Aaj ki murli in Hindi 11-4-2022 | BK brahma Kumaris today murli Hindi


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 11-04-2022   प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा"'  मधुबन 

 
“मीठे बच्चे - तुम्हारी बुद्धि में सारा दिन सर्विस के ही ख्यालात चलने चाहिए, तुम्हें सबका कल्याण करना है क्योंकि तुम हो अन्धों की लाठी'' 
 

प्रश्नः-  ऊंच पद पाने के लिए मुख्य कौन सी धारणा चाहिए? 

उत्तर:-  ऊंच पद तब मिलेगा जब अपनी कर्मेन्द्रियों पर पूरा-पूरा कन्ट्रोल होगा। अगर कर्मेन्द्रियाँ वश नहीं, चलन ठीक नहीं, बहुत अधिक तमन्नायें हैं, हबच (लालच) है तो ऊंच पद से वंचित हो जायेंगे। ऊंच पद पाना है तो मात-पिता को पूरा फालो करो। कर्मेन्द्रिय जीत बनो। गीत:-  नयन हीन को राह दिखाओ प्रभू......  
 
ओम् शान्ति। प्रदर्शनी के लिए यह गीत बहुत अच्छा है, ऐसे नहीं प्रदर्शनी में रिकार्ड नहीं बजाये जा सकते। इस पर भी तुम समझा सकते हो क्योंकि पुकारते तो सब हैं। परन्तु यह नहीं जानते हैं कि जाना कहाँ है और कौन ले जायेगा। जैसेकि ड्रामा अथवा भावी वश भक्तों को भक्ति करनी है। जब भक्ति पूरी होती है तब ही बाप आते हैं। कितने दर-दर भटकते हैं। मेले मलाखड़े लगते हैं। दिन-प्रतिदिन वृद्धि को पाते जाते हैं, श्रद्धा से तीर्थो पर जाना भटकना चलता ही आता है। बहुत समय हो जाता है तो भी गवर्मेन्ट स्टैम्प आदि बनाती रहती है। साधुओं आदि के भी स्टैम्प बनाती है। बर्थ डे मनाते हैं। यह सब है रावण-राज्य का अथवा माया का भभका, उनका भी मेला मलाखड़ा चाहिए। 
 
आधाकल्प से तुम रावणराज्य में भटकते रहे। अब बाबा आकर रावणराज्य से छुड़ाए रामराज्य में ले जाते हैं। दुनिया यह नहीं जानती कि आपेही पूज्य आपेही पुजारी यह महिमा किसकी है। पहले 16 कला सम्पूर्ण, पूज्य रहते हैं फिर 2 कला कम हो जाती है तो उनको सेमी कहेंगे। फुल पूज्य फिर दो कला कम होने से सेमी पूज्य कहेंगे। तुम जानते हो पुजारी से फिर पूज्य बन रहे हैं। फिर सेमी पूज्य बनेंगे। अब इस कलियुग के अन्त में हमारा पुजारी पने का पार्ट खत्म होता है। पूज्य बनाने लिए बाबा को आना पड़ता है। अब बाबा विश्व का मालिक बनाते हैं। विश्व तो यह भी है, वह भी होगी। वहाँ मनुष्य बहुत थोड़े होते हैं। एक धर्म होता है। अनेक धर्म होने से भी हंगामा होता है।  अब बाबा आया है लायक बनाने। जितना बाबा को याद करेंगे उतना अपना भी कल्याण करेंगे। देखना है कि कल्याण करने का कितना शौक रहता है! जैसे आर्टिस्ट हैं उनको ख्याल रहता है ऐसे-ऐसे चित्र बनायें जिससे मनुष्य अच्छी रीति समझ जायें। समझेंगे हम बेहद के बाप की सर्विस करते हैं। भारत को स्वर्ग बनाना है। प्रदर्शनी में देखो कितने ढेर आते हैं। तो प्रदर्शनी के ऐसे चित्र बनायें जो कोई भी समझ जायें कि यह चित्र एक्यूरेट रास्ता बताने वाले हैं। मेले मलाखड़े आदि जो हैं वह तो उनके आगे कुछ भी नहीं हैं। 
 
