Today's murali 6-4-2020 | om Shanti aaj ki Bk murli today | BK brahma Kumaris today murli Hindi

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06-04-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - अपने ऊपर रहम करो, बाप जो मत देते हैं उस पर चलो तो अपार खुशी रहेगी, माया के श्राप से बचे रहेंगे"

प्रश्नः- माया का श्राप क्यों लगता है? श्रापित आत्मा की गति क्या होगी?

उत्तर:- 1. बाप और पढ़ाई का (ज्ञान रत्नों का) निरादर करने से, अपनी मत पर चलने से माया का श्राप लग जाता है, 2. आसुरी चलन है, दैवीगुण धारण नहीं करते तो अपने पर बेरहमी करते हैं। बुद्धि को ताला लग जाता है। वह बाप की दिल पर चढ़ नहीं सकते।

ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों को यह तो अब निश्चय है कि हमको आत्म-अभिमानी बनना है और बाप को याद करना है। माया रूपी रावण जो है वह श्रापित, दु:खी बना देता है। श्राप अक्षर ही दु:ख का है, वर्सा अक्षर सुख का है। जो बच्चे व़फादार, फरमानबरदार हैं, वह अच्छी रीति जानते हैं। जो नाफरमानबरदार है, वह बच्चा है नहीं। 

भल अपने को कुछ भी समझें परन्तु बाप की दिल पर चढ़ नहीं सकते, वर्सा पा नहीं सकते। जो माया के कहने पर चलते और बाप को याद भी नहीं करते, किसको समझा नहीं सकते। गोया अपने को आपेही श्रापित करते हैं। बच्चे जानते हैं माया बड़ी जबरदस्त है। अगर बेहद के बाप की भी नहीं मानते हैं तो गोया माया की मानते हैं। 

माया के वश हो जाते हैं। कहावत है ना - प्रभू की आज्ञा सिर माथे। तो बाप कहते हैं बच्चे, पुरुषार्थ कर बाप को याद करो तो माया की गोद से निकल प्रभू की गोद में आ जायेंगे। बाप तो बुद्धिवानों का बुद्धिवान है। बाप की नहीं मानेंगे तो बुद्धि को ताला लग जायेगा। ताला खोलने वाला एक ही बाप है। श्रीमत पर नहीं चलते तो उनका क्या हाल होगा। माया की मत पर कुछ भी पद पा नहीं सकेंगे। भल सुनते हैं परन्तु धारणा नहीं कर सकते हैं, न करा सकते तो उसका क्या हाल होगा! बाप तो गरीब निवाज़ हैं। 

मनुष्य गरीबों को दान करते हैं तो बाप भी आकर कितना बेहद का दान करते हैं। अगर श्रीमत पर नहीं चलते तो एकदम बुद्धि को ताला लग जाता है। फिर क्या प्राप्ति करेंगे! श्रीमत पर चलने वाले ही बाप के बच्चे ठहरे। बाप तो रहमदिल है। समझते हैं बाहर जाते ही माया एकदम खत्म कर देगी। कोई आपघात करते हैं तो भी अपनी सत्यानाश करते हैं। 

बाप तो समझाते रहते हैं - अपने पर रहम करो, श्रीमत पर चलो, अपनी मत पर नहीं चलो। श्रीमत पर चलने से खुशी का पारा चढ़ेगा। लक्ष्मी-नारायण की शक्ल देखो कैसी खुशनुम: है। तो पुरुषार्थ कर ऐसा ऊंच पद पाना चाहिए ना। बाप अविनाशी ज्ञान रत्न देते हैं तो उनका निरादर क्यों करना चाहिए! रत्नों से झोली भरनी चाहिए। सुनते तो हैं परन्तु झोली नहीं भरते क्योंकि बाप को याद नहीं करते। 

