Bk Hindi murli 24 March 2018

Bk Hindi murli 24 March 2018





24-03-2018 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
  


"मीठे बच्चे - तुम रूहानी यात्रा पर हो तुम्हें देह का भान और पुरानी दुनिया को भूल वापस घर चलना है, एक बाप की याद में रहना है"




प्रश्न:
साक्षी हो कौन सी बात हर एक को अपने आप से पूछनी है?
उत्तर:
जैसे बाप साक्षी हो हर एक बच्चे की अवस्था देखते हैं कि इनकी अवस्था कैसी है? बाप को पाकर अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करते हैं या नहीं? ऐसे अपने से पूछना है कि हम अपने आपको कितना सौभाग्यशाली समझते हैं? कितनी खुशी रहती है? बाप से पूरा वर्सा लिया है? वारिस बनाये हैं? योगबल से पापों को भस्म कर पुण्य आत्मा बने हैं?




गीत:-
रात के राही थक मत जाना..... 




ओम् शान्ति।
यह बच्चों को समझाया हुआ है जैसे आत्मा शान्त स्वरूप है वैसे परमपिता परमात्मा भी शान्त स्वरूप हैं। ओम् का अर्थ भी समझाया हुआ है कि ओम् अर्थात् अहम् आत्मा, मम माया। सन्यासी लोग कहते हैं अहम् ब्रह्मस्मि। वह ब्रह्म को ईश्वर समझते हैं। रचना को माया कह देते हैं। अहम् ब्रह्मस्मि का यह अर्थ करते हैं। परन्तु है सब रांग। मनुष्य जो कुछ करते हैं सब मनुष्यों की सुनी-सुनाई पर। जिसने जो कुछ समझाया, जो रसम चलाई, उस पर चल पड़ते हैं। उसका नाम हो जाता है। यह भी ड्रामा में नूंध है। अब बाप कहते हैं हे राही ...., कहाँ के राही? परमधाम के राही। यह हो गई रूहानी यात्रा रूहों के लिए। आत्माओं के वापिस जाने लिए यात्रा है। गाइड तो जरूर चाहिए। विलायत से आते हैं तो उनको भी गाइड मिलता है, मुख्य-मुख्य सब स्थान दिखाने लिए। परमपिता परमात्मा को भी गाइड कहा जाता है, पण्डों को भी गाइड कहा जाता है। तो बाप कहते हैं - बच्चे, अब मैं आया हूँ तुम बच्चों को वापिस ले जाने। कितनी फर्स्टक्लास यात्रा है।


 जिसके लिए भक्त लोग आधाकल्प से भक्ति करते आये हैं। कहते हैं - आओ, हमको अपने परमधाम में ले चलो। वह जिस्मानी यात्रायें हैं अनेक प्रकार की। कितने जिस्मानी पण्डे हैं! रूहानी पण्डा एक ही है। उन्होंने फिर पाण्डव सेना, शक्ति सेना दिखाई है। लड़ाई की तो कोई बात नहीं है। बाप बैठ समझाते हैं - हे मीठे बच्चे। पहले तो यह निश्चय होना चाहिए कि बरोबर वह बाप है। तुम्हारा बुद्धियोग बाप के पास जाना चाहिए। बाबा आया हुआ है हमको वापिस ले जाने लिए। यहाँ यह है दु:खधाम, पतित दुनिया नर्क। हेल नाम तो है ना। गाते भी हैं लेफ्ट फार हेविनली अबोड.. जरूर कोई नई चीज़ है। मनुष्य जानते नहीं सिर्फ कह देते हैं। रसम-रिवाज़ जो चली आई है सो कह देते हैं, फलाना ज्योति ज्योत समाया अर्थात् आत्मा परमात्मा बन गई। यह नहीं जानते कि ड्रामा है। आत्मा इमार्टल है। उस अविनाशी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट भरा हुआ है। परम आत्मा में भी पार्ट भरा हुआ है। इसको कहा जाता है ड्रामा की कुदरत। परमात्मा से भी तुम पार्टधारियों का तो और ही जास्ती पार्ट है। वह तो है क्रियेटर, डायरेक्टर। तुम जो देवी-देवता बनते हो उनका सबसे जास्ती पार्ट है। आदि से अन्त तक तुम्हारा पार्ट है।


