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17-12-2019 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - बाप जो रोज़-रोज़ पढ़ाते हैं, यह पढ़ाई कभी मिस नहीं करनी है, इस पढ़ाई से ही अन्दर का संशय दूर होता है''
प्रश्न:बाप के दिल को जीतने की युक्ति क्या है?
उत्तर:बाप के दिल को जीतना है तो जब तक संगमयुग है तब तक बाप से कुछ भी छिपाओ नहीं। अपने कैरेक्टर्स पर पूरा-पूरा ध्यान दो। अगर कोई पाप कर्म हो जाता है तो अविनाशी सर्जन को सुनाओ तो हल्के हो जायेंगे। बाप जो शिक्षा देते हैं यही उनकी दया, कृपा वा आशीर्वाद है। तो बाप से दया व कृपा मांगने की बजाए स्वयं पर कृपा करो। ऐसा पुरुषार्थ कर बाप के दिल को जीत लो।
ओम् शान्ति।
अभी रूहानी बच्चे यह तो जानते हैं कि नई दुनिया में सुख है, पुरानी दुनिया में दु:ख है। दु:ख में सभी दु:ख में आ जाते हैं और सुख में सभी सुख में आ जाते हैं। सुख की दुनिया में दु:ख का नाम-निशान नहीं फिर जहाँ दु:ख है वहाँ सुख का नाम-निशान नहीं। जहाँ पाप है वहाँ पुण्य का नाम-निशान नहीं, जहाँ पुण्य है वहाँ पाप का नाम-निशान नहीं। वह कौन-सी जगह है? एक है सतयुग, दूसरा है कलियुग। यह तो बच्चों की बुद्धि में जरूर होगा ही। अभी दु:ख का समय पूरा होता है और सतयुग के लिए तैयारी हो रही है।
हम अभी इस पतित छी-छी दुनिया से उस पार सतयुग अर्थात् रामराज्य में जा रहे हैं। नई दुनिया में है सुख, पुरानी दुनिया में है दु:ख। ऐसा नहीं, जो सुख देता है वही दु:ख भी देता है। नहीं, सुख बाप देते हैं, दु:ख माया रावण देता है। उस दुश्मन की एफीजी हर वर्ष जलाते हैं। दु:ख देने वाले को हमेशा जलाया जाता है। बच्चे जानते हैं जब उसका राज्य पूरा होता है तो फिर हमेशा के लिए खलास हो जाता है। 5 विकार ही सबको आदि-मध्य-अन्त दु:ख देते आये हैं। तुम यहाँ बैठे हो तो भी तुम्हारी बुद्धि में यही रहे कि हम बाबा के पास जायें। रावण को तो तुम बाप नहीं कहेंगे।
कब सुना है-रावण को परमपिता परमात्मा कोई कहते हो? कभी भी नहीं। कई समझते हैं लंका में रावण था। बाप कहते हैं यह सारी दुनिया ही लंका है। कहते हैं वास्कोडिगामा ने चक्र लगाया, स्टीमर वा बोट के द्वारा। जिस समय उसने चक्र लगाया उस समय एरोप्लेन आदि नहीं थे। ट्रेन भी स्टीम पर चलती थी। बिजली अलग चीज़ है। अब बाप कहते हैं दुनिया तो एक ही है। नई से पुरानी, पुरानी से नई बनती है। ऐसे नहीं कहना होता है कि स्थापना, पालना, विनाश। नहीं, पहले स्थापना फिर विनाश, बाद में पालना, यह राइट अक्षर हैं। बाद में रावण की पालना शुरू होती है।