आसुरी चलन चलते हैं। बाप बार-बार समझाते रहते हैं - अपने पर रहम करो, दैवीगुण धारण करो। वह है ही आसुरी सम्प्रदाय। उनको बाप आकर परिस्तानी बनाते हैं। परिस्तान स्वर्ग को कहा जाता है। मनुष्य कितना धक्का खाते रहते हैं। संन्यासियों आदि के पास जाते हैं, समझते हैं मन को शान्ति मिलेगी। वास्तव में यह अक्षर ही रांग है, इनका कोई अर्थ नहीं। शान्ति तो आत्मा को चाहिए ना। आत्मा स्वयं शान्त स्वरूप है। ऐसे भी नहीं कहते कि आत्मा को कैसे शान्ति मिले? कहते हैं मन को शान्ति कैसे मिले? अब मन क्या है, बुद्धि क्या है, आत्मा क्या है, कुछ भी जानते नहीं। 

जो कुछ कहते अथवा करते हैं वह सब है भक्ति मार्ग। भक्ति मार्ग वाले सीढ़ी नीचे उतरते-उतरते तमोप्रधान बनते जाते हैं। भल किसको बहुत धन, प्रापर्टी आदि है परन्तु हैं तो फिर भी रावण राज्य में ना।

तुम बच्चों को चित्रों पर समझाने की भी बहुत अच्छी प्रैक्टिस करनी है। बाप सब सेन्टर्स के बच्चों को समझाते रहते हैं, नम्बरवार तो हैं ना। कई बच्चे राजाई पद पाने का पुरुषार्थ नहीं करते तो प्रजा में क्या जाकर बनेंगे! सर्विस नहीं करते, अपने पर तरस नहीं आता है कि हम क्या बनेंगे फिर समझा जाता है ड्रामा में इनका पार्ट इतना है। अपना कल्याण करने के लिए ज्ञान के साथ-साथ योग भी हो। 

योग में नहीं रहते तो कुछ भी कल्याण नहीं होता। योग बिगर पावन बन नहीं सकते। ज्ञान तो बहुत सहज है परन्तु अपना कल्याण भी करना है। योग में न रहने से कुछ भी कल्याण होता नहीं। योग बिगर पावन कैसे बनेंगे? ज्ञान अलग चीज़ है, योग अलग चीज़ है। योग में बहुत कच्चे हैं। याद करने का अक्ल ही नहीं आता। तो याद बिगर विकर्म कैसे विनाश हों। फिर सजा बहुत खानी पड़ती है, बहुत पछताना पड़ता है। वह स्थूल कमाई नहीं करते तो कोई सजा नहीं खाते हैं, इसमें तो पापों का बोझा सिर पर है, उसकी बहुत सजा खानी पड़े। 

बच्चे बनकर और बेअदब होते हैं तो बहुत सजा मिल जाती है। बाप तो कहते हैं - अपने पर रहम करो, योग में रहो। नहीं तो मुफ्त अपना घात करते हैं। जैसे कोई ऊपर से गिरता है, मरा नहीं तो हॉस्पिटल में पड़ा रहेगा, चिल्लाता रहेगा। नाहेक अपने को धक्का दिया, मरा नहीं, बाकी क्या काम का रहा। यहाँ भी ऐसे है। चढ़ना है बहुत ऊंचा। श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो गिर पड़ते हैं। आगे चल हर एक अपने पद को देख लेंगे कि हम क्या बनते हैं? जो सर्विसएबुल, आज्ञाकारी होंगे, वही ऊंच पद पायेंगे। नहीं तो दास-दासी आदि जाकर बनेंगे। फिर सजा भी बहुत कड़ी मिलेगी। उस समय दोनों जैसे धर्मराज का रूप बन जाते हैं। 

परन्तु बच्चे समझते नहीं हैं, भूलें करते रहते हैं। सजा तो यहाँ खानी पड़ेगी ना। जितना जो सर्विस करेंगे, शोभेंगे। नहीं तो कोई काम के नहीं रहेंगे। बाप कहते हैं दूसरों का कल्याण नहीं कर सकते हो तो अपना कल्याण तो करो। बांधेलियाँ भी अपना कल्याण करती रहती हैं। बाप फिर भी बच्चों को कहते हैं खबरदार रहो। नाम-रूप में फँसने से माया बहुत धोखा देती है। कहते हैं बाबा फलानी को देखने से हमको खराब संकल्प चलते हैं। बाप समझाते हैं - कर्मेन्द्रियों से कभी भी खराब काम नहीं करना है। 