 सतयुग त्रेता में तो बाप का पार्ट है नहीं। वहाँ बाबा को कुछ भी करना नहीं पड़ता। इस समय मैं बहुत सर्विस करता हूँ। तुम बच्चों को भी और भक्तों को भी राज़ी करना पड़ता है। भक्तों को साक्षात्कार होता है तो वह समझते हैं बस हमने ईश्वर को पाया। भक्तों का नाम कितना है! वह है भक्त माला और यह है रूद्र माला। ज्ञान माला में भक्ति नहीं है। वह तो ज्ञान सागर से ज्ञान धारण कर भक्तों का भी उद्धार करते हैं। उन्हों की ही फिर रूद्र माला बनती है।




अब तुम बच्चे समझते हो हम रूहानी यात्रा पर हैं। गृहस्थ व्यवहार में रहते याद बढ़ानी है। वह है बहुत स्वीट चीज़। बाप रचता भी है, बच्चों को क्रियेट करते हैं। ब्रह्मा मुख वंशावली बनाया है। सब कहते हैं हम शिवबाबा के बच्चे हैं फिर डायरेक्शन मुख्य देते हैं कि मनमनाभव। मैं आया हुआ हूँ तुमको पढ़ाने। हूबहू 5 हजार वर्ष पहले मैंने यह राजयोग सिखाया था। मैं निराकार आत्माओं से बात करता हूँ। तुम अपने आरगन्स का आधार लेते हो। मैं इनके आरगन्स का आधार लेता हूँ। अब तुमको वापिस जाना है इसलिए पुरानी दुनिया को भूलना है, इसको ही सन्यास कहा जाता है। पहले-पहले तो निश्चय करना है - मैं आत्मा हूँ, देह नहीं। इस देह का भान भूल जाना है। पुरानी दुनिया को छोड़ना है। अब मैं वापस लेने आया हूँ तो मेरी श्रीमत पर चलो। देह सहित देह के सभी सम्बन्ध आदि भूल जाओ। एक बाप को याद करना है। मेहनत बिगर कोई बादशाही थोड़ेही मिलेगी। विश्व का मालिक बनना है। जो नॉलेज मेरे में है वह अब तुम्हारे में भी आ गई। तुमको संक्षेप में और डिटेल में भी समझाया जाता है। बीज से इतना सारा झाड़ निकलता है। फिर झाड़ की डिटेल में जायेंगे तो बहुत विस्तार है। बाप कहते हैं अब इस पुराने झाड़ को भूलो। अब सिर्फ मुझे याद करते रहो। भगवानुवाच - मैं तुमको राजयोग और रचना की नॉलेज देता हूँ। यह रचना कैसे रचता हूँ, कैसे वृद्धि को पाती है। यह है ड्रामा को समझना। सो तो मनुष्य ही जानेंगे। भगवान पढ़ायेंगे भी मनुष्यों को। मुख्य है गीता। गीता का नाम है। गीता में है भगवानुवाच। ऐसे नहीं व्यास भगवानुवाच... कहते हैं कृष्ण भगवान ने गीता सुनाई, व्यास ने लिखी। वह तो पीछे लिखी गई है ना। इस समय लिखें वह तो विनाश हो जायेगी। तुम यह सभी करके दो चार हजार बनायेंगे। वह गीतायें तो लाखों करोड़ों की अन्दाज में हैं। फिर भी यही पुराने शास्त्र निकलते हैं जिससे फिर कॉपी करते हैं, जो उस गीता में अक्षर बाई अक्षर है वही निकलेगा। ड्रामा में वही नूंध है। जिस समय शास्त्र लिखें हैं उसी समय लिखेंगे भी जरूर। लक्ष्मी-नारायण भी वही बन रहे हैं। वही उनके महल आदि बनेंगे।