वह झूठी विकारी पतित बनने की पालना है, जिससे सब दु:खी होते हैं। बाप तो कभी किसको दु:ख नहीं देते। यहाँ तो तमोप्रधान बनने के कारण बाप को ही सर्वव्यापी कह देते हैं। देखो, क्या बन पड़े हैं! यह तो तुम बच्चों को चलते-फिरते बुद्धि में रहना चाहिए। है तो बहुत सहज। सिर्फ अल्फ की बात है। मुसलमान लोग भी कहते हैं उठकर अल्लाह को याद करो। खुद भी सवेरे उठते हैं। वह कहते हैं अल्लाह वा खुदा को याद करो। तुम कहेगे बाप को याद करो। बाबा अक्षर बहुत मीठा है। अल्लाह कहने से वर्सा याद नहीं आयेगा। बाबा कहने से वर्सा याद आ जाता है। मुसलमान लोग बाप नहीं कहते हैं। वह फिर अल्लाह मियां कहते हैं। मियां-बीबी।
यह सभी अक्षर भारत में हैं। परमपिता परमात्मा कहने से ही शिवलिंग याद आ जायेगा। यूरोपवासी लोग गॉड फादर कहते हैं। भारत में तो पत्थर भित्तर को भी भगवान समझ लेते हैं। शिवलिंग भी पत्थर का होता है। समझते हैं इस पत्थर में भगवान बैठा है। भगवान को याद करेंगे तो पत्थर ही सामने आ जाता है। पत्थर को भगवान समझ पूजते हैं। पत्थर कहाँ से आता है? पहाड़ों के झरनों से गिरते-गिरते गोल चिकना बन जाता है।
फिर कैसे नैचुरल निशान भी बन जाते हैं। देवी-देवताओं की मूर्ति ऐसी नहीं होती है। पत्थर काट-काट कर कान, मुँह, नाक, आंख आदि-आदि कितना सुन्दर बनाते हैं। खर्चा बहुत करते हैं। शिवबाबा की मूर्ति पर कोई खर्चे आदि की बात नहीं। अभी तुम बच्चे समझते हो हम सो देवी-देवता चैतन्य में खुद बन रहे हैं। चैतन्य में होंगे तब पूजा आदि नहीं होगी। जब पत्थरबुद्धि बनते हैं तब पत्थर की पूजा करते हैं। चैतन्य हैं तो पूज्य हैं फिर पुजारी बन जाते हैं। वहाँ न कोई पुजारी होते, न ही कोई पत्थर की मूर्ति होती। दरकार ही नहीं। जो चैतन्य थे उनकी निशानी यादगार के लिए पत्थरों की रखते हैं।
अभी इन देवताओं की कहानी का तुमको मालूम पड़ गया है कि इन देवताओं की जीवन कहानी क्या थी? फिर से वही रिपीट होती है। आगे यह ज्ञान चक्षु नहीं था तो जैसे पत्थरबुद्धि थे। अभी बाप द्वारा जो ज्ञान मिला है, ज्ञान एक ही है परन्तु उठाने वाले नम्बरवार हैं।
तुम्हारी रूद्र माला भी इस धारणा के अनुसार ही बनती है। एक है रूद्र माला, दूसरी है रूण्ड माला। एक है ब्रदर्स की, दूसरी है ब्रदर्स और सिस्टर्स की। यह तो बुद्धि में आता है हम आत्मायें बहुत छोटी-छोटी बिन्दी मुआफिक हैं। गायन भी है भृकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा। अभी तुम समझते हो हम आत्मा चैतन्य हैं। एक छोटे सितारे मिसल हैं। फिर जब गर्भ में आते हैं तो पहले कितना छोटा पिण्ड होता है। फिर कितना बड़ा हो जाता है। वही आत्मा अपने शरीर द्वारा अविनाशी पार्ट बजाती रहती है। इस शरीर को ही फिर सब याद करने लग पड़ते हैं। यह शरीर ही अच्छा-बुरा होने के कारण सबको आकर्षित करता है।