कोई भी गंदा आदमी जिसकी चलन ठीक न हो तो सेन्टर पर उनको आने नहीं देना है। स्कूल में कोई बदचलन चलते हैं तो बहुत मार खाते हैं। टीचर सबके आगे बतलाते हैं, इसने ऐसे बदचलन की है, इसलिए इनको स्कूल से निकाला जाता है। तुम्हारे सेन्टर्स पर भी ऐसी गन्दी दृष्टि वाले आते हैं, तो उनको भगा देना चाहिए। बाप कहते हैं कभी कुदृष्टि नहीं रहनी चाहिए। सर्विस नही करते, बाप को याद नहीं करते तो जरूर कुछ न कुछ गन्दगी है। जो अच्छी सर्विस करते हैं, उनका नाम भी बाला होता है। थोड़ा भी संकल्प आये, कुदृष्टि जाये तो समझना चाहिए माया का वार होता है। एकदम छोड़ देना चाहिए। नहीं तो वृद्धि को पाए नुकसान कर देंगे। बाप को याद करेंगे तो बचते रहेंगे। बाबा सब बच्चों को सावधान करते हैं - खबरदार रहो, कहाँ अपने कुल का नाम बदनाम नहीं करो। 

कोई गन्धर्वी विवाह कर इकट्ठे रहते हैं तो कितना नाम बाला करते हैं, कोई फिर गन्दे बन पड़ते हैं। यहाँ तुम आये हो अपनी सद्गति करने, न कि बुरी गति करने। बुरे ते बुरा है काम, फिर क्रोध। आते हैं बाप से वर्सा लेने लिए परन्तु माया वार कर श्राप दे देती है तो एकदम गिर पड़ते हैं। गोया अपने को श्राप दे देते हैं। तो बाप समझाते हैं बड़ी सम्भाल रखनी है, कोई ऐसा आये तो उनको एकदम रवाना कर देना चाहिए। दिखाते भी हैं ना - अमृत पीने आये फिर बाहर जाकर असुर बन गन्द किया। वह फिर यह ज्ञान सुना न सकें। 

ताला बंद हो जाता है। बाप कहते हैं अपनी सर्विस पर ही तत्पर रहना चाहिए। बाप की याद में रहते-रहते पिछाड़ी को चले जाना है घर। गीत भी है ना - रात के राही थक मत जाना....... आत्मा को घर जाना है। आत्मा ही राही है। आत्मा को रोज़ समझाया जाता है अब तुम शान्तिधाम जाने के राही हो। तो अब बाप को, घर को और वर्से को याद करते रहो। अपने को देखना है माया कहाँ धोखा तो नहीं देती है? मैं अपने बाप को याद करता हूँ?

ऊंच ते ऊंच बाप की तरफ ही दृष्टि रहे - यह है बहुत ऊंच पुरुषार्थ। बाप कहते हैं - बच्चे, कुदृष्टि छोड़ दो। देह-अभिमान माना कुदृष्टि, देही-अभिमानी माना शुद्ध दृष्टि। तो बच्चों की दृष्टि बाप की तरफ रहनी चाहिए। वर्सा बहुत ऊंच है - विश्व की बादशाही, कम बात है! स्वप्न में भी किसको नहीं होगा कि पढ़ाई से, योग से विश्व की बादशाही मिल सकती है। पढ़कर ऊंच पद पायेंगे तो बाप भी खुश होगा, टीचर भी खुश होगा, सतगुरू भी खुश होगा। 

याद करते रहेंगे तो बाप भी पुचकार देते रहेंगे। बाप कहते हैं - बच्चे, यह खामियां निकाल दो। नहीं तो मुफ्त नाम बदनाम करेंगे। बाप तो विश्व का मालिक बनाते, सौभाग्य खोलते हैं। भारतवासी ही 100 प्रतिशत सौभाग्यशाली थे सो फिर 100 प्रतिशत दुर्भाग्यशाली बने हैं फिर तुमको सौभाग्यशाली बनाने के लिए पढ़ाया जाता है।