आर्टिस्ट जो इस ज्ञान को समझते हैं, उनकी बुद्धि में रहेगा - ऐसे-ऐसे चित्र बनायें जो बहुतों का कल्याण हो जाये। रात-दिन बुद्धि इस बात में लगी रहे। इन चीज़ों का बहुत शौक रहता है। मौत तो अचानक आता है। अगर जुत्ती आदि की याद में रहे, मौत आ गया तो जुत्ती जैसा जन्म मिलेगा। यहाँ तो बाप कहते हैं देह सहित सबको भूलना है। यह भी तुम समझते हो कि बाप कौन है? कोई से पूछो आत्माओं के बाप को जानते हो? कहते हैं नहीं। याद कितना करते हैं, मांगते रहते हैं। देवियों से भी जाकर मांगते हैं। देवी की पूजा की और कुछ मिल गया तो बस उन पर कुर्बान हो जाते हैं। फिर पुजारी को भी पकड़ लेते हैं, वह भी आशीर्वाद आदि करते हैं। कितनी अन्धश्रद्धा है। तो ऐसे-ऐसे गीतों पर प्रदर्शनी में भी समझा सकते हो। 
 
यह प्रदर्शनी तो गाँव-गाँव में जायेगी। बाप गरीब निवाज़ है। उन्हों को जोर से उठाना है। साहूकार तो कोटों में कोई निकलेगा। प्रजा तो ढेर है। यहाँ तो मनुष्य से देवता बनना है। बाप से वर्सा मिलता है। पहले-पहले तो बाप को जानना चाहिए कि वह हमको पढ़ाते हैं। इस समय मनुष्य कितने पत्थर बुद्धि हैं। देखते भी हैं इतने सेन्टर्स पर आते हैं, सबको निश्चय है! बाप टीचर सतगुरू है, यह भी समझते नहीं हैं।  एक दूसरा गीत भी है कि इस पाप की दुनिया से..... वह भी अच्छा है, यह पाप की दुनिया तो है ही। भगवानुवाच - यह आसुरी सम्प्रदाय है, मैं इनको दैवी सम्प्रदाय बनाता हूँ। फिर मनुष्यों की कमेटियाँ आदि यह कार्य कैसे कर सकती। यहाँ तो सारी बात ही बुद्धि की है। भगवान कहते हैं तुम पतित हो, तुमको भविष्य के लिए पावन सो देवता बनाता हूँ। इस समय सभी पतित हैं। पतित अक्षर ही विकार पर है। 
 
सतयुग में वाइसलेस वर्ल्ड थी। यह है विशश वर्ल्ड। कृष्ण को 16108 रानियां दे दी हैं। यह भी ड्रामा में नूँध है। जो भी शास्त्र बनाये हुए हैं, उनमें ग्लानि कर दी है। बाबा जो स्वर्ग बनाते हैं उनके लिए भी क्या-क्या कहते हैं। अभी तुम जानते हो बाबा हमको कितना ऊंच बनाते हैं। कितनी अच्छी शिक्षा देते हैं। सच्चा-सच्चा सतसंग यह है। बाकी सब हैं झूठ संग। ऐसे को फिर परमपिता परमात्मा आकर विश्व का मालिक बनाते हैं। बाप समझाते हैं बच्चे, तुमको अब अन्धों की लाठी बनना है। जो खुद ही सज्जे नहीं हैं वह फिर औरों की लाठी क्या बनेंगे! भल करके ज्ञान का विनाश नहीं होता। एक बारी माँ बाप कहा तो कुछ न कुछ मिलना चाहिए। परन्तु नम्बरवार पद तो है ना। चलन से भी कुछ मालूम पड़ जाता है। फिर भी पुरुषार्थ कराया जाता है। ऐसे नहीं जो मिला सो ठीक। 
 
पुरुषार्थ से ऊंच प्रालब्ध मिलनी है। बिगर पुरुषार्थ तो पानी भी न मिले। इसको कर्मक्षेत्र कहा जाता है, यहाँ कर्म बिगर मनुष्य रह न सके। कर्म संन्यास अक्षर ही रांग है। बहुत हठ करते हैं। पानी पर, आग पर चलना सीखते हैं। परन्तु फायदा क्या मिला? मुफ्त आयु गँवाते हैं। भक्ति की जाती है रावण के दु:ख से छूटने के लिए। छूटकर फिर वापिस जाना है इसलिए सब याद करते हैं, हम मुक्तिधाम में जायें अथवा सुखधाम में जायें। दोनों ही पास्ट हो गये हैं। भारत सुखधाम था, अब नर्क है तो नर्कवासी कहेंगे ना। तुम खुद कहते हो फलाना स्वर्गवासी हुआ। अच्छा तुम तो नर्क में हो ना। हेविन के अगेन्स्ट हेल है। बाकी वह तो है शान्तिधाम। बड़े-बड़े लोग इतना भी समझते नहीं है। अपने को आपेही सिद्ध करते हैं हम हेल में हैं। 
 
