shiv baba ki aaj ki murli hindi 6-12-2020

 

Brahma kumaris today murli Hindi 6-12-2020 | Aaj ki murli om shanti | Baba murli Hindi 

Brahma kumaris today murli Hindi 6-12-2020 | Aaj ki murli om shanti | Baba murli Hindi | Aaj ki murali live in Hindi | Aaj ki murli with text 6-12-2020 | आज की मुरली 6-12-2020 | Aaj ki murli hindi | Brahma kumaris today murli | om shanti aaj ki murli 2020| shiv baba ki murli | madhuban Aaj ki murli | आज की मुरली हिन्दी मे | आज की मुरली पढ़ने वाली |  आज की मुरली सुनाओ | आज की मुरली | आज की हिंदी मुरली टुडे | आज की ताजा मुरली | मधुबन की आज की मुरली

 Shiv baba ki aaj ki murli hindi 6-12-2020 | Aaj ki bk today murli Hindi 

Aaj Ki Murli Hindi 6 December 2020


06-12-20 प्रात:मुरली ओम् शान्ति''अव्यक्त-बापदादा''रिवाइज: 20-02-87 मधुबन


याद, पवित्रता और सच्चे सेवाधारी की तीन रेखाएं


आज सर्व स्नेही, विश्व-सेवाधारी बाप अपने सदा सेवाधारी बच्चों से मिलने आये हैं। सेवाधारी बापदादा को समान सेवाधारी बच्चे सदा प्रिय हैं। आज विशेष, सर्व सेवाधारी बच्चों के मस्तक पर चमकती हुई विशेष तीन लकीरें देख रहे हैं। हर एक का मस्तक त्रिमूर्ति तिलक समान चमक रहा है। यह 3 लकीरें किसकी निशानी हैं? इन तीन प्रकार के तिलक द्वारा हर एक बच्चे के वर्तमान रिजल्ट को देख रहे हैं। एक है सम्पूर्ण योगी जीवन की लकीर। दूसरी है पवित्रता की रेखा वा लकीर। तीसरी है सच्चे सेवाधारी की लकीर। तीनों रेखाओं में हर बच्चे की रिजल्ट को देख रहे हैं। याद की लकीर सभी की चमक रही है लेकिन नम्बरवार है। किसी की लकीर वा रेखा आदि से अब तक अव्यभिचारी अर्थात् सदा एक की लग्न में मग्न रहने वाली है।


दूसरी बात - सदा अटूट रही है? सदा सीधी लकीर अर्थात् डायरेक्ट बाप से सर्व सम्बन्ध की लग्न सदा से रही है वा किसी निमित्त आत्माओं के द्वारा बाप से सम्बन्ध जोड़ने के अनुभवी हैं? डायरेक्ट बाप का सहारा है वा किसी आत्मा के सहारे द्वारा बाप का सहारा है? एक हैं सीधी लकीर वाले, दूसरे हैं बीच-बीच में थोड़ी टेढ़ी लकीर वाले। यह हैं याद की लकीर की विशेषतायें


दूसरी है सम्पूर्ण पवित्रता की लकीर वा रेखा। इसमें भी नम्बरवार हैं। एक हैं ब्राह्मण जीवन लेते ही ब्राह्मण जीवन का, विशेष बाप का वरदान प्राप्त कर सदा और सहज इस वरदान को जीवन में अनुभव करने वाले। उन्हों की लकीर आदि से अब तक सीधी है। दूसरे - ब्राह्मण जीवन के इस वरदान को अधिकार के रूप में अनुभव नहीं करते; कभी सहज, कभी मेहनत से, बहुत पुरूषार्थ से अपनाने वाले हैं। उन्हों की लकीर सदा सीधी और चमकती हुई नहीं रहती है। वास्तव में याद वा सेवा की सफलता का आधार है - पवित्रता। सिर्फ ब्रह्मचारी बनना - यह पवित्रता नहीं लेकिन पवित्रता का सम्पूर्ण रूप है - ब्रह्मचारी के साथ-साथ ब्रह्माचारी बनना।