बाबा ने समझाया है धर्म के जो बड़े-बड़े हैं, वह भी तुम्हारे पास आयेंगे। योग सीखकर जायेंगे। म्युज़ियम में जो टूरिस्ट आते हैं, उनको भी तुम समझा सकते हो - अब स्वर्ग के गेट्स खुलने हैं। झाड़ पर समझाओ, देखो तुम फलाने समय पर आते हो। भारतवासियों का पार्ट फलाने समय पर है।

तुम यह नॉलेज सुनते हो फिर अपने देश में जाकर बताओ कि बाप को याद करो तो तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे। योग के लिए तो वह चाहना रखते हैं। हठयोगी, संन्यासी तो उन्हों को योग सिखला न सकें। तुम्हारी मिशन भी बाहर जायेगी। समझाने की बड़ी युक्ति चाहिए। धर्म के जो बड़े-बड़े हैं उन्हों को आना तो है। 

तुमसे कोई एक भी अच्छी रीति यह नॉलेज ले जाये तो एक से कितने ढेर समझ जायेंगे। एक की बुद्धि में आ गया तो फिर अखबारों आदि में भी डालेंगे। यह भी ड्रामा में नूँध है। नहीं तो बाप को याद करना कैसे सीखे। बाप का परिचय तो सबको मिलना है। कोई न कोई निकलेंगे। म्युज़ियम में बहुत पुरानी चीजें देखने जाते हैं। यहाँ फिर तुम्हारी पुरानी नॉलेज सुनेंगे। ढेर आयेंगे। उनसे कोई अच्छी रीति समझेंगे। यहाँ से ही दृष्टि मिलेगी या तो मिशन बाहर जायेगी। 

तुम कहेंगे बाप को याद करो तो अपने धर्म में ऊंच पद पायेंगे। पुनर्जन्म लेते-लेते सब नीचे आ गये हैं। नीचे उतरना माना तमोप्रधान बनना। पोप आदि ऐसे कह न सके कि बाप को याद करो। बाप को जानते ही नहीं। तुम्हारे पास बहुत अच्छी नॉलेज है। चित्र भी सुन्दर बनते रहते हैं। सुन्दर चीज़ होगी तो म्युजियम और ही सुन्दर होगा। बहुत आयेंगे देखने के लिए। 

जितने बड़े चित्र होंगे उतना अच्छी रीति समझा सकेंगे। शौक रहना चाहिए हम ऐसे समझायें। सदा तुम्हारी बुद्धि में रहे कि हम ब्राह्मण बने हैं तो जितनी सर्विस करेंगे उतना बहुत मान होगा। यहाँ भी मान तो वहाँ भी मान होगा। तुम पूज्य बनेंगे। यह ईश्वरीय नॉलेज धारण करनी है। बाप तो कहते हैं सर्विस पर दौड़ते रहो। बाप कहाँ भी सर्विस पर भेजे, इसमें कल्याण है। सारा दिन बुद्धि में सर्विस के ख्याल चलने चाहिए। फॉरेनर्स को भी बाप का परिचय देना है। 

मोस्ट बिलवेड बाप को याद करो, कोई भी देहधारी को गुरू नहीं बनाओ। सबका सद्गति दाता वह एक बाप है। अभी होलसेल मौत सामने खड़ा है, होलसेल और रीटेल व्यापार होता है ना। बाप है होलसेल, वर्सा भी होलसेल देते हैं। 21 जन्म के लिए विश्व की राजाई लो। मुख्य चित्र हैं ही त्रिमूर्ति, गोला, झाड़, सीढ़ी, विराट रूप का चित्र और गीता का भगवान कौन?..... यह चित्र तो फर्स्ट क्लास है, इसमें बाप की महिमा पूरी है। बाप ने ही कृष्ण को ऐसा बनाया है, यह वर्सा गॉड फादर ने दिया। 

