24-09-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
''मीठे बच्चे - पुण्य आत्मा से बनने के लिए जितना हो सके अच्छा कर्म करो, आलराउन्डर बनो, दैवीगुण धारण करो''
प्रश्नः-
कौन-सी मेहनत करने से तुम बच्चे पद्मापद्म पति बनते हो?
उत्तर:-
सबसे बड़ी मेहनत है क्रिमिनल आई को सिविल आई बनाना। आंखे ही बहुत धोखा देती हैं। आखों को सिविल बनाने के लिए बाप ने युक्ति बतलाई है कि बच्चे आत्मिक दृष्टि से देखो। देह को नही देखो। मैं आत्मा हूँ, यह अभ्यास पक्का करो, इसी मेहनत से तुम जन्म-जन्मान्तर के लिए पद्मपति बन जायेंगे।
गीत:-
धीरज धर मनुवा........
ओम् शान्ति। यह किसने कहा? शिवबाबा ने शरीर द्वारा कहा। कोई भी आत्मा शरीर बिगर बोल नहीं सकती। बाप भी शरीर में प्रवेश कर आत्माओं को समझाते हैं-बच्चे अभी तुम्हारा जिस्मानी कनेक्शन नहीं है। यह है रूहानी कनेक्शन। आत्मा को ज्ञान मिलता है - परमपिता परमात्मा से। देहधारी जो भी हैं, सब पढ़ रहे हैं। बाप को तो अपनी देह है नहीं। तो थोड़े टाइम के लिए इनका आधार लिया है। अब बाप कहते हैं अपने को आत्मा निश्चय कर बैठो। बेहद का बाप हम आत्माओं को समझाते हैं। उनके बिगर ऐसे कोई समझा न सके। आत्मा, आत्मा को कैसे समझायेगी। आत्माओं को समझाने वाला परमात्मा चाहिए। उनको कोई भी जानते नहीं। त्रिमूर्ति से भी शिव को उड़ा दिया है। ब्रह्मा द्वारा स्थापना कौन करायेंगे। ब्रह्मा तो नई दुनिया का रचयिता नहीं है। बेहद का बाप रचयिता सबका एक ही शिवबाबा है। ब्रह्मा भी सिर्फ अभी तुम्हारा बाप है फिर नहीं होगा। वहाँ तो लौकिक बाप ही होता है। कलियुग में होता है लौकिक और पारलौकिक। अभी संगम पर लौकिक, अलौकिक और पारलौकिक तीन बाप हैं। बाप कहते हैं सुखधाम में मुझे कोई याद ही नहीं करता। विश्व का मालिक बाप ने बनाया फिर चिल्लायेंगे क्यों? वहाँ और कोई खण्ड नहीं होते। सिर्फ सूर्यवंशी ही होते हैं। चन्द्रवंशी भी बाद में आते हैं। अब बाप कहते हैं बच्चे धीरज धरो, बाकी थोड़े दिन हैं। पुरूषार्थ अच्छी रीति करो। दैवीगुण धारण नहीं करेंगे तो पद भी भ्रष्ट हो जायेगा। यह बहुत बड़ी लॉटरी है। बैरिस्टर, सर्जन आदि बनना भी लॉटरी है ना। बहुत पैसा कमाते हैं। बहुतों पर हुक्म चलाते हैं। जो अच्छी रीति पढ़ते पढ़ाते हैं, वह ऊंच पद पायेंगे। बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे। बाप को भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं। माया याद भुला देती है। ज्ञान नहीं भुलाती है। बाप कहते भी हैं अपनी उन्नति करनी है तो चार्ट रखो-सारे दिन में कोई पाप कर्म तो नहीं किया? नहीं तो सौ गुणा पाप बन जायेगा। यज्ञ की सम्भाल करने वाले बैठे हैं, उनकी राय से करो। कहते भी हैं जो खिलाओ, जहाँ बिठाओ। तो बाकी और आशायें छोड़ देनी है। नहीं तो पाप बनता जायेगा। आत्मा पवित्र कैसे बनेगी। यज्ञ में कोई भी पाप का काम नहीं करना है। यहाँ तुम पुण्य आत्मा बनते हो। चोरी चकारी आदि करना पाप है ना। माया की प्रवेशता है। न योग में रह सकते, न ज्ञान की धारणा करते हैं। अपनी दिल से पूछना चाहिए - हम अगर अन्धों की लाठी न बनें तो क्या ठहरे! अन्धे ही कहेंगे ना। इस समय के लिए ही गाया हुआ है - धृतराष्ट्र के बच्चे। वह है रावण राज्य में। तुम हो संगम पर। रामराज्य में फिर सुख पाने वाले हो। परमपिता