ब्रह्माचारी अर्थात् ब्रह्मा के आचरण पर चलने वाले, जिसको फालो फादर कहा जाता है क्योंकि फालो ब्रह्मा बाप को करना है। शिव बाप के समान स्थिति में बनना है लेकिन आचरण वा कर्म में ब्रह्मा बाप को फालो करना है। हर कदम में ब्रह्मचारी। ब्रह्मचर्य का व्रत सदा संकल्प और स्वप्न तक हो। पवित्रता का अर्थ है - सदा बाप को कम्पैनियन (साथी) बनाना और बाप की कम्पन्नी में सदा रहना। कम्पैनियन बना दिया? ‘बाबा मेरा' - यह भी आवश्यक है लेकिन हर समय कम्पनी भी बाप की रहे।


इसको कहते हैं सम्पूर्ण पवित्रता। संगठन की कम्पनी, परिवार के स्नेह की मर्यादा, वह अलग चीज़ है, वह भी आवश्यक है। लेकिन बाप के कारण ही यह संगठन के स्नेह की कम्पनी है - यह नहीं भूलना है। परिवार का प्यार है, लेकिन परिवार किसका? बाप का। बाप नहीं होता तो परिवार कहाँ से आता? परिवार का प्यार, परिवार का संगठन बहुत अच्छा है लेकिन परिवार का बीज नहीं भूल जाए। बाप को भूल परिवार को ही कम्पनी बना देते हैं। बीच-बीच में बाप को छोड़ा तो खाली जगह हो गई। वहाँ माया आ जायेगी इसलिए स्नेह में रहते, स्नेह देते-लेते समूह को नहीं भूलें। इसको कहते हैं पवित्रता। समझने में तो होशियार हो ना।


कई बच्चों को सम्पूर्ण पवित्रता की स्थिति में आगे बढ़ने में मेहनत लगती है इसलिए बीच-बीच में कोई को कम्पैनियन बनाने का भी संकल्प आता है और कम्पनी भी आवश्यक है - यह भी संकल्प आता है। संन्यासी तो नहीं बनना है लेकिन आत्माओं की कम्पनी में रहते बाप की कम्पनी को भूल नहीं जाओ। नहीं तो समय पर उस आत्मा की कम्पनी याद आयेगी और बाप भूल जायेगा। तो समय पर धोखा मिलना सम्भव है क्योंकि साकार शरीरधारी के सहारे की आदत होगी तो अव्यक्त बाप और निराकार बाप पीछे याद आयेगा, पहले शरीरधारी याद आयेगा।


अगर किसी भी समय पहले साकार का सहारा याद आया तो नम्बरवन वह हो गया और दूसरा नम्बर बाप हो गया। जो बाप को दूसरे नम्बर में रखते तो उसको पद क्या मिलेगा? नम्बर वन या टू? सिर्फ सहयोग लेना, स्नेही रहना वह अलग चीज़ है, लेकिन सहारा बनाना अलग चीज़ है। यह बहुत गुह्य बात है। इसको यथार्थ रीति से जानना पड़े। कोई-कोई संगठन में स्नेही बनने के बजाए न्यारे भी बन जाते हैं। डरते हैं ना मालूम फँस जाएं, इससे तो दूर रहना, ठीक है। लेकिन नहीं। 21 जन्म भी प्रवृत्ति में, परिवार में रहना है ना। तो अगर डर के कारण किनारा कर लेते, न्यारे बन जाते तो वह कर्म-संन्यासी के संस्कार हो जाते हैं। कर्मयोगी बनना है, कर्म-संन्यासी नहीं। संगठन में रहना है, स्नेही बनना है लेकिन बुद्धि का सहारा एक बाप हो, दूसरा न कोई। बुद्धि को कोई आत्मा का साथ वा गुण वा कोई विशेषता आकर्षित नहीं करे, इसको कहते हैं पवित्रता।