कलियुग में इतने ढेर मनुष्य हैं, सतयुग में थोड़े हैं। यह फेरघेर (अदली-बदली) किसने की? ज़रा भी कोई नहीं जानते हैं। तो टूरिस्ट बहुत करके बड़े-बड़े शहरों में जाते हैं। वह भी आकर बाप का परिचय पायेंगे। प्वाइंट्स तो सर्विस की बहुत मिलती रहती हैं। विलायत में भी जाना है। एक तरफ तुम बाप का परिचय देते रहेंगे, दूसरे तरफ मारामारी चलती रहेगी। सतयुग में थोड़े मनुष्य होंगे तो जरूर बाकी का विनाश होगा ना। वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती है। जो हो गया वो फिर रिपीट होगा। परन्तु किसको समझाने का भी अक्ल चाहिए। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सदा एक बाप की तरफ ही दृष्टि रखनी है। देही-अभिमानी बनने का पुरुषार्थ कर माया के धोखे से बचना है। कभी कुदृष्टि रख अपने कुल का नाम बदनाम नहीं करना है।
2) सर्विस के लिए भाग दौड़ करते रहना है। सर्विसएबुल और आज्ञाकारी बनना है। अपना और दूसरों का कल्याण करना है। कोई भी बदचलन नहीं चलनी है।

वरदान:- एकता और सन्तुष्टता के सर्टीफिकेट द्वारा सेवाओं में सदा सफलतामूर्त भव

सेवाओं में सफलतामूर्त बनने के लिए दो बातें ध्यान में रखनी है एक - संस्कारों को मिलाने की युनिटी और दूसरा स्वयं भी सदा सन्तुष्ट रहो तथा दूसरों को भी सन्तुष्ट करो। सदा एक दो में स्नेह की भावना से, श्रेष्ठता की भावना से सम्पर्क में आओ तो यह दोनों सर्टीफिकेट मिल जायेंगे। फिर आपकी प्रैक्टिकल जीवन बाप के सूरत का दर्पण बन जायेगी और उस दर्पण में बाप जो है जैसा है वैसा दिखाई देगा।

स्लोगन:- आत्म स्थिति में स्थित होकर अनेक आत्माओं को जीयदान दो तो दुआयें मिलेंगी।


07-04-2020 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन

"मीठे बच्चे - बेहद बाप के साथ व़फादार रहो तो पूरी माइट मिलेगी, माया पर जीत होती जायेगी"

प्रश्नः- बाप के पास मुख्य अथॉरिटी कौन-सी है? उसकी निशानी क्या है?

उत्तर:- बाप के पास मुख्य है ज्ञान की अथॉरिटी। ज्ञान सागर है इसलिए तुम बच्चों को पढ़ाई पढ़ाते हैं। आप समान नॉलेजफुल बनाते हैं। तुम्हारे पास पढ़ाई की एम ऑब्जेक्ट है। पढ़ाई से ही तुम ऊंच पद पाते हो।

गीत:- बदल जाए दुनिया.........

ओम् शान्ति। भक्त भगवान की महिमा करते हैं। अब तुम तो भक्त नहीं हो। तुम तो उस भगवान के बच्चे बन गये हो। वह भी व़फादार बच्चे चाहिए। हर बात में व़फादार रहना है। स्त्री की सिवाए पति के अथवा पति की सिवाए स्त्री के और तरफ दृष्टि जाए तो उनको भी बेव़फा कहेंगे। अब यहाँ भी है बेहद का बाप। उनके साथ बेव़फादार और व़फादार दोनों रहते हैं। व़फादार बनकर फिर बेव़फादार बन जाते हैं। 

बाप तो है हाइएस्ट अथॉरिटी। ऑलमाइटी है ना। तो उनके बच्चे भी ऐसे होने चाहिए। बाप में ताकत है, बच्चों को रावण पर जीत पाने की युक्ति बतलाते हैं इसलिए उनको कहा भी जाता है सर्वशक्तिमान्। तुम भी शक्ति सेना हो ना। तुम अपने को भी ऑलमाइटी कहेंगे। बाप में जो माइट है वह हमको देते हैं, बतलाते हैं कि तुम माया रावण पर जीत कैसे पा सकते हो, तो तुमको भी शक्तिवान बनना है। बाप है ज्ञान की अथॉरिटी। नॉलेजफुल है ना। 