इस समय बाबा ने इस कल्प वृक्ष का और ड्रामा का ज्ञान दिया है। कहते हैं तुम अब मिले हो, कल्प-कल्प मिलते रहेंगे। भगवानुवाच भी लिखा हुआ है। मैं तुमको राजयोग सिखाता हूँ। भगवान नई सृष्टि रचते हैं जरूर उनको राजा बनायेंगे। द्वापर का तो नहीं बनायेंगे ना। कहते हैं कल्प-कल्प मैं संगम पर ही आता हूँ। गाइड तो अन्त तक साथ होगा। वह गुरू लोग तो मर जाते हैं फिर उन्हों की गद्दी चलती है। बाप कहते हैं मुझे तो तुम सबको वापिस ले जाना है। मैं अपने पूरे समय पर आता हूँ। यह बातें और कोई समझा नहीं सकते हैं। मनमनाभव का अक्षर गीता में भी आदि और अन्त में है। यही कहते हैं कि मुझे याद करो। मैं तुमको विश्व का मालिक इन लक्ष्मी-नारायण जैसा बनाऊंगा। राजाओं का राजा बनाऊंगा। उसी सूर्यवंशी चन्द्रवंशी घराने में तुम पुनर्जन्म लेंगे। अभी तुम कलियुग में हो, कलियुग से तुमको सतयुग में ले जा रहा हूँ।




मैं कल्प-कल्प आकर स्थापना करता हूँ। इस समय ही आऊंगा। हम भी ड्रामा के वश हैं। साक्षी हो हर एक की अवस्था को देखते हैं कि इनकी अवस्था कैसी है? बेहद के बाप को पाकर अतीन्द्रिय सुख को पाते हैं कि नहीं? हर एक अपनी दिल से पूछे - हम अपने को कितना सौभाग्यशाली समझते हैं? बाप के बच्चे बने हैं तो बाप से पूरा वर्सा लिया है? ऐसे भी नहीं बाबा सबको लक्ष्मी-नारायण बनायेंगे। यह पढ़ाई है, जितना जो पुरुषार्थ करे। स्कूल में पढ़ा जाता है तो एम आबजेक्ट रहती है ना। तुम जानते हो हमें 5 हजार वर्ष पहले मुआफिक हूबहू बाप आकर राजयोग सिखला रहे हैं। भगवानुवाच - मैं तुमको पतित मनुष्य से पावन देवता बनाता हूँ। गॉड पढ़ाते हैं तो जरूर गॉड-गॉडेज बनायेंगे ना। जैसे बैरिस्टर, बैरिस्टर बनाते हैं। भक्ति मार्ग में भगवती-भगवान कहते हैं परन्तु हैं देवी-देवतायें। आदि सनातन देवी-देवता धर्म कहा जाता है।
तुम जानते हो कैसे बाप आकर हमको पढ़ाते हैं। मुख्य एम आबजेक्ट भी बुद्धि में है। चक्र तो बुद्धि में फिराना ही है। गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना है। पवित्र नहीं बनेंगे तो पवित्र दुनिया के मालिक कैसे बनेंगे? यह ड्रामा का राज़ और कोई समझ नहीं सकते। यह चित्र आदि भी बाप ने बनवाये हैं। बाबा थोड़ेही आर्टिस्ट था। यह चीज़ और कोई बनवा नहीं सकता है। यह मैप्स हैं। यह झाड है, बीज ऊपर है। कल्प वृक्ष के नीचे जगदम्बा बैठी है, जो सभी के सुख की कामना पूरी करती है। सतयुग में दु:ख का नाम नहीं होता। तुम कहेंगे हम नई दुनिया के मालिक बन रहे हैं। मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार.. सिक्ख लोग उनकी महिमा करते हैं। देवी-देवता ही स्वर्ग के मालिक थे। वह अब और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं फिर निकलते आयेंगे। हम भी आगे हिन्दू धर्म लिखते थे। अभी हम कहते हैं ब्राह्मण धर्म के हैं। भले हम ब्राह्मण धर्म लिखते हैं परन्तु वह फिर भी हिन्दू समझ लेते हैं क्योंकि उनके पास ब्राह्मण धर्म का कालम कोई है ही नहीं। हम देवी-देवता कहेंगे तो भी बदली कर हिन्दू लिख देंगे क्योंकि ब्राह्मण अथवा देवी-देवता धर्म का नाम ही गुम है। अभी तुम बच्चे जानते हो हम सो देवी-देवता बनने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। वहाँ यथा राजा-रानी तथा प्रजा सभी की इन लक्ष्मी-नारायण जैसी ड्रेस रहती है। पीताम्बर - यह है सतयुगी सूर्यवंशी की ड्रेस। त्रेता में रामराज्य में फिर दूसरी ड्रेस होती है। रसम-रिवाज अलग होती है। कृष्ण को हमेशा पीताम्बरधारी कहते हैं।
तो अब यह निश्चय करना है कि बाप हमको स्वर्ग का वर्सा देते हैं। यह मृत्युलोक खत्म होना है। जब तुम निरन्तर बाप को याद करते रहेंगे तब सम्पूर्ण निर्विकारी बनेंगे। उसी योगबल से पाप कटते जायेंगे, पुण्य आत्मा हो जायेंगे। तुम बाप के पास सरेन्डर होते हो, पुण्य करते हो। फिर याद से आत्मा पवित्र बनती जाती है। कोई को भी समझाना है बहुत सहज। भगवानुवाच कब सुना है? स्वर्ग की स्थापना करने वाला वही फादर है। बाप और वर्से को याद करना है। महाराजा बनने चाहते हो तो बताओ तुमने कितनी प्रजा बनाई है? ऐसे बहुत लिखते हैं कि फलाने ने हमको दृष्टि दी, तीर लग गया। प्रजा बनाने और वारिस बनाने की मेहनत करनी पड़े। प्रजा तो बहुत सहज बन जाती है फिर गद्दी पर कौन बैठेंगे? वह भी मेहनत कर बनाना है।