पवित्रता में मेहनत लगती - इससे सिद्ध है वरदाता बाप से जन्म का वरदान नहीं लिया है। वरदान में मेहनत नहीं होती। हर ब्राह्मण आत्मा को ब्राह्मण जन्म का पहला वरदान - ‘पवित्र भव, योगी भव' का मिला हुआ है। तो अपने से पूछो - पवित्रता के वरदानी हो या मेहनत से पवित्रता को अपनाने वाले हो? यह याद रखो कि हमारा ब्राह्मण जन्म है। सिर्फ जीवन परिवर्तन नहीं लेकिन ब्राह्मण जन्म के आधार पर जीवन का परिवर्तन है। जन्म के संस्कार बहुत सहज और स्वत: होते हैं। आपस में भी कहते हो ना - मेरे जन्म से ही ऐसे संस्कार हैं। ब्राह्मण जन्म का संस्कार है ही ‘योगी भव, पवित्र भव'। वरदान भी है, निजी संस्कार भी है। जीवन में दो चीजें ही आवश्यक हैं। एक - कम्पैनियन, दूसरी - कम्पनी, इसलिए त्रिकालदर्शी बाप सभी की आवश्यकताओं को जान कम्पैनियन भी बढ़िया, कम्पनी भी बढ़िया देते हैं। विशेष डबल विदेशी बच्चों को दोनों चाहिए इसलिए बापदादा ने ब्राह्मण जन्म होते ही कम्पैनियन का अनुभव करा लिया, सुहागिन बना दिया। जन्मते ही कम्पैनियन मिल गया ना? कम्पैनियन मिल गया है वा ढूँढ़ रहे हो? तो पवित्रता निजी संस्कार के रूप में अनुभव करना, इसको कहते हैं श्रेष्ठ लकीर अथवा श्रेष्ठ रेखा वाले। फाउन्डेशन पक्का है ना?


तीसरी लकीर है सच्चे सेवाधारी की। यह सेवाधारी की लकीर भी सभी के मस्तक पर है। सेवा के बिना भी रह नहीं सकते। सेवा ब्राह्मण जीवन को सदा निर्विघ्न बनाने का साधन भी है और फिर सेवा में ही विघ्नों का पेपर भी ज्यादा आता है। निर्विघ्न सेवाधारी को सच्चे सेवाधारी कहा जाता है। विघ्न आना, यह भी ड्रामा की नूँध है। आने ही हैं और आते ही रहेंगे क्योंकि यह विघ्न या पेपर अनुभवी बनाते हैं। इसको विघ्न न समझ, अनुभव की उन्नति हो रही है - इस भाव से देखो तो उन्नति की सीढ़ी अनुभव होगी। इससे और आगे बढ़ना है क्योंकि सेवा अर्थात् संगठन का, सर्व आत्माओं की दुआ का अनुभव करना। सेवा के कार्य में सर्व की दुआयें मिलने का साधन है। इस विधि से, इस वृत्ति से देखो तो सदा ऐसे अनुभव करेंगे कि अनुभव की अथॉरिटी और आगे बढ़ रही है। विघ्न को विघ्न नहीं समझो और विघ्न अर्थ निमित्त बनी हुई आत्मा को विघ्नकारी आत्मा नहीं समझो, अनुभवी बनाने वाले शिक्षक समझो। जब कहते हो निंदा करने वाले मित्र हैं, तो विघ्नों को पास कराके अनुभवी बनाने वाला शिक्षक हुआ ना। पाठ पढ़ाया ना। जैसे आजकल के जो बीमारियों को हटाने वाले डॉक्टर्स हैं, वह एक्सरसाइज़ (व्यायाम) कराते हैं, तो एक्सरसाइज में पहले दर्द होता है, लेकिन वह दर्द सदा के लिए बेदर्द बनाने के निमित्त होता है, जिसको यह समझ नहीं होती है वह चिल्लाते हैं, इसने तो और ही दर्द कर लिया। लेकिन इस दर्द के अन्दर छिपी हुई दवा है। इस प्रकार रूप भल विघ्न का है, आपको विघ्नकारी आत्मा दिखाई पड़ती लेकिन सदा के लिए विघ्नों से पार कराने के निमित्त, अचल बनाने के निमित्त वही बनते इसलिए सदा निर्विघ्न सेवाधारी को कहते हैं सच्चे सेवाधारी। ऐसे श्रेष्ठ लकीर वाले सच्चे सेवाधारी कहे जाते हैं।