जैसे वो लोग अथॉरिटी हैं, शास्त्रों की, भक्तिमार्ग की, ऐसे अब तुम ऑलमाइटी अथॉरिटी नॉलेजफुल बनते हो। तुमको भी नॉलेज मिलती है। यह पाठशाला है। इसमें जो नॉलेज तुम पढ़ते हो, इससे ऊंच पद पा सकते हो। यह एक ही पाठशाला है। तुमको तो यहाँ पढ़ना है और कोई प्रार्थना आदि नहीं करनी है। 

तुम्हें पढ़ाई से वर्सा मिलता है, एम ऑब्जेक्ट है। तुम बच्चे जानते हो बाप नॉलेजफुल है, उनकी पढ़ाई बिल्कुल डिफरेन्ट है। ज्ञान का सागर बाप है तो वही जाने। वही हमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का नॉलेज देते हैं। दूसरा कोई दे न सके। बाप सम्मुख आकर ज्ञान दे फिर चले जाते हैं। इस पढ़ाई की प्रालब्ध क्या मिलती है, वह भी तुम जानते हो। बाकी जो भी सतसंग आदि हैं वा गुरू गोसाई हैं वह सब हैं भक्ति मार्ग के। अब तुमको ज्ञान मिल रहा है। 

यह भी जानते हैं कि उनमें भी कोई यहाँ के होंगे तो निकल आयेंगे। तुम बच्चों को सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालनी हैं। अपना अनुभव सुनाकर अनेकों का भाग्य बनाना है। तुम सर्विसएबुल बच्चों की अवस्था बड़ी निर्भय, अडोल और योगयुक्त चाहिए। योग में रहकर सर्विस करो तो सफलता मिल सकती है।

बच्चे, तुम्हें अपने को पूरा सम्भालना है। कभी आवेश आदि न आये, योगयुक्त पक्का चाहिए। बाप ने समझाया है वास्तव में तुम सब वानप्रस्थी हो, वाणी से परे अवस्था वाले। वानप्रस्थी अर्थात् वाणी से परे घर को और बाप को याद करने वाले। इसके सिवाए और कोई तमन्ना नहीं। हमको अच्छे कपड़े चाहिए, यह सब हैं छी-छी तमन्नायें। देह-अभिमान वाले सर्विस कर नहीं सकेंगे। देही-अभिमानी बनना पड़े। भगवान के बच्चों को तो माइट चाहिए। वह है योग की। बाबा तो सभी बच्चों को जान सकते हैं ना। 

बाबा झट बता देंगे, यह-यह खामियां निकालो। बाबा ने समझाया है शिव के मन्दिर में जाओ, वहाँ बहुत तुमको मिलेंगे। बहुत हैं जो काशी में जाकर वास करते हैं। समझते हैं काशीनाथ हमारा कल्याण करेगा। वहाँ तुमको बहुत ग्राहक मिलेंगे, परन्तु इसमें बड़ा शुरूड़ बुद्धि (होशियार बुद्धि) चाहिए। गंगा स्नान करने वालों को भी जाकर समझा सकते हैं। मन्दिरों में भी जाकर समझाओ। गुप्त वेष में जा सकते हो। हनूमान का मिसाल। हो तो वास्तव में तुम ना। जुत्तियों में बैठने की बात नहीं है। इसमें बड़ा समझू सयाना चाहिए। बाबा ने समझाया है अभी कोई भी कर्मातीत नहीं बना है। कुछ न कुछ खामियां जरूर हैं।