परमात्मा कैसे सुख देते हैं, किसकी बुद्धि में नहीं आता। कितना भी अच्छी रीति समझाओ फिर भी बुद्धि में नहीं बैठता। अपने को जब आत्मा समझें तब परमात्मा का ज्ञान भी समझ सकें। आत्मा ही जैसा पुरुषार्थ करती है, ऐसा बनती है। गायन भी है अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... बाप कहते हैं जो मुझे याद करेंगे तो मेरे को पायेंगे। नहीं तो बहुत-बहुत सज़ायें खाकर आयेंगे। सतयुग में भी नहीं, त्रेता के भी पिछाड़ी में आयेंगे। सतयुग-त्रेता को कहा जाता है-ब्रह्मा का दिन। एक ब्रह्मा तो नहीं होगा, ब्रह्मा के तो बहुत बच्चे हैं ना। ब्राह्मणों का दिन फिर ब्राह्मणों की रात होगी। अभी बाप आये हैं रात से दिन बनाने। ब्राह्मण ही दिन में जाने के लिए तैयारी करते हैं। बाप कितना समझाते हैं, दैवी धर्म की स्थापना तो जरूर होनी ही है। कलियुग का विनाश भी जरूर होना है। जिनको कुछ भी अन्दर में संशय होगा तो वह भाग जायेंगे। पहले निश्चय फिर संशय हो जाता है। यहाँ से मरकर फिर पुरानी दुनिया में जाकर जन्म लेते हैं। विनशन्ती हो जाते हैं। बाप की श्रीमत पर तो चलना पड़े ना। प्वाइंट तो बहुत अच्छी-अच्छी बच्चों को देते रहते हैं।
पहले-पहले तो समझाओ - तुम आत्मा हो, देह नहीं। नहीं तो लॉटरी सारी गुम हो जायेगी। भल वहाँ राजा अथवा प्रजा सब सुखी रहते हैं फिर भी पुरुषार्थ तो ऊंच पद पाने का करना है ना। ऐसे नहीं, सुखधाम में तो जायेंगे ना। नहीं, ऊंच पद पाना है, राजा बनने के लिए आये हो। ऐसे सयाने भी चाहिए। बाप की सर्विस करनी चाहिए। रूहानी सर्विस नहीं तो स्थूल सर्विस भी है। कहाँ मेल्स भी आपस में क्लास चलाते रहते हैं। एक बहन बीच-बीच में जाकर क्लास कराती है। झाड़ धीरे-धीरे वृद्धि को पाता है ना। सेन्टर्स पर कितने आते हैं फिर चलते-चलते गुम हो जाते हैं। विकार में गिरने से फिर सेन्टर्स पर भी आने में लज्जा आती है। ढीले पड़ जाते हैं। कहेंगे यह बीमार हो गया। बाप सब बातें समझाते रहते हैं। अपना पोतामेल रोज़ रखो। जमा और ना होती है। घाटा और फायदा। आत्मा पवित्र बन गई अर्थात् 21 जन्म के लिए जमा हुआ। बाप की याद से ही जमा होगा। पाप कट जायेंगे। कहते भी हैं ना-हे पतित-पावन बाबा आकर हमको पावन बनाओ। ऐसे थोड़ेही कहते कि विश्व का मालिक आकर बनाओ। नहीं, यह तुम बच्चे ही जानते हो-मुक्ति और जीवनमुक्ति दोनों हैं पावनधाम। तुम जानते हो हम मुक्ति-जीवनमुक्ति का वर्सा पाते हैं। जो पूरी रीति नहीं पढ़ेंगे वह पीछे आयेंगे। स्वर्ग में तो आना है, सब अपने-अपने समय पर आयेंगे। सब बातें समझाई जाती हैं। फौरन तो कोई नहीं समझ जायेंगे। यहाँ तुमको बाप को याद करने के लिए कितना समय मिलता है। जो भी आये उनको यह बताओ कि पहले अपने को आत्मा समझो। यह नॉलेज बाप ही देते हैं। जो सभी आत्माओं का पिता है। आत्म-अभिमानी बनना है। आत्मा ज्ञान उठाती है, परमात्मा बाप को याद करने से ही विकर्म विनाश होंगे फिर सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान देते हैं। रचयिता को याद करने से ही पाप भस्म होंगे। फिर रचना के आदि-मध्य-अन्त के ज्ञान को समझने से तुम चक्रवर्ती राजा बन जायेंगे। बस यह फिर औरों को भी सुनाना है। चित्र भी तुम्हारे पास हैं। यह तो सारा दिन बुद्धि में रहना चाहिए। तुम स्टूडेन्ट भी हो ना। बहुत गृहस्थी भी