सेवा में सदैव स्वच्छ बुद्धि, स्वच्छ वृत्ति और स्वच्छ कर्म सफलता का सहज आधार है। कोई भी सेवा का कार्य जब आरम्भ करते हो तो पहले यह चेक करो कि बुद्धि में किसी आत्मा के प्रति भी स्वच्छता के बजाए अगर बीती हुई बातों की जरा भी स्मृति होगी तो उसी वृत्ति, दृष्टि से उनको देखना, उनसे बोलना होता। तो सेवा में जो स्वच्छता से सम्पूर्ण सफलता होनी चाहिए, वह नहीं होती। बीती हुई बातों को वा वृत्तियों आदि सबको समाप्त करना - यह है स्वच्छता। बीती का संकल्प भी करना कुछ परसेन्टेज में हल्का पाप है। संकल्प भी सृष्टि बना देता है। वर्णन करना तो और बड़ी बात है लेकिन संकल्प करने से भी पुराने संकल्प की स्मृति सृष्टि अथवा वायुमण्डल भी वैसा बना देती है। फिर कह देते - ‘मैंने जो कहा था ना, ऐसे ही हुआ ना'। लेकिन हुआ क्यों? आपके कमजोर, व्यर्थ संकल्प ने यह व्यर्थ वायुमण्डल की सृष्टि बनाई, इसलिए सदा सच्चे सेवाधारी अर्थात् पुराने वायब्रेशन को समाप्त करने वाले। जैसे साइन्स वाले शस्त्र से शस्त्र को खत्म कर देते हैं, एक विमान से दूसरे विमान को गिरा देते हैं। युद्ध करते हैं तो समाप्त कर देते हैं ना। तो आपका शुद्ध वायब्रेशन, शुद्ध वायब्रेशन को इमर्ज कर सकता है और व्यर्थ वायब्रेशन को समाप्त कर सकता है। संकल्प, संकल्प को समाप्त कर सकता है। अगर आपका पावरफुल (शक्तिशाली) संकल्प है तो समर्थ संकल्प व्यर्थ को खत्म जरूर करेगा। समझा? सेवा में पहले स्वच्छता अर्थात् पवित्रता की शक्ति चाहिए। यह तीन लकीरें चमकती हुई देख रहे हैं।


सेवा के विशेषता की और अनेक बातें सुनी भी हैं। सब बातों का सार है - नि:स्वार्थ, निर्विकल्प स्थिति से सेवा करना सफलता का आधार है। इसी सेवा में ही स्वयं भी सन्तुष्ट और हर्षित रहते और दूसरे भी सन्तुष्ट रहते। सेवा के बिना संगठन नहीं होता। संगठन में भिन्न-भिन्न बातें, भिन्न-भिन्न विचार, भिन्न-भिन्न तरीके, साधन - यह होना ही है। लेकिन बातें आते भी, भिन्न-भिन्न साधन सुनते हुए भी स्वयं सदा अनेक को एक बाप की याद में मिलाने वाले, एकरस स्थिति वाले रहो। कभी भी अनेकता में मूँझो नहीं - अब क्या करें, बहुत विचार हो गये हैं, किसका मानें, किसका न मानें? अगर नि:स्वार्थ, निर्विकल्प भाव से निर्णय करेंगे तो कभी किसी को कुछ व्यर्थ संकल्प नहीं आयेगा क्योंकि सेवा के बिना भी रह नहीं सकते, याद के बिना भी रह नहीं सकते इसलिए सेवा को भी बढ़ाते चलो। स्वयं को भी स्नेह, सहयोग और नि:स्वार्थ भाव में बढ़ाते चलो। समझा?