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तुम बच्चों को नशा चाहिए कि यह एक ही हट्टी है, जहाँ सबको आना है। एक दिन यह संन्यासी आदि सब आयेंगे। एक ही हट्टी है तो जायेंगे कहाँ। जो बहुत भटका हुआ होगा, उनको ही रास्ता मिलेगा। और समझेंगे यह एक ही हट्टी है। सबका सद्गति दाता एक बाप है ना। ऐसा जब नशा चढ़े तब बात है। बाप को यही ओना है ना - मैं आया हूँ पतितों को पावन बनाए शान्तिधाम-सुखधाम का वर्सा देने। तुम्हारा भी यही धंधा है। सबका कल्याण करना है। यह है पुरानी दुनिया। इनकी आयु कितनी है? थोड़े टाइम में समझ जायेंगे, यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है। 

सभी आत्माओं को यह बुद्धि में आयेगा, नई दुनिया की स्थापना हो तब तो पुरानी दुनिया का विनाश हो। आगे चल फिर कहेंगे बरोबर भगवान यहाँ है। रचयिता बाप को ही भूल गये हैं। त्रिमूर्ति में शिव का चित्र उड़ा दिया है, तो कोई काम का नहीं रहा। रचयिता तो वह है ना। शिव का चित्र आने से क्लीयर हो जाता है - ब्रह्मा द्वारा स्थापना। प्रजापिता ब्रह्मा होगा तो जरूर बी.के. भी होने चाहिए। ब्राह्मण कुल सबसे ऊंचा होता है। ब्रह्मा की औलाद हैं। 

ब्राह्मणों को रचते कैसे हैं, यह भी कोई नहीं जानते। बाप ही आकर तुमको शूद्र से ब्राह्मण बनाते हैं। यह बड़ी पेचीली बातें हैं। बाप जब सम्मुख आकर समझाये तब समझें। जो देवतायें थे वह शूद्र बने हैं। अब उन्हों को कैसे ढूंढ़े उसके लिए युक्तियां निकालनी हैं। जो समझ जाएं यह बी.के. का तो भारी कार्य है। कितने पर्चे आदि बांटते हैं। बाबा ने एरोप्लेन से पर्चे गिराने लिए भी समझाया है। कम से कम अखबार जितना एक कागज हो, उसमें मुख्य प्वाइंट्स सीढ़ी आदि भी आ सकती है। मुख्य है अंग्रेजी और हिन्दी भाषा। तो बच्चों को सारा दिन ख्यालात रखनी चाहिए - सर्विस को कैसे बढ़ायें? यह भी जानते हैं ड्रामा अनुसार पुरूषार्थ होता रहता है। समझा जाता है यह सर्विस अच्छी करते हैं, इनका पद भी ऊंच होगा। हर एक एक्टर का अपना पार्ट है, यह भी लाइन जरूर लिखनी है। बाप भी इस ड्रामा में निराकारी दुनिया से आकर साकारी शरीर का आधार ले पार्ट बजाते हैं। 

अभी तुम्हारी बुद्धि में है, कौन-कौन कितना पार्ट बजाते हैं? तो यह लाइन भी मुख्य है। सिद्ध कर बतलाना है, यह सृष्टि चक्र को जानने से मनुष्य स्वदर्शन चक्रधारी बन चक्रवर्ती राजा विश्व का मालिक बन सकते हैं। तुम्हारे पास तो सारी नॉलेज है ना। बाप के पास नॉलेज है ही गीता की, जिससे मनुष्य नर से नारायण बनते हैं। फुल नॉलेज बुद्धि में आ गई तो फिर फुल बादशाही चाहिए। तो बच्चों को ऐसे-ऐसे ख्याल कर बाप की सर्विस में लग जाना चाहिए।

जयपुर में भी यह रूहानी म्युज़ियम स्थाई रहेगा। लिखा हुआ है - इनको समझने से मनुष्य विश्व का मालिक बन सकते हैं। जो देखेंगे एक-दो को सुनाते रहेंगे। बच्चों को सदा सर्विस पर रहना है। मम्मा भी सर्विस पर है, उनको मुकरर किया था। यह कोई शास्त्रों में है नहीं कि सरस्वती कौन है? प्रजापिता ब्रह्मा की सिर्फ एक बेटी होगी क्या? अनेक बेटियाँ अनेक नाम वाली होंगी ना। वह फिर भी एडाप्ट थी। जैसे तुम हो। एक हेड चला जाता है तो फिर दूसरा स्थापन किया जाता है। प्राइम मिनिस्टर भी दूसरा स्थापन कर लेते हैं। एबुल समझा जाता है, तब उनको पसन्द करते हैं फिर टाइम पूरा हो जाता है, तो फिर दूसरे को चुनना पड़ता है। 