स्टूडेन्ट होते हैं। तुमको भी गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है। बहन-भाई की कभी क्रिमिनल आई हो न सके। यह तो ब्रह्मा के मुख वंशावली हैं ना। क्रिमिनल को सिविल बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी होती है। आधाकल्प की आदत पड़ी हुई है, उनको निकालने में बड़ी मेहनत है। सब लिखते हैं यह प्वाइंट जो बाबा ने समझाई है, क्रिमिनल आई को निकालने की, यह बहुत कड़ी है। घड़ी-घड़ी बुद्धि चली जाती है। बहुत संकल्प आते हैं। अब आंखों को क्या करें? सूरदास का दृष्टान्त देते हैं। वह तो एक कहानी बना दी है। देखा आंखें हमको धोखा देती हैं तो आंखें निकाल दी। अभी तो वह बात है नहीं। यह आंखें तो सबको हैं परन्तु क्रिमिनल हैं, उनको सिविल बनाना है। मनुष्य समझते हैं घर में रहते, यह नहीं हो सकता। बाप कहते हैं हो सकता है क्योंकि आमदनी बहुत-बहुत है। तुम जन्म-जन्मान्तर के लिए पद्मपति बनते हो। वहाँ गिनती होती ही नहीं। आजकल बाबा नाम ही पद्मपति, पद्मावती दे देते हैं। तुम अनगिनत पद्मपति बनते हो। वहाँ गिनती होती ही नहीं। गिनती तब होती है जब रूपये-पैसे आदि निकलते हैं। वहाँ तो सोने-चाँदी की मुहरें काम में आती हैं। आगे राम-सीता के राज्य की मुहरें आदि मिलती थी। बाकी सूर्यवंशी राजाई की कभी नहीं देखी है। चन्द्रवंशी की देखते ही आये। पहले तो सब सोने के सिक्के ही थे फिर चांदी के। यह तांबा आदि तो पीछे निकला है। अभी तुम बच्चे बाप से फिर वर्सा लेते हो। सतयुग में जो रसम-रिवाज चलनी होगी वह तो चलेगी ही। तुम अपना पुरुषार्थ करो। स्वर्ग में बहुत थोड़े होते हैं, आयु भी बड़ी होती है। अकाले मृत्यु नहीं होती। तुम समझते हो हम काल पर जीत पाते हैं। मरने का नाम ही नहीं। उसको कहते हैं अमरलोक, यह है मृत्युलोक। अमरलोक में हाहाकार होती नहीं। कोई बूढ़ा मरेगा तो और ही खुशी होगी, जाकर छोटा बच्चा बनेंगे। यहाँ पर तो मरने पर रोने लगते हैं। तुमको कितना अच्छा ज्ञान मिलता है, कितनी धारणा होनी चाहिए। औरों को भी समझाना पड़ता है। बाबा को कोई कहे हम रूहानी सर्विस करना चाहते हैं, बाबा झट कहेंगे भल करो। बाबा कोई को मना नहीं करते हैं। ज्ञान नहीं है तो बाकी अज्ञान ही है। अज्ञान से फिर बहुत डिससर्विस कर देते हैं। सर्विस तो अच्छी रीति करनी चाहिए ना तब ही लॉटरी मिलेगी। बहुत भारी लॉटरी है। यह है ईश्वरीय लॉटरी। तुम राजा-रानी बनेंगे तो तुम्हारे पोत्रे-पोत्रियाँ सब खाते आयेंगे। यहाँ तो हर एक अपने कर्मों अनुसार फल पाते हैं। कोई बहुत धन दान करते हैं तो राजा बनते हैं, तो बाप बच्चों को सब कुछ समझाते हैं। अच्छी रीति समझकर और धारणा करनी है। सर्विस भी करनी है। सैकड़ों की सर्विस होती है। कहाँ-कहाँ भक्ति भाव वाले बहुत अच्छे होते हैं। बहुत भक्ति की होगी तब ही ज्ञान भी जंचेगा। चेहरे से ही मालूम पड़ता है। सुनने से खुश होते रहेंगे। जो नहीं समझेंगे वह तो इधर-उधर देखते रहेंगे या आंखें बंद कर बैठेंगे। बाबा सब देखते हैं। किसको सिखलाते नहीं हैं तो गोया समझते कुछ नहीं। एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं। अभी यह समय है बेहद के बाप से बेहद का वर्सा लेने का। जितना लेंगे जन्म-जन्मान्तर कल्प-कल्पान्तर मिलेगा। नहीं तो फिर पीछे बहुत पछतायेंगे फिर सबको साक्षात्कार होगा। हमने