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30-12-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - सारा मदार याद पर है, याद से ही तुम मीठे बन जायेंगे, इस याद में ही माया की युद्ध चलती है"
प्रश्न:इस ड्रामा में कौन सा राज़ बहुत विचार करने योग्य है? जिसे तुम बच्चे ही जानते हो?
उत्तर:तुम जानते हो कि ड्रामा में एक पार्ट दो बार बज न सके। सारी दुनिया में जो भी पार्ट बजता है वह एक दो से नया। तुम विचार करते हो कि सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाते हैं। सारी एक्टिविटी बदल जाती है। आत्मा में 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड भरा हुआ है, जो कभी बदल नहीं सकता। यह छोटी सी बात तुम बच्चों के सिवाए और किसी की बुद्धि में नहीं आ सकती।
ओम् शान्ति।
रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं-मीठे-मीठे बच्चे, तुम अपना भविष्य का पुरूषोत्तम मुख, पुरूषोत्तम चोला देखते हो? यह पुरूषोत्तम संगमयुग है ना। तुम फील करते हो कि हम फिर नई दुनिया सतयुग में इनकी वंशावली में जायेंगे, जिसको सुखधाम कहा जाता है। वहाँ के लिए ही तुम अभी पुरूषोत्तम बन रहे हो। बैठे-बैठे यह विचार आना चाहिए। स्टूडेन्ट जब पढ़ते हैं तो उनकी बुद्धि में यह जरूर रहता है-कल हम यह बनेंगे। वैसे तुम भी जब यहाँ बैठते हो तो भी जानते हो कि हम विष्णु की डिनायस्टी में जायेंगे। तुम्हारी बुद्धि अब अलौकिक है।
और किसी मनुष्य की बुद्धि में यह बातें रमण नहीं करती होंगी। यह कोई कॉमन सतसंग नहीं है। यहाँ बैठे हो, समझते हो सत बाबा जिसको शिव कहते हैं हम उनके संग में बैठे हैं। शिवबाबा ही रचयिता है, वही इस रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं। वही यह नॉलेज देते हैं। जैसे कल की बात सुनाते हैं। यहाँ बैठे हो, यह तो याद होगा ना - हम आये हैं रिज्युवनेट होने अर्थात् यह शरीर बदल दैवी शरीर लेने। आत्मा कहती है हमारा यह तमोप्रधान पुराना शरीर है। इसको बदलकर ऐसा शरीर लेना है। कितनी सहज एम ऑब्जेक्ट है। पढ़ाने वाला टीचर जरूर पढ़ने वाले स्टुडेन्ट से होशियार होगा ना। पढ़ाते हैं, अच्छे कर्म भी सिखलाते हैं। अभी तुम समझते हो हमको ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर देवी-देवता ही बनायेंगे। यह पढ़ाई है ही नई दुनिया के लिए। और किसको नई दुनिया का ज़रा भी पता नहीं है।
यह लक्ष्मी-नारायण नई दुनिया के मालिक थे। देवी-देवतायें भी तो नम्बरवार होंगे ना। सब एक जैसे तो हो भी न सकें क्योंकि राजधानी है ना। यह ख्यालात तुम्हारे चलते रहने चाहिए। हम आत्मा अभी पतित से पावन बनने के लिए पावन बाप को याद करते हैं। आत्मा याद करती है अपने स्वीट बाप को। बाप खुद कहते हैं तुम मुझे याद करेंगे तो पावन सतोप्रधान बन जायेंगे। सारा मदार याद की यात्रा पर है। बाप जरूर पूछेंगे-बच्चे, मुझे कितना समय याद करते हो? याद की यात्रा में ही माया की युद्ध चलती है। तुम युद्ध भी समझते हो। यह यात्रा नहीं परन्तु जैसेकि लड़ाई है, इसमें ही बहुत खबरदार रहना है। नॉलेज में माया के तूफान आदि की बात नहीं।
