूरा पुरूषार्थ नहीं करते हो बनने के लिए। दिन-रात पढ़ना और पढ़ाना है। बाबा दिन प्रतिदिन बड़ी सहज युक्तियाँ समझाते रहते हैं। लक्ष्मी-नारायण से ही शुरू करना चाहिए। उन्हों ने 84 जन्म कैसे लिये। फिर अन्तिम जन्म में पढ़ रहे हैं फिर उन्हों की डिनायस्टी बनती है। कितनी समझाने की बातें हैं। चित्रों के लिए बाबा डायरेक्शन देते हैं। कोई चित्र तैयार किया, झट बाबा के पास भाग आना चाहिए।
बाबा करेक्शन कर सब डायरेक्शन दे देंगे। बाबा कहते मैं सांवलशाह हूँ, हुण्डी भर जायेगी। कोई बात की परवाह नहीं है। इतने ढेर बच्चे बैठे हैं। बाबा जानते हैं किससे हुण्डी भरा सकते हैं। बाबा का ख्याल है जयपुर को जोर से उठाना है। वहाँ ही हठयोगियों का म्युजियम है। तुम्हारा फिर राजयोग का म्युजियम ऐसा अच्छा बना हुआ हो जो कोई भी आकर देखे। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:- 1) पवित्र ज्ञान को बुद्धि में धारण करने के लिए अपने बुद्धि रूपी बर्तन को सोने का बनाना है। याद से ही बर्तन सोने का होगा। 2) अभी ब्राह्मण बने हैं इसलिए शूद्रपने की सब आदतें मिटा देनी हैं। बहुत रॉयल्टी से रहना है। हम विश्व के मालिक बन रहे हैं - इस नशे में रहना है।
वरदान:- अपनी दृष्टि और वृत्ति के परिवर्तन द्वारा सृष्टि को बदलने वाले साक्षात्कारमूर्त भव
अपनी वृत्ति के परिवर्तन से दृष्टि को दिव्य बनाओ तो दृष्टि द्वारा अनेक आत्मायें अपने यथार्थ रूप, यथार्थ घर तथा यथार्थ राजधानी देखेंगी। ऐसा यथार्थ साक्षात्कार कराने के लिए वृत्ति में जरा भी देह-अभिमान की चंचलता न हो। तो वृत्ति के सुधार से दृष्टि दिव्य बनाओ तब यह सृष्टि परिवर्तन होगी। देखने वाले अनुभव करेंगे कि यह नैन नहीं लेकिन यह एक जादू की डिब्बिया हैं। यह नैन साक्षात्कार के साधन बन जायेंगे।
स्लोगन:- सेवा के उमंग-उत्साह के साथ, बेहद की वैराग्य वृत्ति ही सफलता का आधार है।
01/10/21 Morning Murli Om Shanti BapDada Madhuban
Essence: Sweet children, you are from a very elevated clan. You have to change from Brahmins into deities and you must therefore break all your dirty, vicious habits.
Question: What is not connected with this study? Answer: How you dress is not connected with this study. There is no question of changing your dress here. The Father teaches you souls. The soul knows that it has an old impure body and that it doesn’t matter what type of ordinary clothes you make it wear. The bodies and souls are both ugly. The Father changes those who are ugly and makes them beautiful.
Om shanti. You spiritual children are sitting in front of the spiritual Father in the spiritual school. This is not a worldly school. The spiritual Father sits in the spiritual school and teaches you spiritual children Raja Yoga. You children know that you are sitting with the spiritual Father in order to change from ordinary humans into Narayan, that is, to claim a deity status once again. This is something new. You also know that there was the kingdom of Lakshmi and Narayan and that they were double crowned.
They had both a crown of light and a crown studded with jewels. At first they have a crown of light. Those who have been here and gone are portrayed with a halo of white light around them. That is a symbol of purity. Impure ones can never be shown with a light. When your photograph is taken, a light cannot be shown in that. They use it as a symbol of purity. Light and dark: the day of Brahma is light and the night of Brahma is dark. Dark means there is no light around him. You children know that only the Father comes and changes those who are ugly, those who are impure, and makes them pure.
No pure kingdom exists now. In the golden age, as are the king and queen, so are the subjects; all are pure; it is the kingdom of Lakshmi and Narayan. You children have to explain very well using this picture. This is your aim and objective. There are still more good pictures for you to explain and this is why many pictures are kept here. People don't immediately understand that they will become satopradhan from tamopradhan through this pilgrimage of remembrance and that they will then go into liberation and then liberation-in-life. No one in the world knows what liberation-in-life is. No one even knows when the kingdom of Lakshmi and Narayan existed.