पूरा पढ़ा नहीं इसलिए पद भी नहीं पा सकेंगे। बाकी क्या जाकर बनेंगे? नौकर चाकर, साधारण प्रजा। यह राजधानी स्थापन हो रही है। जैसा-जैसा करते हैं उस अनुसार फल मिलता है। नई दुनिया के लिए सिर्फ तुम ही पुरूषार्थ करते हो। मनुष्य दान-पुण्य करते हैं, वह भी इस दुनिया के लिए, यह तो कॉमन बात है। हम अच्छा काम करते हैं तो उसका दूसरे जन्म में अच्छा फल मिलेगा। तुम्हारी तो है 21 जन्मों की बात। जितना हो सके अच्छा कर्म करो, आलराउन्डर बनो। नम्बरवन पहले ज्ञानी तू आत्मा और योगी तू आत्मा चाहिए। ज्ञानी भी चाहिए, भाषण के लिए महारथियों को बुलाते हैं ना जो सब प्रकार की सर्विस करते हैं तो पुण्य तो होता ही है। सब्जेक्ट्स हैं ना। योग में रहकर कोई भी काम करें तो अच्छे मार्क्स मिल सकते हैं। अपनी दिल से पूछना चाहिए हम सर्विस करते हैं? या सिर्फ खाते हैं, सोते हैं? यहाँ तो यह पढ़ाई है और कोई बात नहीं है। तुम मनुष्य से देवता, नर से नारायण बनते हो। अमरकथा, तीजरी की कथा है यही एक। मनुष्य तो सब झूठी कथायें जाकर सुनते हैं। तीसरा नेत्र तो सिवाए बाप के कोई दे न सके। अभी तुमको तीसरा नेत्र मिला है जिससे तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो। इस पढ़ाई में कुमार-कुमारियों को बहुत तीखा जाना चाहिए। चित्र भी हैं, कोई से पूछना चाहिए गीता का भगवान कौन है? मुख्य बात ही यह है। भगवान तो एक ही होता है, जिससे वर्सा मिलता है मुक्तिधाम का। हम वहाँ रहने वाले हैं, यहाँ आये हैं पार्ट बजाने। अब पावन कैसे बनें। पतित-पावन तो एक ही बाप है। आगे चलकर तुम बच्चों की अवस्था भी बहुत अच्छी हो जायेगी। बाप किसम-किसम से समझानी देते रहते हैं। एक तो बाप को याद करना है तो जन्म-जन्मान्तर के पाप मिट जायेंगे। अपनी दिल से पूछना है - हम कितना याद करते हैं? चार्ट रखना अच्छा है, अपनी उन्नति करो। अपने ऊपर रहम कर अपनी चलन देखते रहो। अगर हम भूलें करते रहेंगे तो रजिस्टर खराब हो जायेगा, इसमें दैवी चलन होनी चाहिए। गायन भी है ना - जो खिलायेंगे, जहाँ बिठायेंगे, जो डायरेक्शन देंगे वह करेंगे। डायरेक्शन तो जरूर तन द्वारा देंगे ना। गेट वे टू स्वर्ग, यह अक्षर अच्छा है। यह द्वार है स्वर्ग जाने का। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) पुण्य आत्मा बनने के लिए और सब आशायें छोड़ यह पक्का करना है कि बाबा जो खिलाओ, जहाँ बिठाओ, कोई भी पाप का काम नहीं करना है।
2) ईश्वरीय लॉटरी प्राप्त करने के लिए रूहानी सर्विस में लग जाना है। ज्ञान की धारणा कर औरों को करानी है। अच्छी मार्क्स लेने के लिए कोई भी कर्म याद में रहकर करना है।
वरदान:-
स्नेह के वाण द्वारा स्नेह में घायल करने वाले स्नेह और प्राप्ति सम्पन्न लवलीन आत्मा भव
जैसे लौकिक रीति से कोई किसके स्नेह में लवलीन होता है तो चेहरे से, नयनों से, वाणी से अनुभव होता है कि यह लवलीन है-आशिक है-ऐसे जब स्टेज पर जाते हो तो जितना अपने अन्दर बाप का स्नेह इमर्ज होगा उतना ही स्नेह का वाण औरों को भी स्नेह में घायल कर देगा। भाषण की लिंक सोचना, प्वाइंट दुहराना-यह स्वरूप नहीं हो, स्नेह और प्राप्ति का सम्पन्न स्वरूप, लवलीन स्वरूप हो। अथॉर्टी होकर बोलने से उसका प्रभाव पड़ता है।
स्लोगन:-
सम्पूर्णता द्वारा समाप्ति के समय को समीप लाओ।
|
|
Post a Comment