बच्चे कहते भी हैं बाबा हम आपको याद करते हैं, परन्तु माया का एक ही तूफान नीचे गिरा देता है। नम्बरवन तूफान है देह-अभिमान का। फिर है काम, क्रोध, लोभ, मोह का। बच्चे कहते हैं बाबा हम बहुत कोशिश करते हैं याद में रहने की, कोई विघ्न न आये परन्तु फिर भी तूफान आ जाते हैं। आज क्रोध का, कभी लोभ का तूफान आया। बाबा आज हमारी अवस्था बहुत अच्छी रही, कोई भी तूफान सारा दिन नहीं आया। बड़ी खुशी रही। बाप को बड़े प्यार से याद किया। स्नेह के आंसू भी आते रहे। बाप की याद से ही बहुत मीठे बन जायेंगे।
यह भी समझते हैं हम माया से हार खाते-खाते कहाँ तक आकर पहुँचे हैं। यह कोई समझते थोड़ेही हैं। मनुष्य तो लाखों वर्ष कह देते हैं या परम्परा कह देते। तुम कहेंगे हम फिर से अभी मनुष्य से देवता बन रहे हैं। यह नॉलेज बाप ही आकर देते हैं। विचित्र बाप ही विचित्र नॉलेज देते हैं। विचित्र निराकार को कहा जाता है। निराकार कैसे यह नॉलेज देते हैं। बाप खुद समझाते हैं मैं कैसे इस तन में आता हूँ। फिर भी मनुष्य मूँझते हैं। क्या एक इसी तन में आयेगा! परन्तु ड्रामा में यही तन निमित्त बनता है। ज़रा भी चेन्ज हो नहीं सकती। यह बातें तुम ही समझकर और दूसरों को समझाते हो। आत्मा ही पढ़ती है। आत्मा ही सीखती-सिखलाती है।
आत्मा मोस्ट वैल्युबुल है। आत्मा अविनाशी है, सिर्फ शरीर खत्म होता है। हम आत्मायें अपने परमपिता परमात्मा से रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त के 84 जन्मों की नॉलेज ले रहे हैं। नॉलेज कौन लेते हैं? हम आत्मा। तुम आत्मा ने ही नॉलेजफुल बाप से मूलवतन, सूक्ष्मवतन को जाना है। मनुष्यों को पता ही नहीं है कि हमें अपने को आत्मा समझना है। मनुष्य तो अपने को शरीर समझ उल्टे लटक पड़े हैं। गायन है आत्मा सत, चित, आनन्द स्वरूप है। परमात्मा की सबसे जास्ती महिमा है। एक बाप की कितनी महिमा है। वही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है।
मच्छर आदि की तो इतनी महिमा नहीं करेंगे कि वह दु:ख हर्ता, सुख कर्ता, ज्ञान का सागर है। नहीं, यह है बाप की महिमा। तुम बच्चे भी मास्टर दु:ख हर्ता सुख कर्ता हो। तुम बच्चों को भी यह नॉलेज नहीं थी, जैसे बेबी बुद्धि थे। बच्चे में नॉलेज नहीं होती और कोई अवगुण भी नहीं होता है, इसलिए उसे महात्मा कहा जाता है क्योंकि पवित्र है। जितना छोटा बच्चा उतना नम्बरवन फूल। बिल्कुल ही जैसे कर्मातीत अवस्था है। कर्म-अकर्म-विकर्म को कुछ भी नहीं जानते हैं, इसलिए वह फूल है। सबको कशिश करते हैं। जैसे एक बाप सभी को कशिश करते हैं। बाप आये ही हैं सभी को कशिश कर खुशबूदार फूल बनाने। कई तो कांटे के कांटे ही रह जाते हैं। 5 विकारों के वशीभूत होने वाले को कांटा कहा जाता है।
नम्बरवन कांटा है देह-अभिमान का, जिससे और कांटों का जन्म होता है। कांटों का जंगल बहुत दु:ख देता है। किस्म-किस्म के कांटे जंगल में होते हैं ना इसलिए इसको दु:खधाम कहा जाता है। नई दुनिया में कांटे नहीं होते इसलिए उसको सुखधाम कहा जाता है। शिवबाबा फूलों का बगीचा लगाते हैं, रावण कांटों का जंगल लगाता है इसलिए रावण को कांटों की झाड़ियों से जलाते हैं और बाप पर फूल चढ़ाते हैं। इन बातों को बाप जानें और बच्चे जानें और न जाने कोई।
तुम बच्चे जानते हो-ड्रामा में एक पार्ट दो बार बज न सके। बुद्धि में है सारी दुनिया में जो पार्ट बजता है वह एक-दो से नया। तुम विचार करो सतयुग से लेकर अब तक कैसे दिन बदल जाता है। सारी एक्टिविटी ही बदल जाती है। 5 हजार वर्ष की एक्टिविटी का रिकॉर्ड आत्मा में भरा हुआ है। वह कभी बदल नहीं सकता। हर आत्मा में अपना-अपना पार्ट भरा हुआ है। यह छोटी-सी बात भी कोई की बुद्धि में आ न सके। इस ड्रामा के पास्ट, प्रेजन्ट और फ्युचर को तुम जानते हो। यह स्कूल है ना। पवित्र बन बाप को याद करने की पढ़ाई बाप पढ़ाते हैं।