सतयुग में ऐसे नहीं कहेंगे कि आत्म-अभिमानी बनो, अपने को आत्मा समझो। यह ज्ञान तुम्हें अभी ही मिलता है क्योंकि तुम जानते हो अभी आत्मा पतित बन पड़ी है। पतित होने कारण जो काम करती है वह सभी उल्टा हो जाता है। बाप सुल्टा काम कराते, माया उल्टा काम कराती है। सबसे उल्टा काम है बाप को सर्वव्यापी कहना। आत्मा जो पार्ट बजाती है वह अविनाशी है। उनको जलाया नहीं जाता, उनकी तो पूजा होती है। शरीर को जलाया जाता है। आत्मा जब शरीर छोड़ती तो शरीर को जलाते हैं। आत्मा दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है। आत्मा बिगर शरीर दो-चार दिन भी नहीं रख सकते हैं। कई तो फिर शरीर में दवाइयाँ आदि लगाकर रख भी लेते हैं। परन्तु फायदा क्या? क्रिश्चियन का एक सेंट जेवीयर है, कहते हैं उसका शरीर अभी भी रखा हुआ है।
उनका भी जैसे मन्दिर बना हुआ है। किसको दिखाते नहीं हैं सिर्फ उनके पांव दिखाते हैं। कहते हैं कोई पांव छू लेता है तो बीमार नहीं होता। पांव छूने से बीमारी से हल्के हो जाते हैं तो समझते हैं उनकी कृपा। बाप कहते हैं भावना का भाड़ा मिल जाता है। निश्चयबुद्धि होने से कुछ फ़ायदा होता है। बाकी ऐसे हो तो ढेर के ढेर वहाँ जायें, मेला लग जाए। बाप भी यहाँ आये हैं फिर भी इतना ढेर नहीं होते। ढेर होने की जगह भी नहीं है। जब ढेर होने का समय आता है तो विनाश हो जाता है। यह भी ड्रामा बना हुआ है। इसका आदि वा अन्त नहीं है। हाँ, झाड़ की जड़जड़ीभूत अवस्था होती है अर्थात् तमोप्रधान बन जाता है तब यह झाड़ चेंज होता है।
कितना यह बेहद का बड़ा झाड़ है। पहले वह आयेंगे जिनको पहले नम्बर में जाना है। नम्बरवार आयेंगे ना? सभी सूर्यवंशी तो इकट्ठे नहीं आयेंगे। चन्द्रवंशी भी सभी इकट्ठे नहीं आते। नम्बरवार माला अनुसार ही आयेंगे। पार्टधारी सभी इकट्ठे कैसे आयेंगे। खेल ही बिगड़ जाए। यह खेल बड़ा एक्यूरेट बना हुआ है, इसमें कोई चेन्ज हो नहीं सकती।
मीठे-मीठे बच्चे जब यहाँ बैठते हो तो बुद्धि में यही याद रहना चाहिए। और सतसंगों में तो और-और बातें बुद्धि में आती हैं। यह तो एक ही पढ़ाई है, जिससे तुम्हारी कमाई होती है। उन शास्त्रों आदि को पढ़ने से कमाई नहीं होती। हाँ, कुछ न कुछ गुण अच्छे होते हैं। ग्रंथ पढ़ने बैठते हैं तो ऐसे नहीं सभी निर्विकारी होते हैं। बाप कहते हैं इस दुनिया में सभी भ्रष्टाचार से पैदा होते हैं। तुम बच्चों से कई पूछते हैं वहाँ जन्म कैसे होगा? बोलो, वहाँ तो 5 विकार ही नहीं, योगबल से बच्चे पैदा होते हैं। पहले ही साक्षात्कार होता है कि बच्चा आने वाला है। वहाँ विकार की बात नहीं।