You know that you are now claiming the deity sovereignty of purity from the Father. You can explain very well using the pictures. It is only in Bharat that they worship those who are double crowned. There is such an image in the picture of the ladder. They have that crown, but not the crown of light. Only pure ones are worshipped. Light is a symbol of purity. It isn't that light emerges when anyone sits on the throne. No, it is a symbol of purity. You are now effort-makers and this is why you cannot be shown with that light. Both the souls and the bodies of deities are pure. Here, no one has a pure body and this is why they cannot be shown with that light. Some among you remain completely pure and some remain semi-pure.
They have many storms of Maya and so they are called semi-pure. Some become completely impure. They can understand for themselves that they have become completely impure. It is souls that become impure and cannot be shown with the light. You children should not forget that you are the children of the highest-on-high Father and so there should be so much royalty. For instance, when someone who is a toilet cleaner becomes an MLA or an MP, or he studies and attains a particular position, he becomes very tip-top. There are many like that. Although they belong to the same caste, when they receive that position, they become very intoxicated and would dress accordingly. In the same way, you too are now studying in order to become pure from impure.
They become doctors or barristers through their studies but they are also still impure because their studies are not for becoming pure. You know that you will become pure deities in the future and so your shudra habits will continue to be removed. Internally, you should have the intoxication that the Supreme Father, the Supreme Soul, is making you double crowned. We are changing from shudras into Brahmins and we will then become deities. So, those dirty, vicious habits have to be broken. All devilish things have to be renounced. When someone becomes an MP from a toilet cleaner, his standard of living and his residence etc. all become first-class. Theirs is only for this time. You know what you are going to become in the future. Talk to yourself in this way: What was I before and what have I now become? You too belonged to the shudra clan but you are now becoming the masters of the world.
When someone attains a high status, he has that intoxication. So, who were you? You were impure and dirty. Now, God is teaching you and making you into the masters of the unlimited. You understand that the Supreme Father, the Supreme Soul, definitely comes here to teach you Raja Yoga. He wouldn’t teach it in the incorporeal world or the subtle region. All of you souls are residents of the faraway land. You come here to play your parts. The parts of 84 births have to be played. They speak of 8.4 million species. They are in such extreme darkness. You now understand that you were deities 5000 years ago and that you have now become impure. People sing: O Purifier, come! Purify us! However, they don't understand that the Father Himself has come to make you pure and that He is teaching you Raja Yoga. No one can claim a high status without studying. You know that Baba teaches you and makes you into Narayan from ordinary humans. The aim and objective is in front of you. The status of a subject is not your aim and objective. There is the picture of Lakshmi and Narayan. Where else would they teach you with such a picture? You have all the knowledge in your intellects.
We have become impure by taking 84 births. The picture of the ladder is very good. This is the impure world and this also includes all the sages and holy men. They themselves continue to sing: O Purifier, come! The impure world cannot be called the pure world; the new world is the pure world. No one pure could stay in this old, impure world. You children should be so intoxicated that you are Godfatherly students and that God is teaching you. The Father comes and only teaches the poor. The clothes of poor people are very dirty. You souls are now studying. The soul knows that he has an old body and that it doesn't matter if you dress it in ordinary clothes. There is no question of changing your dress or having any show etc. There is no connection with how you dress. The Father only teaches you souls. Bodies are impure and even if you dress them in very good clothes, both bodies and souls are still impure.
They show images of Krishna as dark blue, because both his soul and his body were ugly and he was a village urchin. All of you were village urchins. All human beings in the world are orphans; they don't know the Father at all. Everyone has a limited father, but only you Brahmins have found the unlimited Father. The unlimited Father is now teaching you Raja Yoga. There is knowledge and there is devotion. When it is the end of devotion, the Father comes and gives you knowledge. It is now the end. None of these things exist in the golden age. The old world has now reached the stage when it is to be destroyed. The pure world is called heaven. This is explained very clearly in the pictures. Radhe and Krishna then become Lakshmi and Narayan. No one knows this either. You know that each belonged to a separate kingdom. You have seen the marriage ceremony of the golden age.
You children had all sorts of musical instruments to entertain you in Pakistan. You had visions of everything. You know that you are now studying Raja Yoga. You mustn't forget this. Although you may be cooking or washing dishes, it is the soul of everyone that is studying. Everyone comes and sits here. Eminent people don't come here because they believe that only the poor come here and so they feel embarrassed. The Father is the Lord of the Poor. Even toilet cleaners go to some centres. Those of Islam also come. The Father says: Renounce all bodily religions. “I am Gujarati, I am so-and-so” is all body consciousness. Here, the Supreme Father is teaching you souls. The Father says: I have entered an ordinary body. Only ordinary ones would come to an ordinary being. You understand that this one was a jewel merchant. The Father Himself reminds you of what He told you in the previous cycle: I enter an ordinary old body. I enter this one at the end of the last of his many births. I tell him: You don't know your own births. He didn't give knowledge to just Arjuna while sitting in a horse chariot.