 
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बड़ी युक्ति से सिद्ध कर बताना है। यह प्रदर्शनी तो बहुत काम कर दिखायेगी। इस समय मनुष्य कितने पाप करते हैं। स्वर्ग में ऐसी बातें होती नहीं। वहाँ तो प्रालब्ध है। तुम फिर से अब स्वर्ग में चलते हो, तुम कहेंगे अनेक बार इस विश्व के मालिक हम बने हैं, फिर अब बन रहे हैं। दुनिया में किसको भी पता नहीं। तुम्हारे में भी कोई समझते हैं। इस खेल से कोई छूट नहीं सकते। मोक्ष भी मनुष्य तब चाहते हैं, जब दु:खी होते हैं। बाबा तो कहते हैं - अच्छी रीति पुरुषार्थ करो। माँ बाप को फालो कर अच्छा पद पा लो, अपनी चलन को सुधारो। बाप तो राह बताते हैं फिर उस पर क्यों नहीं चलते हो। जास्ती तमन्नायें नहीं रखनी चाहिए। यज्ञ से जो मिले सो खाना है। हबच (लालच) है, कर्मेन्द्रियाँ वश में नहीं है तो पद भी ऊंचा नहीं पा सकते। तो ऐसे-ऐसे गीत प्रदर्शनी में बजाए उस पर तुम समझा सकते हो।  तुम हो शिवबाबा के परिवार। शिवबाबा के ऊपर तो कोई है नहीं। और सबके ऊपर तो कोई न कोई निकलेंगे। 84 जन्म में दादा, बाबा भी 84 मिलते हैं। शिवबाबा है रचता, अब नई रचना रच रहे हैं अर्थात् पुरानी को नया बनाते हैं। 
 
तुम जानते हो हम सांवरे से गोरे बनते हैं, स्वर्ग में श्रीकृष्ण है नम्बरवन। फिर लास्ट में उनका जन्म है। फिर यही पहला नम्बर बनता है। पूरे-पूरे 84 जन्म श्रीकृष्ण ने लिये हैं। सूर्यवंशी दैवी सम्प्रदाय ने पूरे 84 जन्म लिये। बाप कहते हैं जो श्रीकृष्ण पहला नम्बर था, उनके ही अन्तिम जन्म में प्रवेश कर फिर उनको श्रीकृष्ण बनाता हूँ। अच्छा।  
 
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।  
 
धारणा के लिए मुख्य सार:-  
1) कोई भी विनाशी तमन्नायें नहीं रखनी है। अपना और सर्व का कल्याण करना है।  
2) देह सहित सब कुछ भूल वापस घर चलना है - इसलिए चेक करना है कि बुद्धि कहीं पर भी अटकी हुई न हो। 
वरदान:-  “नेचुरल अटेन्शन'' को अपनी नेचर (आदत) बनाने वाले स्मृति स्वरूप भव 
 
सेना में जो सैनिक होते हैं वह कभी भी अलबेले नहीं रहते, सदा अटेन्शन में अलर्ट रहते हैं। आप भी पाण्डव सेना हो इसमें जरा भी अबेलापन न हो। अटेन्शन एक नेचुरल विधि बन जाए। कई अटेन्शन का भी टेन्शन रखते हैं। लेकिन टेन्शन की लाइफ सदा नहीं चल सकती, इसलिए नेचुरल अटेन्शन अपनी नेचर बनाओ। अटेन्शन रखने से स्वत: स्मृति स्वरूप बन जायेंगे, विस्मृति की आदत छूट जायेगी। 
 
स्लोगन:-  स्वयं के स्वयं टीचर बनो तो सर्व कमजोरियां स्वत: समाप्त हो जायेंगी।  
 
मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य  
1) याद का तैलुक (सम्बन्ध) है ज्ञान से, ज्ञान के बिना याद यथार्थ नहीं रह सकती  पहले-पहले मनुष्य को अपनी सुखी जीवन बनाने के लिये कौनसी मुख्य प्वाइन्ट बुद्धि में रखनी है? पहले तो यह मुख्य बात समझनी है कि जिस परमात्मा बाप की हम संतान हैं, उस बाप की याद में हर समय श्वांसो श्वांस उपस्थित रहें, उस अभ्यास में रहने की पूर्ण रीति से कोशिश करनी है। अब श्वांसों श्वांस का मतलब है लगातार बुद्धियोग लगा रहे, जिसको निरंतर योग, अटूट अजपाजाप याद कहा जाता है, यह कोई मुख से जपने वाली याद नहीं है और न कोई मूर्ति सामने रख उसका ध्यान करना है। परन्तु यह बुद्धियोग द्वारा याद रखनी है, अब वो याद भी निरन्तर तब रह सकेगी जब परमात्मा का पूरा परिचय हो, तब ही ध्यान पूर्ण लग सकेगा। 
 