यह बातें कभी सोची थी कि बाप आकर ऐसे पतित से पावन बनाने की पढ़ाई पढ़ायेंगे! इस पढ़ाई से ही हम विश्व के मालिक बनेंगे! भक्ति मार्ग के पुस्तक ही अलग हैं, उसको कभी पढ़ाई नहीं कहा जाता है। ज्ञान के बिना सद्गति हो भी कैसे? बाप बिना ज्ञान कहाँ से आये जिससे सद्गति हो। सद्गति में जब तुम होंगे तब भक्ति करेंगे? नहीं, वहाँ है ही अपार सुख, फिर भक्ति किसलिए करें? यह ज्ञान अभी ही तुम्हें मिलता है। सारा ज्ञान आत्मा में रहता है। आत्मा का कोई धर्म नहीं होता। आत्मा जब शरीर धारण करती है फिर कहते हैं फलाना इस-इस धर्म का है। आत्मा का धर्म क्या है? एक तो आत्मा बिन्दी मिसल है और शान्त स्वरूप है, शान्तिधाम में रहती है।
अभी बाप समझाते हैं सभी बच्चों का बाप पर हक है। बहुत बच्चे हैं जो और-और धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं। वह फिर निकलकर अपने असली धर्म में आ जायेंगे। जो देवी-देवता धर्म छोड़ दूसरे धर्म में गये हैं वह सभी पत्ते लौट अपनी जगह पर आ जायेंगे। तुम्हें पहले-पहले तो बाप का परिचय देना है। इन बातों में ही सब मूँझे हुए हैं। तुम बच्चे समझते हो अभी हमें कौन पढ़ाते हैं? बेहद का बाप। कृष्ण तो देहधारी है, इनको (ब्रह्मा बाबा को) भी दादा कहेंगे। तुम सब भाई-भाई हो ना। फिर है मर्तबे के ऊपर।
भाई का शरीर कैसा है, बहन का शरीर कैसा है। आत्मा तो एक छोटा सितारा है। इतनी सारी नॉलेज एक छोटे-से सितारे में है। सितारा शरीर के बिगर बात भी नहीं कर सकता। सितारे को पार्ट बजाने के लिए इतने ढेर आरगन्स मिले हुए हैं। तुम सितारों की दुनिया ही अलग है। आत्मा यहाँ आकर फिर शरीर धारण करती है। शरीर छोटा-बड़ा होता है। आत्मा ही अपने बाप को याद करती है। वह भी जब तक शरीर में है। घर में आत्मा बाप को याद करेगी? नहीं। वहाँ कुछ भी मालूम नहीं पड़ता-हम कहाँ हैं! आत्मा और परमात्मा दोनों जब शरीर में हैं तब आत्माओं और परमात्मा का मेला कहा जाता है। गायन भी है आत्मा और परमात्मा अलग रहे बहुकाल..... कितना समय अलग रहे? याद आता है-कितना समय अलग रहे? सेकण्ड-सेकण्ड पास होते 5 हज़ार वर्ष बीत गये। फिर वन नम्बर से शुरू करना है, एक्यूरेट हिसाब है। अभी तुमसे कोई पूछे इसने कब जन्म लिया था? तो तुम एक्यूरेट बता सकते हो। श्रीकृष्ण ही पहले नम्बर में जन्म लेता है।
शिव का तो कुछ भी मिनट सेकण्ड नहीं निकाल सकते। कृष्ण के लिए तिथि-तारीख, मिनट, सेकण्ड निकाल सकते हो। मनुष्यों की घड़ी में फ़र्क पड़ सकता है। शिवबाबा के अवतरण में तो बिल्कुल फ़र्क नहीं पड़ सकता। पता ही नहीं पड़ता कब आया? ऐसे भी नहीं, साक्षात्कार हुआ तब आया। नहीं, अन्दाज लगा सकते हैं। मिनट-सेकेण्ड का हिसाब नहीं बता सकते। उनका अवतरण भी अलौकिक है, वह आते ही हैं बेहद की रात के समय। बाकी और भी जो अवतरण आदि होते हैं, उनका पता पड़ता है। आत्मा शरीर में प्रवेश करती है। छोटा चोला पहनती है फिर धीरे-धीरे बड़ा होता है। शरीर के साथ आत्मा बाहर आती है। इन सभी बातों को विचार सागर मंथन कर फिर औरों को समझाना होता है। कितने ढेर मनुष्य हैं, एक न मिले दूसरे से। कितना बड़ा माण्डवा है। जैसे बड़ा हाल है, जिसमें बेहद का नाटक चलता है।