बापदादा को खुशी है कि देश-विदेश में छोटे-बड़े सभी ने उमंग-उत्साह से सेवा का सबूत दिया। विदेश की सेवा का भी सफलतापूर्वक कार्य सम्पन्न हुआ और देश में भी सभी के सहयोग से सर्व कार्य सम्पन्न हुए, सफल हुए। बापदादा बच्चों के सेवा की लग्न को देख हर्षित होते हैं। सभी का लक्ष्य बाप को प्रत्यक्ष करने का अच्छा रहा और बाप के स्नेह में मेहनत को मुहब्बत में बदल कार्य का प्रत्यक्षफल दिखाया। सभी बच्चे विशेष सेवा के निमित्त आये हुए हैं। बापदादा भी ‘वाह बच्चे! वाह!' के गीत गाते हैं। सभी ने बहुत अच्छा किया। किसी ने किया, किसी ने नहीं किया, यह है नहीं। चाहे छोटे स्थान हैं वा बड़े स्थान हैं, लेकिन छोटे स्थान वालों ने भी कम नहीं किया इसलिए, सर्व की श्रेष्ठ भावनाओं और श्रेष्ठ कामनाओं से कार्य अच्छे रहे और सदा अच्छे रहेंगे। समय भी खूब लगाया, संकल्प भी खूब लगाये, प्लैन बनाया तो संकल्प किया ना। शरीर की शक्ति भी लगाई, धन की शक्ति भी लगाई, संगठन की शक्ति भी लगाई। सर्व शक्तियों की आहुतियों से सेवा का यज्ञ दोनों तरफ (देश और विदेश) सफल हुआ। बहुत अच्छा कार्य रहा। ठीक किया वा नहीं किया - यह क्वेश्चन ही नहीं। सदा ठीक रहा है और सदा ठीक रहेगा। चाहे मल्टी मिलियन पीस का कार्य किया, चाहे गोल्डन जुबली का कार्य किया - दोनों ही कार्य सुन्दर रहे। जिस विधि से किया, वह विधि भी ठीक है। कहाँ-कहाँ चीज़ की वैल्यू बढ़ाने के लिए पर्दे के अन्दर वह चीज़ रखी जाती है। पर्दा और ही वैल्यू को बढ़ा देता है और जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि देखें क्या है, पर्दे के अन्दर है तो जरूर कुछ होगा। लेकिन यही पर्दा प्रत्यक्षता का पर्दा बन जायेगा। अभी धरनी बना ली। धरनी में जब बीज डाला जाता है वो अन्दर छिपा हुआ डाला जाता है। बीज को बाहर नहीं रखते, अन्दर छिपाकर रखते हैं। और फल वा वृक्ष गुप्त बीज का ही स्वरूप प्रत्यक्ष होता। तो अब बीज डाला है, वृक्ष बाहर स्टेज पर स्वत: ही आता जायेगा।