यहाँ तो बच्चों को भी माया गिरा देती है। कोई-कोई तो बाप को आकर सुनाते भी हैं। सुनायेंगे नहीं तो सौगुणा दण्ड पड़ जायेगा। बाप तो सभी बच्चों को कहते हैं कि कोई भी पाप कर्म हो जाता है तो बाप को झट बताना चाहिए। बाप अविनाशी वैद्य है। सर्जन को सुनाने से तुम हल्के हो जायेंगे। जब तक संगमयुग है तब तक बाप से कुछ छिपाना नहीं है। कोई छिपाते हैं तो बाप के दिल को जीत नहीं सकते। सारा मदार पुरूषार्थ पर है। स्कूल में आयेंगे ही नहीं तो कैरेक्टर कैसे सुधरेंगे? इस समय सबके कैरेक्टर्स खराब हैं। विकार ही पहले नम्बर का खराब कैरेक्टर्स है इसलिए बाप कहते हैं-बच्चों, काम विकार तुम्हारा महाशत्रु है।
आगे भी यह गीता का ज्ञान सुना था तो यह सभी बातें समझ में नहीं आती थी। अब बाप डायरेक्ट गीता सुनाते हैं। अभी बाप ने तुम बच्चों को दिव्य बुद्धि दी है, तो भक्ति का नाम सुनते हँसी आती है कि क्या-क्या करते थे! अभी तो बाप शिक्षा देते हैं, इसमें दया, कृपा वा आशीर्वाद की बात होती नहीं। खुद पर ही दया, कृपा वा आशीर्वाद करनी है। बाप तो हर बच्चे को पुरुषार्थ कराते हैं। कोई तो पुरुषार्थ कर बाप के दिल को जीत लेते, कोई तो पुरुषार्थ करते-करते मर भी पड़ते हैं। बाप तो हर बच्चे को एक जैसा ही पढ़ाते हैं फिर कोई समय ऐसी गुह्य बातें निकलती हैं जो पुराना संशय ही उड़ जाता है, फिर खड़े हो जाते हैं इसलिए बाबा की पढ़ाई कभी मिस नहीं करनी चाहिए।
मुख्य है बाप की याद। दैवीगुण भी धारण करने हैं। कोई कुछ छी-छी बोले तो सुना-अनसुना कर देना चाहिए। हियर नो ईविल... ऊंच पद पाना है तो मान-अपमान, दु:ख-सुख, हार-जीत सब सहन जरूर करना है। बाप कितनी युक्तियाँ बतलाते हैं। फिर भी बच्चे बाप का भी सुना-अनसुना कर देते हैं तो वह क्या पद पायेंगे? बाप कहते हैं जब तक अशरीरी नहीं बने हैं तब तक माया की कुछ न कुछ चोट लगती रहेगी। बाप का कहना नहीं मानते तो बाप का डिसरिगार्ड करते हैं। फिर भी बाप कहते हैं बच्चे, सदा जीते जागते रहो और बाप को याद कर ऊंच पद पाओ। अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:
1) कोई भी उल्टी-सुल्टी बातें करे तो सुना-अनसुना कर देना है। हियर नो ईविल... दु:ख-सुख, मान-अपमान सब कुछ सहन करना है।
2) बाप जो सुनाते हैं उसे कभी सुना-अनसुना कर बाप का डिसरिगार्ड नहीं करना है। माया की चोट से बचने के लिए अशरीरी रहने का अभ्यास जरूर करना है।
वरदान:हद की रॉयल इच्छाओं से मुक्त रह सेवा करने वाले नि:स्वार्थ सेवाधारी भव
जैसे ब्रह्मा बाप ने कर्म के बन्धन से मुक्त, न्यारे बनने का सबूत दिया। सिवाए सेवा के स्नेह के और कोई बन्धन नहीं। सेवा में जो हद की रायॅल इच्छायें होती हैं वह भी हिसाब-किताब के बन्धन में बांधती हैं, सच्चे सेवाधारी इस हिसाब-किताब से भी मुक्त रहते हैं। जैसे देह का बन्धन, देह के संबंध का बंधन है, ऐसे सेवा में स्वार्थ - यह भी बंधन है। इस बन्धन से वा रॉयल हिसाब-किताब से भी मुक्त नि:स्वार्थ सेवाधारी बनो।
स्लोगन:वायदों को फाइल में नहीं रखो, फाइनल बनकर दिखाओ।
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