तुम बच्चे यहाँ आते हो नर से नारायण बनने के लिए। बाप जो नई सृष्टि रचते हैं उसमें ऊंच पद लेने के लिए। बाकी यह जो पुरानी दुनिया है वह तो विनाश होनी है। बाबा द्वारा नई दुनिया की स्थापना हो रही है। बाबा को फिर पालना भी करनी है। जरूर जब यह शरीर छोड़े तब फिर सतयुग में नया शरीर लेकर पालना करे। उसके पहले इस पुरानी दुनिया का विनाश भी होना है। भंभोर को आग लगेगी। पीछे यह भारत ही रहेगा बाकी तो खलास हो जायेंगे। भारत में भी थोड़े बचेंगे। तुम अब मेहनत कर रहे हो कि विनाश के बाद फिर सजायें न खायें।
अगर विकर्म विनाश नहीं होंगे तो सजायें भी खायेंगे और पद भी नहीं मिलेगा। तुमसे जब कोई पूछते हैं तुम किसके पास जाते हो? तो बोलो, शिवबाबा के पास, जो ब्रह्मा के तन में आया हुआ है। यह ब्रह्मा कोई शिव नहीं है। जितना बाप को जानेंगे तो बाप के साथ प्यार भी रहेगा। बाबा कहते हैं बच्चे तुम और कोई को प्यार नहीं करो और संग प्यार तोड़ एक संग जोड़ो। जैसे आशिक माशूक होते हैं ना। यह भी ऐसे हैं। 108 सच्चे आशिक बनते हैं, उसमें भी 8 सच्चे-सच्चे बनते हैं। 8 की भी माला होती है ना। 9 रत्न गाये हुए हैं। 8 दानें, 9 वां बाबा।
मुख्य हैं 8 देवतायें, फिर 16108 शहजादे शहजादियों का कुटुम्ब बनता है त्रेता अन्त तक। बाबा तो हथेली पर बहिश्त दिखलाते हैं। तुम बच्चों को नशा है कि हम तो सृष्टि के मालिक बनते हैं। बाबा से ऐसा सौदा करना है। कहते हैं कोई विरला व्यापारी यह सौदा करे। ऐसे कोई व्यापारी थोड़ेही हैं। तो बच्चे ऐसे उमंग में रहो हम जाते हैं बाबा के पास। ऊपर वाला बाबा। दुनिया को मालूम नहीं है, वो कहेंगे कि वह तो अन्त में आता है। अब वही कलियुग का अन्त है। वही गीता, महाभारत का समय है, वही यादव जो मूसल निकाल रहे हैं। वही कौरवों का राज्य और वही तुम पाण्डव खड़े हो।
तुम बच्चे अभी घर बैठे अपनी कमाई कर रहे हो। भगवान घर बैठे आया हुआ है इसलिए बाबा कहते हैं कि अपनी कमाई कर लो। यही हीरे जैसा जन्म अमोलक गाया हुआ है। अब इसको कौड़ी बदले खोना नहीं है। अब तुम इस सारी दुनिया को रामराज्य बनाते हो। तुमको शिव से शक्ति मिल रही है। बाकी आजकल कईयों की अकाले मृत्यु भी हो जाती है। बाबा बुद्धि का ताला खोलता है और माया बुद्धि का ताला बन्द कर देती है। अब तुम माताओं को ही ज्ञान का कलष मिला हुआ है। अबलाओं को बल देने वाला वह है। यही ज्ञान अमृत है। शास्त्रों के ज्ञान को कोई अमृत नहीं कहा जाता है। अच्छा !
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) एक बाप की कशिश में रहकर खुशबूदार फूल बनना है। अपने स्वीट बाप को याद कर देह-अभिमान के कांटे को जला देना है।
2) इस हीरे तुल्य जन्म में अविनाशी कमाई जमा करनी है, कौड़ियों के बदले इसे गंवाना नहीं है। एक बाप से सच्चा प्यार करना है, एक के संग में रहना है।
वरदान:पुराने स्वभाव-संस्कार के बोझ को समाप्त कर डबल लाइट रहने वाले फरिश्ता भव
जब बाप के बन गये तो सारा बोझ बाप को दे दो। पुराने स्वभाव संस्कार का थोड़ा बोझ भी रहा हुआ होगा तो ऊपर से नीचे ले आयेगा। उड़ती कला का अनुभव करने नहीं देगा इसलिए बाप-दादा कहते हैं सब दे दो। यह रावण की प्रापर्टी अपने पास रखेंगे तो दु:ख ही पायेंगे। फरिश्ता अर्थात् जरा भी रावण की प्रापर्टी न हो। सब पुराने खाते भस्म करो तब कहेंगे डबल लाइट फरिश्ता।
स्लोगन:निर्भय और हर्षितमुख हो बेहद के खेल को देखो तो हलचल में नहीं आयेंगे।
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