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बाप बच्चों को पहला मैनर्स यही सिखलाते हैं कि तुम किसका रिगार्ड कैसे रखो! अनपढ़े जो होते हैं उनको रिगार्ड रखना भी नहीं आता है। जो जास्ती तीखे हैं तो उनका सबको रिगार्ड रखना ही है। बड़ों का रिगार्ड रखने से वह भी सीख जायेंगे। अनपढ़े तो बुद्धू होते हैं। बाप ने भी अनपढ़ों को आकर उठाया है। आजकल फीमेल को आगे रखते हैं। तुम बच्चे जानते हो हम आत्माओं की सगाई परमात्मा के साथ हुई है। तुम बड़े खुश होते हो - हम तो विष्णुपुरी के मालिक जाकर बनेंगे। 

कन्या का बिगर देखे भी बुद्धियोग लग जाता है ना। यह भी आत्मा जानती है - यह आत्मा और परमात्मा की सगाई वन्डरफुल है। एक बाप को ही याद करना पड़े। वह तो कहेंगे गुरू को याद करो, फलाना मंत्र याद करो। यह तो बाप ही सब कुछ है। इन द्वारा आकर सगाई कराते हैं। कहते हैं मैं तुम्हारा बाप भी हूँ, मेरे से वर्सा मिलता है। कन्या की सगाई होती है तो फिर भूलती नहीं है। तुम फिर भूल क्यों जाते हो? कर्मातीत अवस्था को पाने में टाइम लगता है। 

कर्मातीत अवस्था को पाकर वापिस तो कोई जा न सके। जब साजन पहले चले फिर बरात जाये। शंकर की बात नहीं, शिव की बरात है। एक है साजन बाकी सब हैं सजनियां। तो यह है शिवबाबा की बरात। नाम रख दिया है बच्चे का। दृष्टान्त दे समझाया जाता है। बाप आकर गुल-गुल बनाए सबको ले जाते हैं। बच्चे जो काम चिता पर बैठ पतित बन गये हैं उनको ज्ञान चिता पर बिठाए गुल-गुल बनाकर सभी को ले जाते हैं। यह तो पुरानी दुनिया है ना। कल्प-कल्प बाप आते हैं। हम छी-छी को आकर गुल-गुल बनाए ले जाते हैं। रावण छी-छी बनाते हैं और शिवबाबा गुल-गुल बनाते हैं। तो बाबा बहुत युक्तियां समझाते रहते हैं। अच्छा!

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) खाने पीने की छी-छी तमन्नाओं को छोड़ देही-अभिमानी बन सर्विस करनी है। याद से माइट (शक्ति) ले निर्भय और अडोल अवस्था बनानी है।

2) जो पढ़ाई में तीखे होशियार हैं, उनका रिगार्ड रखना है। जो भटक रहे हैं, उनको रास्ता बताने की युक्ति रचनी है। सबका कल्याण करना है।

वरदान:-

अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा सर्व को प्राप्तियों की अनुभूति कराने वाले मास्टर विधाता भव

जैसे सूर्य विश्व को रोशनी की और अनेक विनाशी प्राप्तियों की अनुभूति कराता है ऐसे आप तपस्वी आत्मायें अपने तपस्वी स्वरूप द्वारा सर्व को प्राप्ति के किरणों की अनुभूति कराओ। इसके लिए पहले जमा का खाता बढ़ाओ। फिर जमा किये हुए खजाने मास्टर विधाता बन देते जाओ। तपस्वीमूर्त का अर्थ है - तपस्या द्वारा शान्ति के शक्ति की किरणें चारों ओर फैलती हुई अनुभव में आयें।

स्लोगन:- स्वयं निर्माण बनकर सर्व को मान देते चलो - यही सच्चा परोपकार है।
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