परन्तु परमात्मा तो गीता में साफ कहते हैं, न मैं ध्यान से, न जप से मिलता हूँ और न मेरी सूरत को सामने रख उनका ध्यान करना है परन्तु ज्ञान योग द्वारा परमात्मा को पाना है इसलिए पहले चाहिए ज्ञान, ज्ञान बिगर याद कायम रह नहीं सकेगी। याद का तैलुक है ही ज्ञान से। अब ज्ञान से, चाहे मन से कल्पना करें वा बैठकर दर्शन करें अगर उस देखी हुई चीज़ का भी पहले ज्ञान होगा तब ही योग और ध्यान ठीक लग सकता है इसलिए परमात्मा कहते हैं मैं कौन हूँ, मेरे साथ कैसे योग लगाना है, उसका भी ज्ञान चाहिए। ज्ञान के लिये फिर पहले संग चाहिए, अब यह सब ज्ञान की प्वाइन्ट बुद्धि में रखनी है तब ही योग ठीक लग सकेगा।  2) “सृष्टि की आदि कैसे होगी?''  मनुष्य पूछते हैं कि परमात्मा ने सृष्टि कैसे रची? आदि में कौनसा मनुष्य रचा, अब उसका नाम रूप समझना चाहते हैं। अब उस पर उन्हों को समझाया जाता है कि परमात्मा ने सृष्टि की आदि ब्रह्मा तन से की है, पहला आदमी ब्रह्मा रचा है। तो जिस परमात्मा ने सृष्टि की आदि की है, तो अवश्य परमात्मा ने भी इस सृष्टि में अपना पार्ट बजाया है। अब परमात्मा ने कैसे पार्ट बजाया? पहले तो परमात्मा ने सृष्टि को रचा, उसमें भी पहले ब्रह्मा को रचा, तो गोया पहले ब्रह्मा की आत्मा पवित्र हुई, वही जाकर श्रीकृष्ण बनी, उसी तन द्वारा फिर देवी देवताओं के सृष्टि की स्थापना की। तो दैवी सृष्टि की रचना ब्रह्मा तन द्वारा कराई, तो देवी देवतायें का आदि पिता ठहरा ब्रह्मा, ब्रह्मा सो श्रीकृष्ण बनता है, वही श्रीकृष्ण का फिर अन्त का जन्म ब्रह्मा है। अब ऐसे ही सृष्टि का नियम चलता आता है। अब वही आत्मा सुख का पार्ट पूरा कर दु:ख के पार्ट में आती है, तो रजो तमो अवस्था पास कर फिर शूद्र से ब्राह्मण बनती है। तो हम हैं ब्रह्मावंशी सो शिववंशी सच्चे ब्राह्मण। अब ब्रह्मावंशी उसको कहते हैं - जो ब्रह्मा के द्वारा अविनाशी ज्ञान लेकर पवित्र बनते हैं।  3) ओम् शब्द का यथार्थ अर्थ  जब हम ओम् शान्ति शब्द कहते हैं तो पहले पहले ओम् शब्द के अर्थ को पूर्ण रीति से समझना है। अगर कोई से पूछा जाए ओम् का अर्थ क्या है? तो वो लोग ओम् का अर्थ बहुत ही लम्बा चौड़ा सुनाते हैं। ओम् का अर्थ ओंकार बड़े आवाज़ से सुनाते हैं, इस ओम् पर फिर लम्बा चौड़ा शास्त्र बना देते हैं, परन्तु वास्तव में ओम् का अर्थ कोई लम्बा चौड़ा नहीं है। अपने को तो स्वयं परमात्मा ओम् का अर्थ बहुत ही सरल और सहज समझाते हैं। ओम् का अर्थ है मैं आत्मा हूँ, मेरा असली धर्म शान्त स्वरूप है। अब इस ओम् के अर्थ में उपस्थित रहना है, तो ओम् का अर्थ मैं आत्मा परमात्मा की संतान हूँ। मुख्य बात यह हुई कि ओम् के अर्थ में सिर्फ टिकना है, बाकी मुख से ओम् का उच्चारण करने की जरूरत नहीं है। यह तो बुद्धि में निश्चय रखकर चलना है। ओम् का जो अर्थ है उस स्वरूप में स्थित रहना है। बाकी वह लोग भल ओम् का अर्थ सुनाते हैं मगर उस स्वरूप में स्थित नहीं रहते। हम तो ओम् का स्वरूप जानते हैं, तब ही उस स्वरूप में स्थित होते हैं। हम यह भी जानते हैं कि परमात्मा बीजरुप है और उस बीजरूप परमात्मा ने इस सारे झाड़ को कैसे रचा हुआ है, उसकी सारी नॉलेज हमें अभी मिल रही है। अच्छा - ओम् शान्ति। 


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