That cannot be called a school nor is this a battlefield; this is a study. You children should pay full attention to studying. We have to study fully and become double crowned. Now, we have neither crown. We are to become double crowned in the future. The light disappears in the copper age and only a single crown remains. Those who have a single crown worship those who had a double crown. There should definitely be this symbol. Baba continues to give you directions for making pictures and so those who are going to make these pictures have to pay a lot of attention to the murli. It is very easy to explain with the pictures to anyone, just as in colleges they show something on a map so that it would enter their intellects that Europe is on this side, Ireland is on that side and London is on this side. How would anyone know where Europe is if he hadn't seen a map? When a map is seen, it quickly enters the intellect. You now know that, at the top, there are the worthy-of-worship, double crowned deities.
Then, as they come down, they become worshippers; they continue to come down the ladder. This picture of the ladder is very easy to understand and anyone can understand it. However, nothing sits in the intellects of some. Their fortune is such! Students pass or fail at school. If it is not in their fortune, they don't make that effort or they fall ill and are therefore unable to study. Some study fully, but those are still worldly studies, whereas this is a spiritual study. A golden intellect is required for this. By remembering the Father, the Gold, who is ever pure, you souls will continue to become like gold. It is said: This one has an intellect like pebbles. They wouldn't say that there. That was heaven. They have forgotten that Bharat was heaven. You can explain this at the exhibitions and you can then make them repeat it. You cannot do this with projectors. First of all, the pictures of the Trimurti, Lakshmi and Narayan and the ladder are very necessary. The knowledge of the whole 84 births is included in the picture of Lakshmi and Narayan. You children should constantly think about this throughout the day. Every centre should definitely have the main pictures. People will be able to understand very well from the pictures. This kingdom is being established through Brahma. We are the Brahma Kumars and Kumaris, the children of Prajapita Brahma. Previously, we belonged to the shudra clan and we now belong to the Brahmin clan.
We will then become deities. Shiv Baba changes us from shudras into Brahmins. Our aim and objective is in front of us. Lakshmi and Narayan were the masters of heaven and so how did they come down the ladder? Look at what they became from what they were: they became complete buddhus. Lakshmi and Narayan used to rule the kingdom in Bharat. The people of Bharat should know what happened then and where they went. Did someone conquer them? Did they defeat anyone in battle? Neither did they conquer anyone nor were defeated. All of this is a question of Maya. As soon as the kingdom of Ravan began, they fell into the five vices and lost their kingdom. Then, by conquering the five vices, they become that again. It is now the splendour of Ravan’s kingdom. We are establishing our kingdom in an incognito way. You are so ordinary and the One who is teaching you is the Highest on High. The incorporeal Father enters an impure body and makes you children become like them (Lakshmi and Narayan). He comes into the impure world from the faraway land and enters an impure body. Nevertheless, He doesn't make Himself into Lakshmi or Narayan. He makes you children that. However, you don’t make full effort to become that. Day and night, you have to study and teach others. Baba explains very easy methods to you day by day.
The explanation should begin with Lakshmi and Narayan. How did they take 84 births? They are now studying in their final birth and then their dynasty will be created. There are so many things to be explained. Baba gives you directions for the pictures. When you make a picture, you should come running to Baba. Baba will correct it and give you further directions. Baba says: I am the Emperor of all emperors. Your treasure-store will become full. You should have no concerns about anything. There are so many children sitting here. Baba knows with which ones He can have the treasure-store filled. Baba had the thought of uplifting Jaipur with great force. There is a museum of hatha yogis there. Your museum of Raja Yoga should be created so attractively that everyone can go and see it. Achcha.
To the sweetest, beloved, long-lost and now-found children, love, remembrance and good morning from the Mother, the Father, BapDada. The spiritual Father says namaste to the spiritual children.
Essence for dharna: In order for your intellect to imbibe pure knowledge, make the vessel of your intellect golden.
Only by having remembrance will your vessel become golden. You have now become Brahmins. Therefore, finish all shudra habits. Live with great royalty. Maintain the intoxication that you are becoming the masters of the world.
Blessing: May you transform your vision and attitude and become an image that grants visions and so transform the world.
Make your vision divine by transforming of your attitude and many souls will see their real form, their real home and their real kingdom from your vision. In order to give them that real vision, let there not be the slightest mischievousness of body consciousness in your attitude. Reform your attitude and make your vision divine and this world will be transformed. Those who see you will experience your eyes to be not just eyes but containers of magic. Your eyes will become a means to give them visions.
Slogan: Along with zeal and enthusiasm for doing service, to have an attitude of unlimited disinterest is the means of success.
Om Shanti
Post a Comment