 मायाजीत, जगतजीत बनना है। माया से हारे हार है। बाप से शक्ति लेनी है। यह मेहनत तुम बच्चों को करनी है। कोई भी बात में मूंझते हो तो पूछते रहो। बाप पढ़ाते हैं तो इसमें कोई संशय नहीं आना चाहिए ना। अनेक प्रकार के संकल्पों के तूफान तो आयेंगे। बुद्धियोग तोड़ने की कोशिश करेंगे। तूफान लगेंगे, माया खूब हैरान करेगी। फिर कहेंगे यह तो माथा ही खराब हो पड़ा है। जो बीमारी आदि कभी हुई नहीं सो अब होती रहती है। विघ्न बहुत आयेंगे, इसमें कमजोर नहीं बनना है।


अच्छा!
बापदादा मीठी-मीठी मम्मा का सिकीलधे बच्चों प्रति यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।




धारणा के लिए मुख्य सार:
1) बाप ने जो फर्स्टक्लास यात्रा सिखलाई है, उस रूहानी यात्रा पर रहना है। श्रीमत पर देह सहित सब कुछ भूलना है।
2) कभी भी माया के तूफानों में कमजोर वा संशय बुद्धि नहीं बनना है। किसी भी बात में मूंझना नहीं है।




वरदान:
रियलाइजेशन द्वारा निर्बल से शक्तिशाली बनने वाले मास्टर सर्वशक्तिमान भव!
मानव जीवन की मानवता का आधार आत्मा पर है, मैं कौन सी आत्मा हूँ, क्या हूँ - यदि यह रियलाइज कर लें तो शान्ति स्वधर्म हो जाये। मैं श्रेष्ठ आत्मा हूँ, सर्वशक्तिमान की सन्तान हूँ - यह रियलाइजेशन निर्बल से शक्तिशाली बना देती है। ऐसी शक्तिशाली आत्मा वा मास्टर सर्वशक्तिमान आत्मा जो चाहे, जैसे चाहे वह प्रैक्टिकल कर सकती है।




स्लोगन:
जो मन्सा महादानी हैं वह कभी भी संकल्पों के वश नहीं हो सकते।

Post a Comment

Previous Post Next Post