खुशी में नाच रहे हो ना? ‘वाह बाबा'! तो कहते हो लेकिन वाह सेवा! भी कहते हो। अच्छा। समाचार तो सब बापदादा ने सुन लिया। इस सेवा से जो देश-विदेश के संगठन से वर्ग की सेवा हुई, यह चारों ओर एक ही समय एक ही आवाज बुलन्द होने या फैलने का साधन अच्छा है। आगे भी जो भी प्रोग्राम करो, लेकिन एक ही समय देश-विदेश में चारों ओर एक ही प्रकार की सेवा कर फिर सेवा का फलस्वरूप मधुबन में संगठित रूप में हो। चारों ओर एक लहर होने कारण सब में उमंग-उत्साह भी होता है और चारों ओर रूहानी रेस होती, (रीस नहीं) कि हम और ज्यादा से ज्यादा सेवा का सबूत दें। तो इस उमंग से चारों ओर नाम बुलन्द हो जाता है इसलिए किसी भी वर्ग का बनाओ लेकिन चारों ओर सारा वर्ष एक ही रूप-रेखा की सेवा की तरफ अटेन्शन हो। तो उन आत्माओं को भी चारों ओर का संगठन देख उमंग आता है, आगे बढ़ने का चांस मिलता है। इस विधि से प्लैन बनाते, बढ़ते चलो। पहले अपनी-अपनी एरिया में उन वर्ग की सेवा कर छोटे-छोटे संगठन के रूप में प्रोग्राम करते रहो और उस संगठन से फिर जो विशेष आत्मायें हों, उनको इस बड़े संगठन के लिए तैयार करो। लेकिन हर सेन्टर या आसपास के मिलकर करो क्योंकि कई यहाँ तक नहीं पहुँच सकते तो वहाँ पर भी संगठन का जो प्रोग्राम होता, उससे भी उन्हों को लाभ होता है। तो पहले छोटे-छोटे ‘स्नेह मिलन' करो, फिर ज़ोन को मिलाकर संगठन करो, फिर मधुबन का बड़ा संगठन हो। तो पहले से ही अनुभवी बन करके फिर यहाँ तक भी आयेंगे। लेकिन देश-विदेश में एक ही टॉपिक हो और एक ही वर्ग के हों। ऐसे भी टॉपिक्स होते हैं जिसमें दो-चार वर्ग भी मिल सकते हैं। टॉपिक विशाल है तो दो-तीन वर्ग के भी उसी टॉपिक बीच आ सकते हैं। तो अभी देश-विदेश में धर्म सत्ता, राज्य सत्ता और साइन्स की सत्ता - तीनों के सैम्पल्स तैयार करो। अच्छा।


सर्व पवित्रता के वरदान के अधिकारी आत्माओं को, सदा एकरस, निरन्तर योगी जीवन के अनुभवी आत्माओं को, सदा हर संकल्प, हर समय सच्चे सेवाधारी बनने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को विश्व-स्नेही, विश्व-सेवाधारी बाप-दादा का यादप्यार और नमस्ते।


वरदान:-कम्बाइन्ड स्वरूप की स्मृति द्वारा अभुल बनने वाले निरन्तर योगी भव


जो बच्चे स्वयं को बाप के साथ कम्बाइन्ड अनुभव करते हैं उन्हें निरन्तर योगी भव का वरदान स्वत: मिल जाता है क्योंकि वो जहाँ भी रहते हैं मिलन मेला होता रहता है। उन्हें कोई कितना भी भुलाने की कोशिश करे लेकिन वे अभुल होते हैं। ऐसे अभुल बच्चे जो बाप को अति प्यारे हैं वही निरन्तर योगी हैं क्योंकि प्यार की निशानी है - स्वत: याद। उनके संकल्प रूपी नाखून को भी माया हिला नहीं सकती।


स्लोगन:-कारण सुनाने के बजाए उसका निवारण करो तो दुआओं के अधिकारी बन जायेंगे।


Read more below link 👇

Today's murli English 11-12-2020

आज की मुरली हिंदी 11-12-2020 जरूर पढे.


 

Aaj ki shiv baba murli hindi 6-12-2020 | om Shanti Bk murli hindi today shiv baba ki Murli Hindi daily Gyan Murli Hindi Aaj ki shiv baba murli hindi om Shanti | bk murli hindi today 2020 shiv baba ki Murli Hindi.bk murli daily in hindi today.Mere baba ki aaj ki bk murli today.brahmakumaris murli of madhuban also watch a live murli on peace of mind channel.

Post a Comment

Previous Post Next Post